ऑटिज्म क्या है यह क्यों होता है? इस बारे में लोग कम या कहिए शायद ही जानते हैं। हमारी बॉलीवुड फिल्में भी इस डिसऑर्डर पर कहानियां बुन चुकी हैं, लेकिन सही मतलब फिर भी किसी को शायद समझ आया हो। ऐसा कहा जाता है कि जब खुद पर गुजरती है तो पता चलता है।
जब किसी बच्चे को इस तरह का कोई डिसऑर्डर होता है तो उसकी मां को हिम्मती बनना होता है। जरूरी है कि ऐसे मुद्दे को पहले एक मां बेहतर तरीके से समझे और यही समझा डॉ. रश्मि दासे ने। डॉ. रश्मि दास का ऑटिज्म के प्रति जागरूकता फैलाने का जो प्रयास है वो काबिल-ए-तारीफ है। उन्होंने एक ऐसा मंच बनाया, जिसने ऐसे लाखों बच्चों और उनके परिवारों को एक नई उम्मीद दी।
चलिए आपको ऑटिज्स-ग्रसित बच्चों के लिए AuTypical जैसा मंच बनाने वाली राइटर, जनर्लिस्ट और ऑटिज्म मॉम डॉ. रश्मि दास से आज रूबरू करवाएं।
कौन हैं डॉ. रश्मि दास?
दो स्थापित मैगजीन और वेब पोर्टल्स टेलिकॉम और इंफ्रालाइव जैसी कंपनी को बनाने के पीछे डॉ. रश्मि दास का हाथ है। 25 साल पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने एक नाम बनाया। फाइनेंस, टेक और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर्स में उनकी मजबूत पकड़ है। इतना ही नहीं उन्होंने 'E-Com in India-Violations & Tax Avoidance' नाम की किताब भी लिखी जो भारत की ई-कॉम कंपनियों के बिजनेस स्ट्रक्चर को समझने में मदद करती है।
ऑटिज्म के बच्चों के लिए यह मंच उन्होंने यूं ही नहीं बनाया। इस डिसऑर्डर के बारे में उन्होंने गहराई से तब जाना, जब 2.8 साल की उम्र में उनके बेटे को ऑटिज्म डायग्नोज हुआ। वह कहती हैं, 'इसने कई अन्वेषणों की खोज के साथ एक यात्रा शुरू की, मेरा उद्देश्य सर्वोत्तम शिक्षण और पाठ्यक्रम खोजना था। मैंने यूके, यूएस और जापान की कई फील्ड यात्राएं कीं, विशेषज्ञों से मुलाकात की जिन्होंने इस क्षेत्र में एक मजबूत कार्य योजना तैयार करने में मदद की।'
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कैसे शुरू हुआ AuTypical?
AuTypical एक ऐसा मंच है जो कला के क्षेत्र में ऑटिज्मग्रसित बच्चों की काबिलियत को दर्शाता है। यह मंच कैसे शुरू हुआ इस बारे में डॉ. रश्मि बताती हैं,'AuTypical.in कला के क्षेत्र में ऑटिस्टिक बच्चों और युवा वयस्कों की क्षमताओं को प्रदर्शित करने के लिए एक सार्वजनिक उद्देश्य का मंच है। विजुअल लर्निंग और टीचिंग के इस विषय में गहराई से उतरने पर पता चला कि ऑटिस्टिक द्वारा कला कई शोधों का विषय है। अधिकांश ऑटिस्टिक बच्चे किसी न किसी प्रकार की कला में रुचि रखते हैं और कई बच्चे ऐसे हैं जिनमें उन्नत कौशल है।'
डॉ. दास आगे बताती हैं, 'मेरे मन में कई सवाल थे। सिनेस्थेसिया में ध्वनियों को सुनते समय रंगों को देखने के उदाहरण सर्वविदित है, क्या यह रंग और बनावट के लिए ऑटिस्टिक लगाव की व्याख्या करता है? क्या ऑटिस्टिक्स के बीच कला एक मजबूत मौलिक प्रतिवर्त है? इसी तरह हजारों सवाल मेरे मन में आते रहे।
