शारदीय नवरात्रि का पर्व शुरू होने जा रहा है। 15 अक्टूबर 2023 से माता के इस 9 दिनों के पर्व की शुरूआत हो रही है। एसे में हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बतान वाले हैं, जहां आपको इस नवरात्रि देवी दर्शन के लिए जरूर जाना चाहिए।
कर्नाटक का दुर्गापरमेश्वरी मंदिर माता का सबसे खास मंदिर माना जाता है। क्योंकि यह मंदिर मां दुर्गा को समर्पित है। इस मंदिर को कतील मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, यह मैंगलोर से करीब 30 किमी दूरी पर स्थित है।
मंदिर खुलने का समय
भक्तों के लिए यह मंदिर सुबह 4 बजे से ही खोल दिया जाता है। दोपहर 12.30 से 3 बजे तक मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, फिर 3 बजे से रात 10 बजे तक यह मंदिर खुला रहता है। यहां आप रात 8:30 से 10:00 बजे की बीच भोजन भी कर सकते हैं। यहां प्रसाद के तौर पर लोगों को भोजन करवाने की व्यवस्था है।
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आग के साथ खेला जाता है खतरनाक खेल
इस मंदिर में हर साल अप्रैल के महीने में लगभग आठ दिनों तक आग का खेल खेला जाता है। इस खेल की शुरूआत मेष संक्रांति दिवस की पूर्व संध्या में ही हो जाती है। अग्नि केली नाम की परंपरा दो गांव आतुर और कलत्तुर के लोगों के बीच में होती है।
नारियल की छाल से बनी मशाल को लोग एक दूसरे पर फेंकते हैं। इस खेल को 15 मिनट तक खेला जाता है। इसके साथ ही मशाल लोगों पर बस 5 बार ही फेंका जाता है। यहां के लोगों का मानना है कि ऐसा करने से लोगों के दुख दर्द कम होते हैं। (बिष्णुपुर के इन मंदिरों के अवश्य करें दर्शन)
कैसे पहुंचे?
अगर आप दिल्ली से इस मंदिर के दर्शन के लिए जाना चाहते हैं, तो आपको मैंगलोर रेलवे स्टेशन तक के लिए टिकट लेनी होगी। यह मंदिर 28 किमी की दूरी पर स्थित है।
फ्लाइट से भी आपको मैंगलोर के इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए टिकट लेनी होगी। यहां से मंदिर 12 किमी की दूरी पर स्थित है। (वैष्णो देवी मंदिर के आसपास स्थित अद्भुत जगहें)
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क्या है मंदिर का इतिहास?
माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास अरुणासुर नाम के एक राक्षस से जुड़ा है। अरुणासुर को वरदान प्राप्त था कि उसे ना तो कोई दो पैरों वाला जीव मार पाएगा और ना ही चार पैर वालों वाला जीव। इसी घंमड के चलते अरुणासुर ने धरती पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था।
अरुणासुर के अत्याचार से परेशान होकर मां दुर्गा को धरती पर आना पड़ा था। मान्यता है कि अरुणासूर को खत्म करने के लिए, दुर्गा मां ने अपने आप को एक चट्टान में परिवर्तित कर लिया। अरुणासूर पत्थर को कुचलने ही वाला था, तभी माता ने मधुमक्खी का रूप ले लिया। मधुमक्खियों के भारी झुंड ने राक्षस पर हमला कर दिया और उसकी मौत हो गई।
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