हारमोनियम भारत का लोकप्रिय संगीत वाद्य यंत्र में से एक है। आज भी मंदिर, प्रवचन, गुरुद्वारा और अन्य कॉन्सर्ट जैसे जगहों पर गायक हारमोनियम का उपयोग करते हैं। भारत में इतना लोकप्रिय होने के बाद भी इसे कुछ सालों तक भारत में बैन किया गया था। 1900 के दशक में जब देश स्वतंत्रता संग्राम की गति पकड़ रहा था, तब लीडर और लोगों में हारमोनियम को लेकर यह बहस छिड़ गई कि यह भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए उपयुक्त है कि नहीं?
इस दौरान ही देश में स्वदेशी मूवमेंट भी चल रहा था, जिसमें हारमोनियम के खिलाफ में लोग सामने आने लगे। हारमोनियम को लेकर बढ़ते विवाद को देखते हुए ऑल इंडिया रेडियो के वेस्टर्न म्यूजिक विंग के हेड ने एक पत्र लिखा, जिसके बाद 1940 में एआईआर पर हारमोनियम करीब तीन दशक तक बैन रहा। बाद में 1971 में यह बैन आंशिक रूप से हटा और उसके बाद पूरे देश में पूरी तरह से हारमोनियम पर लगे बैन को हटा दिया गया।
हारमोनियम पर बैन क्यों लगा?
हारमोनियम को लेकर लोगों के मन में यह सवाल उठने लगा कि यह भारतीय है कि नहीं...इस बीच बहुमुखी प्रतिभा के धनीनोबेल पुरस्कारविजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने भी यह मान लिया की हारमोनियम में दोलनशील गामाका नोट्स नहीं बजाया जा सकता। इसके बाद साहित्यकार ने आकाशवाणी कोलकाता को खत लिखकर स्टूडियो में हारमोनियम को बंद करने की मांग रखी। एआईआर के वेस्टर्न म्यूजिक विंग के हेड जॉन फोल्ड्स ने अपने लिखे पत्र में बताया कि हारमोनियम माइक्रोटोन पर मूक था, जो कि भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए बहुत जरूरी है।
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प्रसारण नियंत्रक के रूप में लियोनेल फील्डेन फोल्ड्स के तर्क से राजी हुए और 1 मार्च 1940 को आकाशवाणी ने हारमोनियम पर प्रतिबंध लगा दिया।
हारमोनियम से जुड़े फैक्ट
- हारमोनियम का आविष्कार 1700 के दशक में यूरोप में हुआ था।
- हारमोनियम में कई बदलाव करने के बाद 1842 में एलेक्जेंडर डेबेन नामक फ्रांसीसी आविष्कारक ने इसमें और परिवर्तन कर अपने इस डिजाइन को पेटेंट कराया और इसे हारमोनियम नाम दिया।
- 19वीं सदी में पश्चिमी व्यापारियों या मिशनरियों ने हारमोनियम को भारत लेकर आए।
- आज के हारमोनियम में 12 सुर और 22 श्रुतियां बजाई जा सकती है।
- रवींद्रनाथ टैगोर के अलावा जवाहरलाल नेहरू ने भी हारमोनियम के बैन पर सहमति जताई थी।
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