महामारी के बाद से लोगों को इंश्योरेंस यानी बीमा की अहमियत का पता चला है। जहां लोग बीमारी के इलाज के लिए हेल्थ इंश्योरेंस ले रहे हैं। वहीं, अपनी फैमिली को फाइनेंशियल सिक्योरिटी देने के लिए टर्म इंश्योरेंस खरीद रहे हैं। टर्म इश्योरेंस, एक तरह की जीवन बीमा पॉलिसी है। इस पॉलिसी के तहत, पॉलिसी टर्म के दौरान अगर बीमाधारक की मौत हो जाती है, तो टर्म प्लान की पूरी राशि उसके नॉमिनी को दे दी जाती है।
अगर आप भी अपनी फैमिली के लिए टर्म प्लान लेने की सोच रहे हैं, तो यह जान लेना जरूरी है कि टर्म इंश्योरेंस में किस तरह की मृत्यु को कवर नहीं किया जाता है। अगर बीमाधारक की मृत्यु टर्म प्लान के तहत कवर होने वाले कारणों से होती है, तो क्लेम का पैसा मिल जाता है। लेकिन, अगर टर्म प्लान के अलावा किसी और वजह से बीमाधारक की मौत होती है, तो उसके परिवार को डेथ कवरेज नहीं मिलता है।
आज हम इस आर्टिकल में बताने वाले हैं कि टर्म इंश्योरेंस में किस तरह की मौत को कवर नहीं किया जाता है।
अगर नॉमिनी ने ही बीमाधारक की हत्या की होती है, तो बीमा कंपनी उसके क्लेम को रिजेक्ट कर देती है। ऐसे मामलों में, क्लेम रिक्वेस्ट को तब तक होल्ड पर रखा जाता है, जब तक नॉमिनी निर्दोष साबित नहीं हो जाता। इसके अलावा, अगर बीमाहोल्डर की मौत आपराधिक गतिविधि में शामिल होने की वजह से हुई है, तो नॉमिनी को डेथ कवरेज नहीं मिलता है।
वैसे तो बीमा कंपनी, टर्म इंश्योरेंस अधिक शराब पीने वाले लोगों के लिए जारी नहीं करती हैं। यदि बीमाधारक की मौत ड्रग्स या शराब के ओवरडोज से हो जाती है, तो क्लेम को बीमा कंपनी रिजेक्ट कर देती है। इसके अलावा, यदि बीमाधारक की मृत्यु शराब के नशे में गाड़ी चलाते हुए होती है, तब भी बीमा कंपनी डेथ कवर क्लेम को खारिज कर देती है।
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चक्रवात, भूकंप, सुनामी, बाढ़, आग, युद्ध आदि प्राकृतिक आपदा आने पर अगर बीमाधारक की मृत्यु हो जाती है, तो बीमा कंपनी नॉमिनी को क्लेम राशि नहीं देती है।
कार रेसिंग, बाइक रेसिंग, स्काई डाइविंग, पैरा ग्लाइडिंग और बंजी जंपिंग जैसी एक्टिविटी करते हुए अगर बीमाधारक की मौत हो जाती है, तो टर्म प्लान के तहत इसे कवर नहीं किया जाता है। इसलिए, टर्म इंश्योरेंस खरीदते समय यह जानकारी बीमा कंपनी को देनी चाहिए।
1 जनवरी 2014 से पहले वाली पॉलिसी में पुराना क्लॉज था, जिसमें अगर बीमाधारक पॉलिसी लेने या रिवाइव होने के 1 साल के भीतर आत्महत्या कर लेता है, तो नॉमिनी द्वारा किया गया क्लेम रिजेक्ट हो जाएगा। वहीं, 1 जनवरी 2014 के बाद नया क्लॉज बनाया गया, जिसमें अगर बीमाधारक पॉलिसी लेने के 1 साल बाद आत्महत्या कर लेता है, तो लिंक्ड प्लान के मामले में नॉमिनी को पूरा पॉलिसी फंड वैल्यू मिल जाएगा। अगर नॉन-लिंक्ड प्लान है, तो नॉमिनी को प्रीमियम का 80 पॉलिसी फंड वैल्यू मिलेगा।
कई बार लोग टर्म इंश्योरेंस लेते समय पुरानी बीमारियों का खुलासा नहीं करते हैं। उन्हें लगता है कि कहीं प्रीमियम बढ़ा ना दिया जाए या पॉलिसी लेने में कोई समस्या पैदा ना हो जाए। वहीं, अगर बीमाधारक टर्म इंश्योरेंस लेते समय अपनी पुरानी बीमारियों के बारे में खुलासा नहीं करता है, तो उस बीमारी से मौत होने पर बीमा कंपनी क्लेम को रिजेक्ट कर देती है। आपको बता दें कि HIV या एड्स से हुई मृत्यु के मामले में टर्म प्लान में कवर नहीं दिया जाता है।
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अगर आप एक महिला हैं और आपने टर्म इंश्योरेंस लिया हुआ है, तो आपको बता दें कि अगर आपकी मृत्यु बच्चे को जन्म देते हुए हो जाती है, तो नॉमिनी को क्लेम की राशि नहीं मिलती है।
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