इस साल 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाएगी। मकर संक्रांति के दिन सूर्य पूजन के साथ-साथ दान का भी अत्यंत महत्व होता है। आपको बता दें कि साल की 12 संक्रांतियों में से मकर संक्रांति को सबसे खास माना जाता है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि इसके पीछे का क्या कारण है।
मकर संक्रांति का महत्व अधिक क्यों होता है?
आपको बता दें कि सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो ये पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध की ओर गति करने लगती हैं क्योंकि हमारा देश उत्तरी गोलार्ध में है इसलिए सूर्य के उत्तरी गोलार्ध की ओर गति करने से दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य की ये स्थिति बेहद शुभ मानी जाती है। इस दौरान सूर्य की रोशनी से फसलें पकती हैं।(सूर्य देव का आशीर्वाद लिए आ रही है मकर संक्रांति, जानें शुभ मुहूर्त और महत्व) माना जाता है कि मकर संक्रांति से ठंड कम होने की शुरुआत हो जाती है। धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व के अलावा मकर संक्रांति का आयुर्वेदिक महत्व भी है।
संक्रांति को खिचड़ी भी कहते हैं। इस दिन चावल, तिल और गुड़ से बनी चीजें खाई जाती हैं और इससे शरीर को ताकत भी मिलती है। इस कारण से इस त्यौहार का महत्व अधिक माना जाता है।
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जानें इन संक्रांतियों के बारे में भी
आपको बता दें कि सूर्य जब मेष राशि में आता है तो ये मेष संक्रांति होती है। इसके अलावा जब सूर्य मीन राशि से मेष में प्रवेश करता है तो इस दिन पंजाब में बैसाख पर्व मनाया जाता है। बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। ये दिन भी पर्व की तरह मनाया जाता है।
इसे खेती का त्योहार भी कहते हैं क्योंकि रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है। आपको बता दें कि सूर्य का तुला राशि में प्रवेश करने पर तुला संक्रांति कहलाता है। अक्टूबर माह के मध्य में इस दिन को कर्नाटक में तुला संक्रमण कहा जाता है। कार्तिक स्नान भी इस दिन से शुरू होता है।(जानें क्या है मकर संक्रांति का भगवान विष्णु और शनिदेव से नाता)
मकर संक्रांति से लेकर कर्क संक्रांति के बीच के 6 माह का अंतराल होता है। सूर्य इस दिन मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में प्रवेश करता है। आपको बता दें कि कर्क संक्रांति जुलाई के मध्य में होती है।
इन सभी संक्रांतियों में सबसे ज्यादा महत्व मकर संक्रांति का ही होता है क्योंकि सूर्य, चांद और नक्षत्रों पर आधारित है और सूर्य सबसे अधिक मायने रखता है।
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