हमारे आसपास ऐसी बहुत सी घटनाएं और बातें होती हैं जो रहस्यों से जुड़ी होती हैं। न जाने कितनी ऐसी मान्यताएं होती हैं जो सदियों से चली आ रही हैं और हम उनका कारण जानें बिना ही उनका अनुसरण करते आ रहे होते हैं। वहीं कुछ मंदिर भी ऐसे हैं जो कई रहस्यों का आइना दिखाते हैं और हमारी संस्कृति की विरासत हैं।
ऐसे ही मंदिरों में से एक है जगन्नाथ मंदिर। जहां हर साल रथ यात्रा का आयोजन होता है और सैकड़ों की संख्या में भक्त इस यात्रा में शामिल होते हैं। वहीं इस यात्रा से जुड़ी एक बात यह है कि इसके आरंभ के 15 दिन पहले भगवान जगन्नाथ बीमार हो जाते हैं और एकांत वास में चले जाते हैं।
उस समय मंदिर का वह हिस्सा बंद कर दिया जाता है जिसमें भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ मौजूद होते हैं। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें आखिर क्यों यात्रा से पहले बीमार हो जाते हैं भगवान जगन्नाथ और इसके पीछे की मान्यताएं क्या हैं।
मान्यता है कि यात्रा आरंभ होने के 15 दिन पहले भगवान जगन्नाथ को बुखार आ जाता है और वो एकांत वास में चले जाते हैं। इस दौरान वो भक्तों को दर्शन भी नहीं देते हैं। इस पूरी अवधि में उनके पास सिर्फ मुख्य पुजारियों का जाना होता है और वही भगवान का श्रृंगार करते हैं और और भोग लगाते हैं।
उस समय भगवान को दवा के साथ और आराम और देखभाल की भी आवश्यकता होती है। इस दौरान उन्हें जड़ी-बूटियों और औषधियों से युक्त भोजन दिया जाता है। पूरी तरह से ठीक होने के बाद भगवान यात्रा के लिए तैयार होते हैं और मंदिर से बाहर निकलते हैं।
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मान्यता यह है कि आषाढ़ के महीने में जब बहुत ज्यादा धूप और गर्मी होती है उस समय ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान गर्भ गृह से बाहर निकलकर 108 घड़े ठंडे पानी से स्नान करते हैं। इस दौरान उन्हें बाहर प्रांगण में निकालकर बैठाया जाता है और स्नान कराया जाता है।
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इस उत्सव को स्नान उत्सव कहा जाता है और इस दौरान सैकड़ों भक्त प्रांगण में आते हैं। इसी वजह से ज्येष्ठ पूर्णिमा के बाद 15 दिनों के लिए मुख्य मंदिर दर्शन के लिए बंद कर दिया जाता है क्योंकि ठंडे पानी से स्नान के बाद वो बीमार हो जाते हैं। इसके आलावा यदि हम वैज्ञानिक कारणों की बात करें तो पुरी में इस दौरान बहुत गर्मी होती है और इसलिए भक्त परेशान न हों इसलिए मुख्य मंदिर को कुछ दिनों के लिए बंद किया जाता है।
स्नान यात्रा के दिन भगवान जगन्नाथ पूरे दिन धूप में खड़े रहते हैं और ठंडे पानी से स्नान भी करते हैं, इसलिए माना जाता है कि ठंडा गर्म होने की वजह से ही वो बीमार होते हैं और उन्हें बुखार आता है। इसके बाद उन्हें उपचार के लिए एक कमरे में रखा जाता है जहां उन्हें भोजन के रूप में औषधि दी जाती है और उनका एक मरीज की तरह से इलाज किया जाता है।
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भगवान जगन्नाथ को कृष्ण जी का ही अवतार माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भक्तों का प्रेम और ज्यादा देखभाल पाने की चाह में भगवान बीमार हो जाते हैं। वह केवल मंदिर के भीतर रहकर ही भक्तों को आशीर्वाद नहीं देना चाहते हैं बल्कि वो भक्तों का प्यार चाहते हैं। बीमारी के 15 दिन में जब मंदिर बंद रहता है उस समय भगवान भक्तों के और करीब आते हैं और भक्त उनके दर्शन के लिए लालायित होने लगते हैं।
इन्हीं कारणों से रथ यात्रा से 15 दिन पहले भगवान एकांतवास में चले जाते हैं और ये भक्त और भगवान के बीचे के प्रेम को बढ़ाने का एक तरीका होता है।
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