मॉडर्न वर्ल्ड में हर दिन तकनीक से लेकर कल्चर में हम बदलाव देख रहे हैं। भारत में पहले जहां पैरेंट्स अपने बच्चों के साथ उम्र भर रहते थे, वह अब बच्चों को उड़ने और जिंदगी आजादी से जीने की छूट देने लगे हैं। ऐसे में कई बार पैरेंट्स बच्चों को खुद से दूर यानी अलग घर या शहर में रहने के लिए भेज देते हैं। तो कुछ साथ रहते हैं लेकिन, रोजमर्रा की जिंदगी में किसी तरह की रोकटोक नहीं करते हैं यानी फुल कंट्रोल बच्चे के हाथ में दे देते हैं। पेरेंटिंग का यह तरीका पैसेंजर पेरेंटिंग के नाम से जाना जा रहा है। हालांकि, यह भारत में अभी मेट्रो सिटी और शहरी इलाकों में ज्यादा देखने को मिल रहा है। पेरेंटिंग का यह तरीका बच्चों के लिए कितना अच्छा है या कितना बुरा यह इस आर्टिकल में समझने की कोशिश करते हैं।
क्या है पैसेंजर पेरेंटिंग?
पैसेंजर पेरेंटिंग के मतलब की बात करें तो यह बिल्कुल उस तरह है कि बच्चे की जिंदगी को बैकसीट पर बैठकर देखना लेकिन, उसमें किसी भी तरह का दखल नहीं देना। यानी बच्चा जो भी फैसला लेता है उसमें पैरेंट्स किसी भी तरह की दखलअंदाजी नहीं करते हैं। वह डायरेक्शन तो अपने बच्चों को दिखाते हैं, लेकिन जिंदगीनुमा गाड़ी ड्राइव करने का पूरा कंट्रोल बच्चों के हाथ में दे देते हैं। पैसेंजर पेरेंटिंग का मकसद बच्चों को सेल्फ डिपेंडेंट बनाना और उनके अंदर खुद के फैसले लेने की आदत डेव्लप करना है।
अगर आप पैसेंजर पेरेंटिंग का मतलब यह समझ रही हैं कि इसमें बच्चे अपनी जिंदगी में क्या कर रहे हैं, इसे पूरी तरह नजरअंदाज कर देना होता है तो आप गलत हैं। यह एक बैलेंस तरीका माना जा सकता है जिसमें बच्चों की स्पेस और फैसलों की रिस्पेक्ट करना शामिल है। क्योंकि, पहले के पेरेंटिंग के तरीकों में बच्चों को क्या खाना है, कैसे पढ़ना है, कब आराम करना से लेकर किसके साथ खेलने जाना है यह तक माता-पिता के हाथ में होता था। हालांकि, बदलते समय के साथ यह तरीका अब पैरेंट्स धीरे-धीरे पीछे छोड़ रहे हैं।
इसे भी पढ़ें: 15-16 साल की बेटी हो जाए तो जरूर सिखाएं ये बातें, नहीं होगी परेशान और रहेगी खुशहाल
भारत में तेजी से बढ़ रहा है पैसेंजर पेरेंटिंग का ट्रेंड
भारतीय परिवारों में शिक्षा, करियर और लाइफस्टाइल डेव्लप करने को लेकर पिछले 10-15 सालों में जागरूकता तेजी से बढ़ी है। इस जागरूकता के पीछे ग्लोबल एक्सपोजर, डिजिटल और सोशल मीडिया है। जिसकी वजह से पैरेंट्स की सोच बदली है और वह अपने बच्चों को ज्यादा स्पेस देने लगे हैं। इस स्पेस की वजह से बच्चे कम उम्र में ही बड़े सपने देखने लगे हैं और खुद की राह भी तय करने लगे हैं।
क्या बच्चों के लिए फायदेमंद है पैरेंटिंग का यह तरीका?
पैसेंजर पेरेंटिंग पर एक्सपर्ट्स का मानना है कि इससे बच्चों में कॉन्फिडेंस बढ़ता है और अपनी जिम्मेदारी समझने की भावना भी आती है। साथ ही वह अपनी गलतियों से भी सीखते हैं। यह तरीका आजकल की जनरेशन को जीवन जीने का तरीका सिखाने के लिए अच्छा हो सकता है। हालांकि, साइकलोजिस्ट माला खन्ना का कहना है कि बच्चों को उनकी जिंदगी में बाउंड्रीज, इमोशनल रेगुलेशन और जिंदगी में अच्छे-बुरे का फर्क बताने की जरूरत होती है। ऐसे में पैसेंजर पेरेंटिंग कुछ हद तक ही काम कर सकती है।
इसे भी पढ़ें: बेटी को बनाएं Tomorrow-Ready, बचपन से डालें ये 7 आदतें...बनेगी सेल्फ-डिपेंडेंट और कॉन्फिडेंट
बच्चों के लिए बैलेंस है जरूरी
एक्सपर्ट का ऐसा मानना है कि आजकल की जनरेशन के बच्चों को स्पून फीडिंग नहीं की जा सकती है यानी उन्हें हर चीज सिखाई जाए या कदम-कदम पर उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं, यह बताना और समझाना मुश्किल है। क्योंकि, उनके पास पेरेंट्स के अलावा चीजें सीखने के कई सोर्स हैं। ऐसे में बच्चों के लिए वही पेरेंटिंग अच्छी हो सकती है, जिसमें बैलेंस रहे। यानी समय पड़ने पर पेरेंट्स बच्चे की लाइफ को कंट्रोल भी करें और कुछ मौकों पर उसे फैसला लेने के लिए छोड़ दें।
हमारी स्टोरी से रिलेटेड अगर कोई सवाल है, तो आप हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।
अगर आपको स्टोरी अच्छी लगी है, इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी से।
Image Credit: Freepik
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों