कई बार हम सुनते हैं कि 'भगवान सिर्फ भाव के भूखे होते हैं।' यह बात बिलकुल सच है। लेकिन, फिर एक सवाल मन में उठता है कि अगर भगवान सिर्फ भाव को समझते हैं तो पूजा-पाठ, मंत्र और विधि-विधान की क्या जरूरत है? क्या हम बिना किसी विधि के सीधे अपने मन से भगवान को याद नहीं कर सकते? आइए जानते हैं इस बारे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से।
पूजा-पाठ की विधि और नियम इसलिए बनाए गए हैं ताकि हमारा मन पूरी तरह से भगवान पर केंद्रित हो सके। हमारा मन बहुत चंचल होता है। जब हम पूजा करने बैठते हैं, तो कभी घर के कामों के बारे में सोचते हैं, कभी भविष्य की चिंता करते हैं, और कभी-कभी तो पुरानी बातें याद करने लगते हैं। ऐसे में, पूजा विधि हमें एक दिशा देती है।
जिस तरह स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए एक खास पाठ्यक्रम होता है, ताकि वे सही तरीके से सीख सकें, उसी तरह पूजा विधि हमें सही मार्ग दिखाती है। विधि-विधान से पूजा करने से हमारे मन को एक खास काम मिल जाता है जिससे वह इधर-उधर नहीं भटकता।
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पूजा विधि हमें अनुशासन सिखाती है। जब हम किसी काम को बार-बार करते हैं, तो वह हमारी आदत बन जाता है। पूजा के नियम जैसे सुबह जल्दी उठना, साफ-सुथरे कपड़े पहनना और एक निश्चित समय पर भगवान के सामने बैठना, हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव लाते हैं। यह सिर्फ भगवान को खुश करने के लिए नहीं, बल्कि खुद को बेहतर बनाने के लिए है।
यह ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि पूजा विधि सिर्फ एक माध्यम है, लक्ष्य नहीं। अगर आप बिना किसी विधि के सच्चे दिल से भगवान को याद करते हैं और आपका मन शुद्ध है, तो भगवान उसे भी स्वीकार करते हैं। तुलसीदास जी ने भी कहा है: 'जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।' यानी, जिसकी जैसी भावना होती है, उसे प्रभु उसी रूप में दिखते हैं।
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अगर कोई व्यक्ति दिखावे के लिए बड़ी-बड़ी पूजा करता है, लेकिन उसका मन कपट से भरा है, तो ऐसी पूजा का कोई फायदा नहीं। इसके विपरीत एक गरीब इंसान अगर सच्चे मन से एक फूल भी चढ़ा दे तो भगवान उसे स्वीकार कर लेते हैं। तो पूजा विधि की जरूरत इसलिए है ताकि हमारा मन भटकने के बजाय सही दिशा में चले और हम अपने भाव को सही तरीके से व्यक्त कर सकें। लेकिन, यह भी सच है कि सच्ची भक्ति और शुद्ध भाव ही सबसे महत्वपूर्ण हैं।
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image credit: herzindagi
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