Karwa Chauth Moon: करवा चौथ पर चांद रात 8 बजे के बाद ही क्यों निकलता है?

करवा चौथ का व्रत सुहागिनों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है जहां चांद देखकर ही कुछ खाया जाता है, लेकिन बस यही एक दिन है जब चांद निकलने का नाम ही नहीं लेता। 

Why Moon rises late during karwa chauth

हिन्दू धर्म में करवा चौथ का बहुत महत्व माना जाता है। सुहागिनों के लिए यह पर्व बहुत खास होता है। इस दिन निर्जल व्रत रखने से सुहागिनों को अखंड सौभग्य मिलता है और दांपत्य जीवन में मधुरता आती है। इस साल करवा चौथ का व्रत 1 नवंबर को रखा जाएगा। करवा चौथ से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। इन्हीं मान्यताओं में से एक है चांद का देरी से निकलना।

ऐसा हर साल होता है कि करवा चौथ के दिन चंद्रमा बहुत देरी से निकलता है जिसके कारण सुहागिन स्त्रीयों का व्रत बहुत देरी से पारण होता है। असल में पहले दिन के मुकाबले हर दिन चंद्रमा 30 से 40 मिनट देरी से निकलता है। अब आप कहेंगे कि ये तो बेसिक साइंस है और यह तो आपने बचपन में भी पढ़ा होगा, लेकिन यही लॉजिक है जिसके कारण करवा चौथ के दिन पत्नियां थोड़े ज्यादा समय के लिए भूखी रह जाती हैं। करवा चौथ के दिन पर हर महिला का एक ही सवाल होता है कि आखिर रोजाना 6 बजे निकलने वाला चांद इस दिन रात में 8 क्यों बजा देता है। इतनी देर से निकलने के बाद चांद को पूरा उदय होने में भी समय लगता है।

करवा चौथ के दिन आसमान ताकते हुए बहुत समय निकल जाता है और फिर आप ध्यान दें तो 8 बजे के आस-पास लाल रंग का चांद कहीं से झांकता हुआ दिखता है।

क्यों करवा चौथ पर हमेशा देरी से निकलता है चांद?

इसका जवाब काफी साइंटिफिक है और मून साइकिल पर इसकी चाल निर्भर करती है। दरअसल, सिर्फ करवा चौथ पर ही नहीं, बल्कि महीने की हर चौथ को चांद देरी से ही निकलता है, लेकिन हम इस पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। एवरेज देखें तो, हर रोज पहले दिन की तुलना में चांद 40 से 50 मिनट देरी से निकलता है। कुछ-कुछ ऐसा ही सूर्योदय के समय भी होता है, लेकिन उसका अंतर इतना कम होता है कि हम समझ नहीं पाते। यह वैसे ही है जैसे दिन घटते और बढ़ते रहते हैं।

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चांद हमारी पृथ्वी का चक्कर 28 (मूलत: 27.3 दिन) दिनों में पूरा करता है और हर रोज, हर क्षण धरती, सूरज और चांद का एंगल बदलता रहता है। अब परिक्रमा करने के लिए चांद को हमेशा 12 डिग्री के एंगल में घूमना पड़ता है। अगर ऐसा नहीं होगा, तो चांद ठीक से नहीं घूम पाएगा। यही कारण है कि रोजाना जब चांद उदय होता है, तो पहले के मुकाबले थोड़ा दूर या पास नजर आता है। कई बार चांद छोटा या बड़ा भी इसी कारण से दिखता है।

इस दूरी के कम और ज्यादा होने के कारण ही हमें कई बार शाम के समय भी चांद के दर्शन हो जाते हैं और कई बार रात ढलने तक भी नहीं होते हैं।

ऐसे में जब चांद और सूर्य के बीच कोई ग्रह आ जाता है, तो चंद्रग्रहण लगता है। इसका उल्टा होता है जब सूरज और पृथ्वी के बीच चांद आ जाता है और सूर्यग्रहण लग जाता है। अब अगर चांद सूरज और पृथ्वी के बीच है, तो चांद के आधे हिस्से पर छाया पड़ती है जिसके कारण पृथ्वी से ये पूरी तरह से नहीं दिख पाता और इसलिए ही यह हमें छोटा दिखता है और अमावस का दिन आता है। इसका कारण यह होता है कि चांद खुद को सूरज की रोशनी से बहुत दूर कर लेता है।

अब अगर पूर्णिमा की बात करें, तो जब चांद बाएं से दाएं की ओर जाता है, तो वो सूरज के ज्यादा करीब होता है और पूरे चांद पर सूरज की रोशनी पड़ती है जिससे वह ज्यादा बड़ा और उजला दिखता है।

अब क्योंकि 27.3 दिनों का चक्र है और पृथ्वी हर 24 घंटे में एक चक्कर लगा लेती है, तो चांद और पृथ्वी की रफ्तार के कारण हर दिन चांद उदय का समय बदल जाता है। यही कारण है कि हिंदी कैलेंडर के हिसाब से महीने की हर चौथ को चांद उगने का देर से हो जाता है।

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आपने करवा चौथ की कथाएं सुनी होंगी जिसमें चांद के देरी से निकलने के पीछे का कारण बताया गया है, लेकिन इसका मुख्य कारण यही है। अब अगर आपसे कोई करवा चौथ पर चांद देरी से निकलने का कारण पूछे तो आप विस्तार से उसे समझा सकते हैं।

नोट: यह जानकारी लंबोदर मिश्रा के रिसर्च पेपर से ली गई है। इस रिसर्च पेपर को आप 'How much do you know about the Earth and the Moon?' नाम से सर्च कर सकते हैं। ये रिसर्च पेपर मार्च 2012 में पब्लिश किया गया है। यहीं से जाकर आप जानकारी ले सकते हैं कि किस तरह से चंद्रमा पृथ्वी के चक्कर काटता है। इसे http://nopr.niscair.res.in नामक वेबसाइट पर पोस्ट किया गया है।

नासा की वेबसाइट पर भी इस बारे में जानकारी दी गई है। साथ ही, कई अन्य रिसर्च रिपोर्ट्स में भी इसका जिक्र हुआ है।

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