करवा चौथ की पूजा पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सलामती के लिए की जाती है। हिन्दू धर्म शास्त्रों में जितने भी व्रतों का उल्लेख मिलता है उनमें से सबसे कठिन व्रतों में से इसे एक माना जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं सूर्योदय से चंद्रोदय तक निराहार औ निर्जला व्रत रखती हैं। फिर शाम को शिव-पार्वती, कार्तिकेय और करवा माता की पूजा करती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपने पति के हाथों से पानी पीकर व्रत खोलती हैं।
यह व्रत पति-पत्नी के बीच के गहरे प्रेम, समर्पण और अटूट रिश्ते का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि सुहागिन महिलाएं ही नहीं बल्कि पति भी इस व्रत को रख सकते हैं और रखना चाहिए भी। ऐसे में अगर आप भी इस साल अपनी पत्नी या अपने पति के लिए करवा चौथ का व्रत रख रहे हैं तो यहां इस लेख से वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स द्वारा बताई गई संपूर्ण पूजा विधि के बारे में जान लें।
करवा चौथ की पूजा चार चरणों में पूरी होती है। सुबह सरगी से शुरू होकर यह पूजा चंद्र अर्घ्य के साथ समाप्त हो जाती है। इस दौरान व्रत कथा का अनुसरण करना भी बहुत शुभ माना जाता है।
करवा चौथ के दिन की शुरुआत सूर्य उदय से पहले होती है। व्रत रखने वाली महिलाएं जल्दी उठकर सरगी खाकर जल ग्रहण करती हैं। सरगी खाने के बाद व्रत शुरू हो जाता है और महिलाएं पूरे दिन निर्जला रहती हैं। सुबह नहाने के बाद साफ कपड़े पहनकर, व्रत का संकल्प लिया जाता है।
शाम के समय, पूजा से पहले महिलाएं श्रृंगार करती हैं और नए या साफ कपड़े पहनती हैं। पूजा की जगह पर करवा माता की तस्वीर या मूर्ति रखी जाती है। पूजा की थाली तैयार की जाती है जिसमें दीपक, रोली, चावल, मिठाई, फल, फूल और पानी से भरा करवा रखा जाता है। कुछ स्थानों पर गेहूं या चावल को पीसकर गोलियां बनाई जाती हैं।
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शाम को मुहूर्त के अनुसार सभी महिलाएं एक साथ पूजा स्थान पर बैठती हैं। सबसे पहले करवा चौथ की कथा सुनी या पढ़ी जाती है। कथा सुनने के बाद, महिलाएं करवा माता, भगवान शिव, माता पार्वती और श्री गणेश की पूजा करती हैं। रोली, चावल, फूल और प्रसाद अर्पित करती हैं। इस दौरान, सभी महिलाएं मिलकर अपने-अपने करवे की परिक्रमा करती हैं और उन्हें बदलती हैं। पूजा के अंत में, करवा माता से पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की प्रार्थना की जाती है।
पूजा का सबसे महत्वपूर्ण भाग चंद्रमा को अर्घ्य देना होता है। जब चंद्रमा उदय हो जाता है, तब महिलाएं पूजा की थाली और छलनी लेकर छत या बाहर जाती हैं। सबसे पहले, वे छलनी में दीपक रखकर उसी छलनी से चंद्रमा का दर्शन करती हैं। चंद्रमा को देखने के बाद, उसी छलनी से अपने पति के चेहरे को देखा जाता है। इसके बाद, चंद्रमा को जल या दूध से अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य देने के बाद पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर और मिठाई खिलाकर उनका व्रत तुड़वाते हैं। इस प्रकार करवा चौथ की पूजा विधि पूरी होती है।
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