क्या आपने कभी सरस्वती नदी के बारे में सुना है? क्या आपने कभी सरस्वती नदी को भारत के किसी भाग में बहते हुए देखा है? क्या आपने कभी इस नदी के अस्तित्व पर सवाल उठाया है? क्या आपने सोचा है कि आखिर क्यों ये नदी विलुप्त हो गई है?
दरअसल हम आपको इस नदी से जुड़े कुछ सवालों के जवाब देने वाले हैं जो शायद इस नदी के रहस्य से जुड़ी कुछ बातों से पर्दा उठाने में मदद कर सकते हैं। आइए जानें आखिर कहां है इस नदी का अस्तित्व और क्या है इसकी रोचक कहानी।
सरस्वती नदी का उद्गम स्थान
जब हम बात सरस्वती नदी के उद्गम स्थान की करते हैं तो ये राजस्थान में अरावली पर्वत श्रृंखला के बीच से निकली, इसे अलकनंदा नदी की एक सहायक नदी कहा जाता है जिसका उद्गम स्थल उत्तराखंड में बद्रीनाथ के पास है।
नदी कच्छ के रण में मिलने से पहले पाटन और सिद्धपुर से होकर गुजरती है। ऐसा माना जाता है कि नदी कई हजार साल पहले अस्तित्व में थी और यह अब सूख गई या विलुप्त हो गई।
सरस्वती नदी के बारे में क्या कहते हैं हिंदू ग्रंथ
सरस्वती नदी का सबसे पहला उल्लेख प्राचीन हिंदू शास्त्रों में मिलता है। उत्तर वैदिक ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। इसके पानी का शक्तिशाली प्रवाह उन कुछ नदियों में से एक था जिन्हें कभी हिंदू धर्म के अनुयायियों द्वारा पूजा जाता था।
यही नहीं आज भी प्रयाग में त्रिवेणी का संगम स्थान है जिसमें स्नान मात्र से भक्तों के पाप धुल जाते हैं। यदि हम वैज्ञानिक तथ्यों की बात करें तो यह नदी हड़प्पा सभ्यता के दौरान अस्तित्व में थी। वास्तव में इस सभ्यता के कई महत्वपूर्ण भागों का निर्माण सरस्वती नदी के ही तट पर हुआ था।
महाभारत में है नदी का उल्लेख
महाभारत के कुछ पृष्ठों में इस नदी का उल्लेख है जो हरियाणा के सिरसा नामक एक कस्बे में कहीं विलुप्त हो गई थी। भौगोलिक इतिहास और पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि राजस्थान हमेशा से एक शुष्क स्थान नहीं था, बल्कि एक समय यह हरा-भरा क्षेत्र हुआ करता था जिसने एक बड़ी नदी प्रणाली की मेजबानी की, जिसके कारण इस क्षेत्र के आसपास मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता की स्थापना हुई थी।
महाभारत में वर्णित राजा पुरुरवा सरस्वती नदी के तट के पास अपनी होने वाली पत्नी उर्वशी से मिले थे। महाभारत का युद्ध न केवल सरस्वती नदी के पास लड़ा गया था बल्कि उसका पाठ भी तटों के पास ही हुआ था।
हिंदू पौराणिक कथाओं में सरस्वती नदी का महत्व
हिंदू पौराणिक कथाओं की मानें तो सरस्वती नदी देवी सरस्वती का ही एक रूप थी। माता सरस्वती को ज्ञान, संगीत और रचनात्मकता की देवी के रूप में पूजा जाता है, इसी वजह से इस नदी का भी महत्व बहुत ज्यादा है।
कई संस्कृत ग्रंथों में उल्लेख है कि भगवान शिव और देवी पार्वती की संतानों में से एक कार्तिकेयको सरस्वती नदी के तट के पास देव सेना का रक्षक नियुक्त किया गया था। वहीं भगवान विष्णु के एक अवतार परशुराम ने अत्याचारी राक्षस की हत्या के पाप का पश्चाताप करने के लिए सरस्वती नदी के पानी में स्नान किया था, जिससे उन्हें पापों से मुक्ति मिली थी।
सरस्वती नदी को मिला विलुप्त होने का श्राप
शास्त्रों के इस बात का जिक्र है कि एक बार जब वेदव्यास सरस्वती नदी के तट पर भगवान गणेश को महाभारत की कथा सुना रहे थे। उस समय ऋषि ने नदी को धीरे बहने का अनुरोध किया ताकि वह पाठ पूरा कर सके।
शक्तिशाली सरस्वती नदी ने उनकी बात नहीं मानी और अपने तीव्र प्रवाह में बहती रही। नदी के इस व्यवहार से क्रोधित होकर, भगवान गणेश ने नदी को श्राप दिया कि वह एक दिन विलुप्त ही जाएगी।
शायद एक वजह यह है कि नदी आज अपना अस्तित्व खो चुकी है। एक अन्य कथा की मानें तो माता सरस्वती का जन्म भगवान ब्रह्मा के सिर से हुआ था, उन्होंने ब्रह्मांड का निर्माण किया था। वह उन सबसे खूबसूरत स्त्रियों में से एक थीं जिन्हें भगवान ब्रह्मा ने देखा था।
उनकी सुंदरता को देखते हुए उन्होंने सरस्वती जी से विवाह का प्रस्ताव रखा। उस समय माता सरस्वती उनकी इस इच्छा से सहमत नहीं हुईं और नदी के रूप में जमीन के नीचे बहने लगी।
ये थे सरस्वती नदी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य जिनकी वजह से आज इस नदी एक अस्तित्व नहीं है, लेकिन फिर भी इसकी पवित्रता की वजह से इसकी पूजा होती है।
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