इस साल का दूसरा चंद्रग्रहण 7 सितंबर 2025, रविवार को लगने वाला है। यह एक पूर्ण चंद्रग्रहण है, जिसका असर भारत में भी देखा जाएगा। यह चंद्रग्रहण सूतक काल में लग रहा है, जिसका असर गर्भवती महिलाओं पर पड़ सकता है, इसलिए गर्भवती महिलाओं को इस दौरान अपना विशेष ध्यान रखना चाहिए।
एस्ट्रोलॉजर सिद्धार्थ एस कुमार के अनुसार चंद्रग्रहण 7 सितंबर को रात 9 बजकर 58 मिनट से शुरू होगा और 8 सितंबर को रात 1 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगा। इस दौरान गर्भवती महिलाओं को इन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए ताकि जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ रहें।
गर्भवती महिलाएं चंद्रग्रहण के दौरान बरतें ये सावधानियां
नग्न आंखों से चंद्रमा को न देखें
ग्रहण के दौरान चंद्रमा से निकलने वाली किरणें नॉर्मल से ज्यादा हानिकारक हो सकती हैं। गर्भवती महिलाओं को सीधे चंद्रमा की ओर देखने से बचना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इन किरणों का बुरा प्रभाव शिशु पर पड़ सकता है।
ग्रहण से पहले और बाद में स्नान
ग्रहण शुरू होने से पहले और समाप्त होने के बाद स्नान करना शुभ माना जाता है। ग्रहण के बाद स्नान करने से शरीर और मन पर जमा हुई नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और शरीर शुद्ध हो जाता है।
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ताजा भोजन करें
आशा आयुर्वेदा की डायरेक्टर और गायनोकॉलोजिस्ट डॉक्टर चंचल शर्मा के अनुसार, ग्रहण के समय वातावरण में बैक्टीरिया और नकारात्मक ऊर्जा बढ़ सकती है, जिसका सेवन गर्भवती महिलाओं के लिए हानिकारक हो सकता है। इसलिए, ग्रहण के दौरान रखा हुआ भोजन नहीं खाना चाहिए। ग्रहण समाप्त होने के बाद ताजा भोजन बनाकर ही सेवन करें। इस दौरान घर में रखे खाने-पीने की चीजों में तुलसी का पत्ता डाल दें ताकि वे दूषित न हों।
नुकीली वस्तुओं से बचें
ग्रहण के दौरान सुई, चाकू, कैंची या किसी भी नुकीली और धारदार वस्तु का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि नुकीली चीजों के इस्तेमाल से शिशु पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
मन को शांत रखें
ग्रहण के समय भगवान का ध्यान करें और उनके नाम का जाप करें। ऐसा करने से मन शांत रहता है, एकाग्रता बढ़ती है और शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस दौरान गर्भवती महिलाएं गायत्री मंत्र या महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर सकती हैं।
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डॉकटर चंचल शर्मा बताती हैं कि इन सभी बातों का कोई सीधा वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। हालांकि, आयुर्वेद और हमारी पुरानी मान्यताएं इन सावधानियों में विश्वास रखती हैं। इन बातों का पालन करके आप जच्चा और बच्चा दोनों को किसी भी संभावित नकारात्मक प्रभाव से बचा सकती हैं। यह एक प्रकार का एहतियाती उपाय है, जिसे अपनाकर मन को शांति मिलती है।
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