उत्तर विज्ञान को जांचना है लेकिन मुझे उत्सुकता हुई और महसूस हुआ कि ऑटिस्टिक की क्षमताओं के प्रति एक वैज्ञानिक और प्रगतिशील अभिविन्यास की आवश्यकता थी। बस इसी तरह Autypical शुरू हुआ।'
यह मंच समय-समय पर ऐसे बच्चों की मदद करने के लिए पहुंचता है। टीम स्पेशल जरूरतों वाले समुदायों तक डिजिटल, प्रिंट और कैंपेन के द्वारा पहुंचती है और ऑटिस्टिक बच्चों और युवा वयस्कों वाले परिवारों से उनकी आर्ट को हम तक पहुंचाने के बारे में बात करती है। हाई-रेजोल्यूशन में कलाकृतियां प्राप्त होने के बाद, उन्हें आर्टिस्ट के छोटे से बायो के साथ क्यूरेट और डिजिटल रूप से प्रस्तुत किया जाता है। AuTypical का उद्देश्य ऑटिस्टिक कलाकारों के कार्यों को प्रदर्शित करना और मुख्यधारा में लाना है और उन्हें उनके काम के लिए खरीदार और एक बाजार खोजने में मदद करना है।
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डॉ. दास कहती हैं, 'हम कलाकारों, गैलरी या किसी अन्य संस्था से कोई भी योगदान नहीं लेते। यह एक वॉलन्टरी सर्विस है। यही कारण है और हमारे प्रयासों के बाद, इसी साल राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्राहलय (NGMA) नई दिल्ली ने ऑटिज्म वीक पर एक लंबा प्रोग्राम आयोजित किया था। शाम को वे पूरी बिल्डिंग को ब्लू लाइट्स से जगमग करते ताकि ऑटिज्म के प्रति जागरूकती फैलाई जा सके। इस तरह यह एक ग्लोबल कैंपेन से जुड़ा। दिल्ली ही नहीं, मुंबई और बैंग्लोर स्थित एजीएमए ने भी ऐसा किया। जैसे आदि शंकराचार्य ने कहा है कि एक दीये से दूसरे दीये जलते हैं, वैसे ही यह कैंपेन इतना आगे तक पहुंचा। इस दौरान ऑटिस्टिक बच्चों और उनके परिवारों ने एनजीएमए परिसर का दौरा भी किया और बच्चों ने दीवारों में पेंट भी किया।'
डॉ. दास को बेहद खुशी मिलती है, जब उनके बच्चे आगे बढ़ते हैं। बड़े-बड़े आर्ट शो में जब लोग उनसे मिलते हैं, हाथ मिलाते हैं और उनकी प्रशंसा करते हैं, तो एक मां का सीना गर्व से फूल जाता है। इस समय दिल्ली का कनॉट प्लेस स्थित धूमिमल आर्ट गैलरी में ऑटिस्टिक आर्टिस्ट्स की आर्ट का शानदार एग्जिबिशन 29 सितंबर से लगा है। माननीय मंत्री, श्री राजीव चंद्रशेखर ने आर्ट शो का उद्घाटन किया। इस दौरान वह, गैलरी के क्यूरेटर धूमिमल के परिवार आदि ने बच्चों का उत्साह बढ़ाया और उनके साथ सम्मान और स्नेह से व्यवहार किया।
डॉ. रश्मि दास हमारे लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं हैं। उनके काम की जितनी सराहना की जाए, उतना कम है। ऑटिज्म के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए जो उन्होंने प्रयास किए हैं, उन्हें सलाम।
अगर आपने अब तक धूमिमल आर्ट गैलरी में इन होनहार बच्चों की प्रतिभा को नहीं देखा, तो आप भी वहां जरूर जाएं। उन बच्चों का प्रोत्साहन बढ़ाएं।
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