हिंदू शादियों में कई ऐसी रस्में हैं जिनका पालन सदियों से किया जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि विवाह से जुड़ी किसी भी रस्म का पालन करना जीवन में सौभाग्य लाने में मदद करता है। शादी में सिक्के से दुल्हन की मांग भरने से लेकर, विदाई के समय चावल उछालने तक कई ऐसे रीति रिवाज हैं जिनका पालन हम करते चले आ रहे हैं और जो हमारे जीवन में समृद्दि लाते हैं।
कई रीति रिवाजों के साथ कुछ प्रथाएं भी हैं जिनका पालन भी धर्म शास्त्रों के अनुसार अनिवार्य माना जाता है। ऐसी ही एक प्रथा है शादी की सभी रस्मों के दौरान दुल्हन का दूल्हे के बाईं ओर बैठना।
ऐसा माना जाता है कि यदि दुल्हन शादी के पूजन या हवन के दौरान दूल्हे के बाईं ओर ही बैठती है तभी शादी सही तरीके से पूर्ण मानी जाती है। हमने इस रस्म के बारे में गहराई से जानने के लिए नारद संचार के ज्योतिष अनिल जैन जी से बात की आइए जानें इसके पीछे के ज्योतिषीय कारणों के बारे में।
प्राचीन काल से चली आ रही है ये प्रथा
ऐसी मान्यता है कि विवाहों के कई प्रकार होते हैं। जैसे ब्रह्म विवाह, देव विवाह, अर्श विवाह, प्रजापत्य विवाह, गंदर्भ विवाह, असुर विवाह आदि। प्राचीन काल में जब विवाह होते थे तो कई बार असुर विवाह होते थे जिसमें कई तरह के असुर विवाह में बाधाएं उत्पन्न करते थे इसलिए दूल्हे अपनी दाहिनी तरफ अस्त्र शस्त्र रखते थे जिससे अपनी सुरक्षा कर सकें। इसलिए दुल्हन को बाईं तरफ बैठाया जाता था। उसी समय से ये प्रथा चली आ रही है जिसका पालन आज भी किया जाता है और विवाह के दौरान दुल्हन हमेशा बाईं तरफ ही बैठती है।
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व्यक्ति का ह्रदय बाईं ओर होता है
ऐसी मान्यता है कि यदि दुल्हन शादी के दौरान दूल्हे (क्यों किया जाता है दूल्हे और दुल्हन का गठबंधन) के बाएं हाथ की तरफ बैठती है तो हमेशा पति के ह्रदय के करीब रहती है। इसी वजह से सदियों से यह परंपरा चली आ रही है जिससे दूल्हे और दुल्हन के बीच प्रेम संबंध हमेशा के लिए अच्छे बने रहें और उनके बीच किसी तरह की लड़ाई न हो और सामंजस्य बना रहे।
बाएं हाथ को प्रेम का प्रतीक माना जाता है
हमेशा से ही दाहिने हाथ को शक्ति और कर्तव्यों का प्रतीक माना जाता रहा है, इसी वजह से सभी काम दाहिने हाथ से किए जाते हैं, वहीं बाएं हाथ को हमेशा प्रेम और सौहार्द्र का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यदि शादी के दौरान दुल्हन बाईं तरफ बैठती है तो वर और वधु के बीच सदैव प्रेम भाव बना रहता है।
इसी वजह से वैवाहिक जीवन को प्रेम का प्रतीक बनाने के लिए यह प्रथा आज भी चली आ रही है। इसके साथ ही, शास्त्रों के अनुसार पत्नी को वामांगिनी माना जाता है और उसे सदैव पति के बाईं तरफ ही रहने की सलाह दी जाती है। विवाह के मंडप में दूल्हे और दुल्हन अग्नि के साक्षी बनकर हमेशा के लिए एक दूसरे के हो जाते हैं इस वजह से इस प्रथा का अनुसरण किया जाता है।
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भगवान विष्णु के बाईं तरफ बैठती हैं माता लक्ष्मी
यदि हम शास्त्रों की मानें तो माता लक्ष्मी सदैव भगवान विष्णु के बाईं तरफ ही बैठती हैं। विवाह के दौरान दुल्हन को माता लक्ष्मी का रूप माना जाता है और दूल्हे को विष्णु जी का रूप माना जाता है। इसी वजह से दुल्हन का बाईं ओर बैठकर विवाह की सभी रस्में निभाना दोनों के रिश्तों के लिए उत्तम माना जाता है।
माता लक्ष्मी को सुख समृद्धि का प्रतीक माना गया है, इसी वजह से दुल्हन के आगमन से हमेशा खुशहाली बनी रहती है। यदि कुंडली की बात करें तो इसमें सातवां भाव हमेशा शादी का होता है। नवां भाव भाग्य का माना जाता है और ग्यारहवां भाग प्राप्ति का प्रतीक होता है। इसी वजह से दुल्हन के प्रवेश से भाग्य का उदय होता है और जिससे शुभ लाभ की प्राप्ति होती है।
इस प्रकार यदि दुल्हन लक्ष्मी जी के समान ही दूल्हे के बाएं भाग की तरफ बैठती है तो हमेशा घर में सुख समृद्धि बनी रहती है और वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।
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