कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का पर्व मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से सुहागिन महिलाओं का उत्सव होता है और इस दिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला उपवास करने के बाद चंद्र दर्शन करके ही व्रत का पारण करती हैं। करवा चौथ का व्रत विवाहित महिलाओं के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह व्रत सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं है बल्कि पति-पत्नी के बीच प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। वैसे तो इस पर्व की कई रस्में होती हैं, लेकिन इस व्रत की शुरुआत सरगी से होती है।
सरगी एक ऐसा भोजन माना जाता है जो घर के बड़ों के आशीर्वाद के साथ बहू को खिलाया जाता है। यह भोजन सुबह सूर्योदय से पहले ग्रहण किया जाता है। परंपरा के अनुसार, सास अपनी बहू को प्रेमपूर्वक सरगी देती है, जिसमें भोजन के साथ सुहाग की सामग्री भी रखी जाती है। सरगी के बिना करवा चौथ का व्रत अधूरा माना जाता है। हालांकि यह रस्म कुछ जगहों पर नहीं मनाई जाती है, लेकिन जो इसका पालन करते हैं वो एक शुभ मुहूर्त में ही सरगी का भोजन ग्रहण करते हैं। अगर आप भी अपनी बहू को सरगी देती हैं तो इस साल सरगी खाने का शुभ मुहूर्त क्या होगा इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ त्रिपाठी से जानें सरगी का सेवन करने का शुभ मुहूर्त क्या है?
सरगी को करवा चौथ व्रत की शुरुआत माना जाता है और यह एक ऐसी रस्म होती है जिसमें सास अपनी बहू को खाने की चीजें जिसमें मट्ठी, सेवई, मिठाइयां नमकीन, फल, मेवे शामिल होते हैं और यही नहीं इसके साथ सरगी में सुहाग की चीजें भी दी जाती हैं। इन श्रृंगार सामग्रियों का इस्तेमाल बहू करवा चौथ के दिन करती है। यह भोजन सूर्योदय होने से पहले ही ग्रहण किया जाता है। यह सुबह सूर्योदय से पहले खाया जाने वाला विशेष भोजन होता है, जो सास अपनी बहू को देती है।
करवा चौथ की सरगी हमेशा ब्रह्म मुहूर्त में ही कहानी चाहिए। ऐसे में करवा चौथ के दिन यानी 10 अक्टूबर को ब्रह्म मुहूर्त में प्रातः 4 बजकर 35 मिनट से 5 बजकर 23 मिनट तक रहेगा। अगर आप सरगी का पालन करती हैं तो इसी समय में सरगी ग्रहण कर सकती हैं। इसके अलावा आप सूर्योदय से पहले, लगभग 05:00 से 06:10 तक भी सरगी ग्रहण कर सकती हैं।
करवा चौथ की सरगी सास द्वारा अपनी बहू को दी जाती है। यह केवल भोजन नहीं होता है बल्कि सास के आशीर्वाद और स्नेह का प्रतीक भी होता है। इस परंपरा से यह संदेश मिलता है कि विवाह के बाद भी सास-बहू का रिश्ता औपचारिक नहीं होता है बल्कि मां-बेटी जैसा होता है। सरगी को सूर्योदय से पहले इसलिए खाया जाता है क्योंकि ये बड़ों के आशीर्वाद के साथ व्रत की शुरुआत का प्रतीक होती है। यह शरीर को पूरे दिन ऊर्जा प्रदान करती है जिससे व्रती महिला बिना थके उपवास रख सके।
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अगर आप भी सरगी का पालन करती हैं तो इसी मुहूर्त में सरगी ग्रहण करना आपके लिए शुभ होगा। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह के अन्य आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
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