नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ और उसमें 18 लोगों की मौत की खबर ने तरह-तरह के सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां सरकार और प्रशासन स्टैंपेड के पीछे की वजह तलाश रही हैं, वहीं ऐसा दावा किया जा रहा है कि रेलवे स्टेशन पर आम दिनों के मुकाबले बहुत ज्यादा भीड़ थी और ऐसे में आखिरी समय पर एक ट्रेन का प्लेटफॉर्म बदल दिया गया, जिसकी वजह से भगदड़ की स्थिति पैदा हो गई। हालांकि, रेलवे के अधिकारियों का ऐसा कहना है कि किसी भी ट्रेन का प्लेटफॉर्म नहीं बदला गया था।
15 फरवरी यानी शनिवार की शाम नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर क्या हुआ क्या नहीं, यह तो जांच का विषय है। लेकिन, इस घटना के बाद कई लोगों के मन में यह सवाल है कि आखिर रेलवे क्यों किसी ट्रेन का प्लेटफॉर्म बदलता है और आखिरी समय पर प्लेटफॉर्म बदलने को लेकर क्या नियम हैं।
रेलवे कब बदलता है ट्रेन का प्लेटफॉर्म?
अगर आपने ट्रेन से ट्रैवल किया है, तो रेलवे की तरफ से स्टेशन पर वह अनाउंसमेंट जरूर सुनी होगी, जिसमें ट्रेन का नंबर, नाम और वह किस समय, कौन-से प्लेटफॉर्म पर आ रही इसकी जानकारी दी जाती है। लेकिन, कई बार ट्रेन के स्टेशन पर आने से कुछ मिनट पहले रेलवे की तरफ से प्लेटफॉर्म बदल दिया जाता है, ऐसे में यात्रियों के बीच भागमभाग मच जाती है। भारतीय रेलवे आखिरी मिनट पर प्लेटफॉर्म बदलने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है। लेकिन, रेलवे यह फैसला यूं ही नहीं ले लेता है। जी हां, इसके पीछे कई तरह की वजह होती हैं।
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रेलवे आखिरी समय पर जब प्लेटफॉर्म बदलता है, तो इसके पीछे तकनीकी गड़बड़ी हो सकती है। वहीं, कई बार ऐसा होता है कि जिस प्लेटफॉर्म पर ट्रेन ने आना था, वहां पर पहले से ही कोई गाड़ी खड़ी है और वह समय से देरी से चल रही है, तब रेलवे फैसला लेता है और पीछे से आ रही गाड़ी का प्लेटफॉर्म बदल देता है।
आखिरी मिनट रेलवे की तरफ से किसी ट्रेन का प्लेटफॉर्म बदलने के पीछे तकनीकी गड़बड़ी और आवगमन के समय में अंतराल होने के अलावा पटरियों पर गड़बड़ी, ऑपरेशनल जरूरतें, वीवीआईपी मूवमेंट, सुरक्षा के कारण और रेलवे ट्रैफिक नियंत्रण भी शामिल हो सकता है।
कौन लेता है प्लेटफॉर्म बदलने का फैसला?
रेलवे आखिरी मिनट क्यों प्लेटफॉर्म बदलता है, इस बारे में समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है। लेकिन, इसी के साथ यह सवाल उठता है कि आखिरी समय पर कौन प्लेटफॉर्म बदलने जैसा अहम फैसला लेता है, तो इसका जवाब स्टेशन मास्टर है।
दरअसल, भारतीय रेलवे की तरफ से ऑटोमेटिक ब्लॉक सिग्नलिंग का इस्तेमाल किया जाता है। इस सिग्नलिंग सिस्टम में किसी ट्रेन को स्टेशन पर पहुंचने के लिए आगे वाली ट्रेन के जाने का इंतजार नहीं करना है। लेकिन, ट्रेन किस प्लेटफॉर्म पर आएगी, इसका फैसला ऑटोमेटिक सिग्नल नहीं स्टेशन मास्टर लेता है। यह फैसला स्टेशन मास्टर ट्रेन की स्पीड और स्टेशन पर रुकने के समय के अनुसार तय किया जाता है।
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स्टेशन मास्टर जब ट्रेन के लिए प्लेटफॉर्म तय करता है तो वह गाड़ी प्रीमियम है या नहीं, यह भी देखता है। जी हां, आपने नोटिस किया होगा कि राजधानी, वंदे भारत ट्रेन या अन्य किसी प्रीमियम ट्रेन को रेलवे स्टेशन का वह प्लेटफॉर्म दिया जाता है जो गेट के सबसे पास होता है और सुविधाओं से लैस होता है।
आखिरी मिनट प्लेटफॉर्म बदलने पर क्या करें?
रेलवे की तरफ से जब प्लेटफॉर्म में आखिरी समय पर बदलाव किया जाता है, तो सबसे पहले यात्रियों को न घबराने की सलाह दी जाती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि घबराहट में वह तेजी से प्लेटफॉर्म पर इधर-उधर जाते हैं, जिसकी वजह से दुर्घटना या स्टैंपेड जैसी स्थिति बन जाती है। वहीं, रेलवे की तरफ से आखिरी मिनट पर प्लेटफॉर्म बदलने पर दूरी और समय दोनों का ध्यान रखा जाता है। जिससे यात्री आसानी से दूसरे प्लेटफॉर्म पर पहुंच जाएं।
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Image Credit: Herzindagi, Freepik and Jagran.com
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