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Why sindhi surname ends with ani

क्या आपको पता है सिंधी सरनेम के आखिर में अक्सर 'आनी' क्यों लगाया जाता है?

क्या कभी आपने सोचा है कि पारसियों के सरनेम में अधिकतर वाला क्यों लगा होता है? सिंधियों के सरनेम में अधिकतर आनी लगाया जाता है। आज हम इसके कारण के बारे में बात करेंगे। 
Editorial
Updated:- 2023-05-18, 17:38 IST

नाम और उनके पीछे के मतलब बहुत ही इंटरेस्टिंग हो सकते हैं। कई बार हम नोटिस करते हैं कि किसी एक कुनबे के नाम की शब्दावली एक जैसी ही होती है। ऐसा ही सरनेम के साथ भी है। भारत ही नहीं दुनिया भर में ऐसे कई सरनेम होते हैं जो एक तय पद्धति के आधार पर चलते हैं। उदाहरण के तौर पर कोरिया में किम सरनेम बहुत ही ज्यादा इस्तेमाल होता है। नाम ही नहीं लोग निकनेम में भी बहुत ध्यान देते हैं। भारत में भी सिंधी और पारसी कम्युनिटी में ऐसा ही होता है।

आपने अगर ध्यान दिया हो, तो सिंधियों और पारसियों के सरनेम के आगे एक सफिक्स लगा होता है। सफिक्स वो शब्द होता है जिसे अमूमन अन्य शब्दों के पीछे जुड़कर एक नया अर्थ बना देते हैं। ऐसे ही सरनेम के साथ भी होता है। पर ऐसा क्यों है इसके बारे में आज आपको बताते हैं।

आखिर क्यों सिंधियों के सरनेम में लगा होता है आनी?

हां, मैं मानती हूं कि लगभग 20% सिंधी सरनेम इसके बिना होते हैं, लेकिन अधिकतर में आनी लगा ही होता है। इसे ही सिंधी सरनेम की पहचान माना जाता है। इसके पीछे बहुत ही पुराना इतिहास खंगालना होगा।

sindhi surname

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ऋग वेद के जमाने में कुल को उनके पिता या दादा के नाम से जाना जाता था। जैसे पांडु के पुत्र पांडव थे। ऐसे ही ऋषि गर्ग के बच्चों को गर्गीन, पांचाल नरेश की बेटी पांचाली, प्रजापति दक्ष के बच्चों को दक्षायन और दक्षायनी आदि थे।

अधिकतर सरनेम में यान या यानी लगाया जाता था। ये दोनों ही संस्कृत शब्द हैं जिनका अर्थ वंशज होता है।

शब्द आनी भी संस्कृत शब्द अंश से बना है। ऐसे में दादा-परदादा के नाम के आगे आनी शब्द लगाने का प्रचलन शुरू हो गया। निखिल चंदवानी की किताब 'सिंधी हिंदू - हिस्ट्री, ट्रेडिशन और कल्चर' में भी आपको इसका जिक्र मिल जाएगा।

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ऐसे में कुछ उदाहरण भी दिए जा सकते हैं जैसे दीवान गीडुमल के वंशज गिडवानी हो गए। दीवान गीडुमल की कहानी बहुत फेमस है। 1754 में नूर मोहम्मद के वजीर हुआ करते थे जिनकी चर्चा दूर-दूर तक फैली हुई थी। दीवान गीडुमल सिंध के अमील (Amil) थे।

उनका जिक्र साज़ अग्रवाल की किताब 'द अमिल ऑफ सिंध' में भी किया गया है। उनके खुद के कोई बच्चे नहीं थे, लेकिन उनके भाई के बच्चों ने अपने नाम के आगे गिडवानी लगाना शुरू कर दिया था। यही कारण है कि अधिकतर सिंधी नामों के आगे ऐसे सरनेम लगाए गए हैं।

asrani and his surname

पारसी क्यों लगाते हैं सरनेम में वाला?

इसकी कहानी फेमस पारसी फूड चेन sodabottleopenerwala के ब्लॉग में दी गई है। आपने बाटलीवाला, घीवाला, दारूवाला जैसे कई सरनेम सुने होंगे। इसकी कहानी ब्रिटिश राज के दौरान शुरू हुई।

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ब्रिटिश राज में भारतीय परिवारों को ट्रैक करने के लिए परिवारों के नाम मांगे गए। पुराने समय में पारसियों के सरनेम नहीं हुआ करते थे। उस दौरान अधिकतर परिवारों ने अपने काम को अपने परिवार के नाम के तौर पर जोड़ दिया। इसलिए बाटलीवाला, दारूवाला, अखरोटवाला, बादामवाला आदि आया।

कुछ परिवारों ने अपने नाम के आगे जगह का नाम एड कर दिया जैसे कल्यानजीवाला, तारापोरेवाला, थानेवाला आदि। इसलिए आपको किसी वस्तु या फिर जगह के नाम के हिसाब से ही पारसियों के सरनेम मिल जाएंगे।

वैसे तो ये दोनों ही चर्चित थ्योरी हैं, लेकिन अधिकतर लोग इन्हें ही सच मानते हैं। उम्मीद है आपको पारसी और सिंधी सरनेम के बारे में थोड़ी जानकारी मिल गई होगी।

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