herzindagi
Why badrinath temple has a unique name

बद्रीनाथ के कपाट बंद करने के लिए आखिर क्यों पुजारी को धरना होता है स्त्री का रूप?

चार धाम में से एक बद्रीनाथ के बारे में कुछ बातें ऐसी भी हैं जिन्हें अधिकतर श्रद्धालु नहीं जानते। आज हम आपको ऐसी ही एक बात बताने जा रहे हैं। 
Editorial
Updated:- 2023-06-20, 03:00 IST

हर साल नंबर के महीने से लेकर अप्रैल तक बद्रीनाथ के कपाट बंद रहते हैं। भगवान बद्री विशाल के सामने बस एक दिया जलाकर छोड़ दिया जाता है। मान्यता है कि इस दिये की रक्षा खुद भगवान करते हैं इसलिए ही यह कई महीनों तक जलता रहता है। पर क्या आपको पता है कि बद्रीनाथ के कपाट बंद करने की एक खास विधि है? 

यह विधि सिर्फ बद्रीनाथ के रावल ही निभाते हैं और इसके लिए पूजा कपाट बंद होने के चार दिन पहले ही शुरू हो जाती है। 

बद्रीनाथ की पंच पूजा

शायद आपको इसके बारे में पता ना हो, लेकिन बद्रीनाथ के रावल को कपाट बंद करने के लिए एक स्त्री का रूप धरना पड़ता है। शुरुआत देव के श्रृंगार से होती है। फूलों से देव को सजाने के बाद पूजा की विधि शुरू होती है। कपाट बंद होने की प्रक्रिया से पहले कुछ अनुष्ठान करने जरूरी हैं। 

badrinath temple important facts

यही अनुष्ठान कहलाते हैं पंच पूजा। जिसमें मंत्रों के जाप के साथ ही मंदिर की मूर्तियों को गर्भ गृह में रखा जाता है। यहां के पुजारी इस पंच पूजा के लिए कई दिनों तक तैयारियां करते हैं। पूजा में जिस तरह की सामग्री का प्रयोग होता है उन्हें भी पुजारी ही इकट्ठा करते हैं। इस दौरान श्रद्धालु मंदिर में आ तो सकते हैं, लेकिन पंच पूजा की विधि में शामिल नहीं हो सकते हैं। 

इसे जरूर पढ़ें- बद्रीनाथ मंदिर के आसपास मौजूद इन अद्भुत जगहों का जरूर करें भ्रमण

रावल को बनना पड़ा है स्त्री

बद्रीनाथ धाम में एक साथ कई मंदिर मौजूद हैं। इसमें से एक है लक्ष्मी जी का मंदिर। बद्रीनाथ धाम में लक्ष्मी जी का मंदिर बाहर की तरफ है। यहां हिंदू धर्म के हिसाब से पराई स्त्री को ना छूने की परंपरा को निभाया जाता है। मूर्ति को उठाना मुख्य पुजारी को ही है और इसलिए रावल जी को लक्ष्मी की सखी पार्वती का रूप धरकर लक्ष्मी मंदिर में प्रवेश करना होता है। 

यह विडियो भी देखें

कौन हैं बद्रीनाथ के रावल?

बद्रीनाथ का रावल यानी वहां का मुख्य पुजारी। यहां शिव पूजा के लिए केरल के नंबूदिरी ब्राह्मणों का एक तबका ही चुना जाता है। हमेशा इसी जाति के लोग मुख्य पुजारी की भूमिका में रहते हैं। फिलहाल यह पदवी ईश्वर प्रसाद नंबूदिरी को प्राप्त है। 

माना जाता है कि नंबूदिरी पंडितों को बद्रीनाथ धाम लाकर पूजा करवाने का यह प्रचलन सदियों पहले गुरू शंकराचार्य ने शुरू किया था। 

badrinath temple and its history

इसे जरूर पढ़ें- बद्रीनाथ मंदिर से जुड़ी हुई हैं ये 3 रोचक बातें 

आखिर क्या है बद्रीनाथ धाम के पीछे की कथा? 

पौराणिक कथा के अनुसार बद्री यानी जामुन के पेड़ के कारण यहां का नाम बद्रीनाथ बना। भगवान विष्णु जब इस स्थान पर अपनी तपस्या में लीन थे तब बर्फबारी होने लगी। उस दौरान विष्णु को बचाने के लिए लक्ष्मी माता ने बद्री यानी जामुन के पेड़ का रूप लिया और उन्हें मौसम की मार से बचाया।  

जब विष्णु भगवान ने अपनी आंखें खोलीं, तो उन्हें अहसास हुआ कि उनकी पत्नी खुद बर्फ में ढकी हुई हैं। तब नारायण ने यह वचन दिया कि इसी स्थान पर तुम्हारे साथ मेरी पूजा होगी। बद्री के पेड़ के रूप में लक्ष्मी ने विष्णु की सहायता की थी इसलिए इस जगह का नाम बद्रीनाथ पड़ा।  

बद्रीनाथ के मंदिर में जिस शालिग्राम से बनी मूर्ति की पूजा की जाती है उसे 8वीं शताब्दी का माना जाता है।  

बद्रीनाथ चारधाम यात्रा का आखिरी पड़ाव होता है और इसके कपाट ही सबसे बाद में खुलते हैं। बद्रीनाथ के पहले केदारनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री के कपाट खोल दिए जाते हैं। 

 

अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो आप हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।     

Disclaimer

हमारा उद्देश्य अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी प्रदान करना है। यहां बताए गए उपाय, सलाह और बातें केवल सामान्य जानकारी के लिए हैं। किसी भी तरह के हेल्थ, ब्यूटी, लाइफ हैक्स या ज्योतिष से जुड़े सुझावों को आजमाने से पहले कृपया अपने विशेषज्ञ से परामर्श लें। किसी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, compliant_gro@jagrannewmedia.com पर हमसे संपर्क करें।