पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग क्यों होती है? इस तरह के सवाल हर किसी के मन में आ रहे हैं। अचानक से यह मुद्दा इसलिए सामने आया है, क्योंकि पिछले कुछ समय से लद्दाख में शांतिपूर्ण आंदोलन चल रहा था, लेकिन अब इसने हिंसक रूप ले लिया है। कई जगहों पर आगजनी की घटनाएं भी देखने को मिली है, ऐसे में लोग जानना चाहते हैं कि पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जाने से क्या होगा। क्यों लोग चाहते हैं कि उनके शहर को एक पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए। अभी हाल ही में भारत के सबसे नए राज्य तेलंगाना को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला था। ऐसे ही कई राज्य हैं, जिन्हें पूर्ण राज्य का दर्जा मिल चुका है। आज के इस आर्टिकल में हम आपको इसके बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।
इस समय लोगों के मन में सवाल आ रहा है कि लद्दाख में स्थानीय लोग पूर्ण राज्य का दर्जा पाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं, इससे क्या होगा? तो बता दें कि इसका असर प्रशासन, कानून व्यवस्था और विकास योजनाओं पर सीधा पड़ता है।
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2019 में ही लद्दाख, जम्मू-कश्मीर से अलग होकर नया केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया था। अभी भारत के 8 केंद्र शासित प्रदेश में लद्दाख का भी नाम शामिल है। इसमें अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव, दिल्ली, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, लक्षद्वीप और पुडुचेरी का नाम शामिल है।
साल 2019 में जम्मू-कश्मीर में 370 हटाए जाने के बाद लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिला था, लेकिन इस फैसले के बाद स्थानीय लोगों को संस्कृति संरक्षण और पर्यावरणीय सुरक्षा को चिंता नजर आने लगी। इसके बाद उन्होंने लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की बात कही।
जम्मू और कश्मीर और दिल्ली के लोग भी अक्सर पूर्ण राज्य का दर्जा की मांग करते हैं। जम्मू और कश्मीर ने यह मांग 370 हटाए जाने के बाद शुरू की थी। इस समय भारत के 28 राज्य पूर्ण राज्य का दर्जा रखते हैं। इसके अलावा 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं, जिसमें केंद्र सरकार का सीधा नियंत्रण देखने को मिलता है। उनके पास राज्य जैसे पूर्ण अधिकार नहीं है।
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इसका सबसे बड़ा कारण सुरक्षा और रणनीतिक महत्व हो सकता है। लद्दाख भारत के उत्तरी छोर पर स्थित है। लद्दाख सीधे चीन और पाकिस्तान की सीमाओं से सटा होने की वजह से, यहां सुरक्षा पर ध्यान रखना ज्यादा जरूरी है। अगर इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाता है, तो केंद्र सरकार का नियंत्रण कम हो जाएगा। इससे निगरानी और राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में फैसला लेना मुश्किल हो जाएगा।
अभी केंद्र सरकार सीधे प्रशासन और सुरक्षा नीतियों पर नियंत्रण रख सकती है। अगर कोई भी किसी भी अप्रत्याशित सुरक्षा स्थिति देखने को मिलती है, तो फैसला लेना आसान होगा। इसलिए माना जा रहा है कि केंद्र सरकार यही चाहती होगी कि सुरक्षा और रणनीति की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों पर उसका नियंत्रण बना रहे।
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