महाभारत को धर्म युद्ध कहा जाता है, जिसमें केवल कौरव और पांडव ही नहीं, बल्कि कई ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था। उन्हीं में से एक थे सूर्यपुत्र कर्ण, जो न केवल एक पराक्रमी योद्धा थे, बल्कि अपनी उदारता और दानशीलता के लिए आज भी जाने जाते हैं। कर्ण को सबसे बड़ा दानी माना जाता है। यहां तक कि भगवान श्रीकृष्ण भी उनकी दानवीरता के प्रशंसक थे और उन्हें सबसे महान दानी मानते थे। यही वजह है कि उन्हें दानवीर कर्ण भी कहा जाता है।
महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण और कर्ण के कई संवादों का जिक्र किया गया है। जिनमें से एक यह भी है कि कर्ण ने अर्जुन से हारने के बाद आखिरी समय में भगवान श्रीकृष्ण से तीन वरदान मांगे थे। लेकिन, वह वरदान क्या थे और श्रीकृष्ण ने क्यों उन्हें पूरा किया था इस बारे में हमें ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने बताया है। आइए, इस बारे में यहां विस्तार से जानते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत की युद्ध भूमि में घायल होकर जब कर्ण अपनी मृत्यु का इंतजार कर रहा था। उस समय अर्जुन ने आकर श्रीकृष्ण से कहा था कि आपका दानवीर कर्ण असहाय होकर मौत का इंतजार कर रहा है। इसके बाद श्रीकृष्ण ब्राह्मण के भेष में कर्ण से मिलने के लिए गए और कहा कि मैं आपसे दान मांगने आया था, लेकिन आप जिस अवस्था में है क्या दे सकेंगे। यह सुनने के बाद कर्ण ने पास पड़े पत्थर से अपना सोने का दांत तोड़ दिया और ब्राह्मण को अर्पण कर दिया। कर्ण की दानवीरता देखकर श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गए और अपने वास्तविक रूप में आ गए। भगवान श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर कर्ण से वरदान मांगने के लिए कहा। यह देख भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गए और वरदान मांगने के लिए कहा। तब कर्ण ने तीन वरदान मांगे। आइए, यहां जानते हैं कि श्रीकृष्ण से कर्ण ने क्या-क्या वरदान मांगे थे।
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कर्ण ने पहले वरदान में मांगा कि जाति और धर्म के आधार पर होने वाला भेदभाव समाप्त हो जाए। जैसा भेदभाव उनके साथ हुआ, वैसा अन्य किसी के साथ न हो। दरअसल, कर्ण का जन्म सूर्य देव के आशीर्वाद से कुंती के गर्भ से हुआ था, जब वह अविवाहित थीं। अविवाहित अवस्था में मां बनने से उनके चरित्र पर सवाल उठ सकता है, इस डर से उन्होंने अपने पुत्र को छिपाकर रखा। गुप्त पालन-पोषण होने की वजह से कर्ण को सूत पुत्र भी कहा गया है, जिसकी वजह से उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा। लेकिन, सबसे बड़ा भेदभाव तब हुआ जब द्रोणाचार्य ने उन्हें अपना शिष्य बनाने से मना कर दिया था।
सूर्य पुत्र ने दूसरे वरदान में मांगा कि जब भी श्रीकृष्ण अगला जन्म लें, तो उसी राज्य में लें जहां से कर्ण का नाता रहा है।
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कर्ण ने तीसरे वरदान में श्रीकृष्ण से मांगा था कि उनका अंतिम संस्कार ऐसे स्थान पर किया जाए जहां कभी कोई पाप या अधर्म न हुआ हो। वह स्थान पूरी तरह से शुद्ध और निष्पाप होना चाहिए। साथ ही मेरी अस्थियां ऐसी जगह प्रवाहित की जाए, जहां किसी की अस्थियां नहीं प्रवाहित की गई हों। लेकिन, महाभारत के युद्ध के बाद ऐसा कोई भी स्थान नहीं बचा था जहां कोई पाप या अधर्म न हुआ हो। ऐसी मान्यता है कि कर्ण की मृत्यु के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अपने हाथों पर उसका अंतिम संस्कार किया था। साथ ही कर्ण प्रयाग पर अस्थियां प्रवाहित की थीं। यही वजह है कि आज लोग कर्णप्रयाग पर पिंडदान और अपनों की अस्थियां प्रवाहित करने के लिए पहुंचते हैं।
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Image Credit: Open AI
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