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kyu ki jati hai uthavani

मृत्यु के बाद क्यों होती है उठावनी? जानें नियम और महत्व

अंतिम संस्कार से जुड़े कई नियम हैं, कई रीतियां हैं जिनका पालन आवश्यक माना गया है। मान्यता है कि इन नियमों या रीति-रिवाजों में अगर ज़रा भी भूल-चूक हुई तो इससे न सिर्फ मृतक की आत्मा को शांति नहीं मिल पाती है बल्कि मृतक के परिजन भी परेशान रहते हैं।
Editorial
Updated:- 2024-12-10, 15:30 IST

हिन्दू धर्म में 16 संस्कारों का वर्णन मिलता है। उन्हीं में से एक है अंतिम संस्कार जिससे जुड़े कई नियम हैं, कई रीतियां हैं जिनका पालन आवश्यक माना गया है। मान्यता है कि इन नियमों या रीति-रिवाजों में अगर ज़रा भी भूल-चूक हुई तो इससे न सिर्फ मृतक की आत्मा को शांति नहीं मिल पाती है बल्कि मृतक के परिजन भी परेशान रहते हैं। ऐसी ही रीतियों में से एक है उठावनी। जब हमने ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से पूछा कि क्या होती है उठावनी और क्यों की जाती है एवं क्या है इसका महत्व और इससे जुड़े नियम तो उन्होंने हमें दिलचस्प जानकारी दी। आइये जानते हैं।

क्या होती है उठावनी?

uthavani karne se kya hota hai

मृत्यु के बाद तीसरे या तेरहवे दिन उठावनी की जाती है। उठावनी एक तरह से एक प्रक्रिया होती है जिसमें मृतक की सभी वस्तुओं को एक साथ एक स्थान पर रखा जाता है और उन्हें चीजों को एक कपड़े में बांधा जाता है। फिर उस कपड़े में बंधे मृतक के सारे सामान को घर से बाहर ले जाया जाता है। इसके अलावा, इस दिन विधिवत पूजा भी की जाती है और ब्राह्मण भोज कराया जाता है।

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क्यों होती है उठावनी?

uthavani karne ka kya mahatva hai

ऐसा माना जाता है कि उठावनी करना बहुत आवश्यक होता है। वो इसलिए क्योंकि उठावनी करने के बाद ही मृतक की आत्मा अपने घर से नए लोक की ओर प्रस्थान करती है एवं उसकी आत्मा को शांति मिलती है और विधिवत पूजा से मुक्ति मिल जाती है। उठावनी न करने से आत्मा खुद तो परेशान रहती ही है और साथ ही नकारात्मक ऊर्जा का रूप लेकर परिवार के लोगों को भी नुकसान पहुंचाती है।

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क्या हैं उठावनी करने के नियम?

what is uthavani ceremony in hindu dharma

अगर आप मृत्यु के बाद तीसरे दिन उठावनी कर रहे हैं तो ऐसे में उसी दिन भगवतगीता का पाठ अवश्य करें और उस तिथि के बाद किसी भी प्रकार के रिवाज को जो दाह संस्कार से जुड़ा हो उसे न करें। क्योंकि उठावनी के बाद कर्मकांड का समापन हो जाता है। इस बात का भी ध्यान रखें कि य तो मृतक की वस्तुएं उसी के साथ जला दें या फिर उन वस्तुओं को पवित्र गंगा में माता का ध्यान करते हुए बहा दें।

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