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What is a Vyaspeeth

जहां बैठते हैं कथावाचक, उसे क्यों कहते हैं व्यास पीठ?

कथावाचक ग्रंथों या पुराणों का वाचन करते हैं और वह जिस स्थान पर बैठते हैं, उसे व्यास पीठ कहा जाता है। लेकिन इसे व्यास पीठ क्यों कहा जाता है। 
Editorial
Updated:- 2024-03-27, 14:27 IST

(What is a Vyaspeeth) सनातन धर्म में श्रीमद्भागवत गीता, नर्मदा पुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण, रामचरितमानस सहित अनेक ग्रंथ शामिल हैं। वहीं समय-समय पर कथावाचक इन पुराणों का वाचन करते हैं और वह जिस स्थान पर बैठते हैं, उसे व्यास पीठ कहा जाता है। लेकिन इसे व्यास पीठ क्यों कहा जाता है। इसके लिए आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं। 

महाभारत ग्रंथ महाकाव्य माना जाता है। महर्षि वेदव्यास ने इसकी रचनी की थी। ऐसी मान्यता कि भगवान गणेश ने वेदव्यास से सुनकर महाभारत का लेखन भी किया था। व्यास मुनि महर्षि पाराशर और केवट कन्या वेदवती के पुत्र थे। यह व्यास पीठ उन्हें ही समर्पित है। व्यास मुनि को सभी संतों और देवों का प्रमुख माना जाता है। इसलिए किसी भी कथा में व्यास पीठ का विशेष महत्व है। 

गंगा किनारे बीता वेदव्यास जी का बचपन

वेदव्यास जी का बचपन गंगा के किनारे बीता है।  वह परम ज्ञानी थे। बता दें, वेद को चार भागों मे विभाजित किया गया था। महाभारत (महाभारत फैक्ट्स) की रचना की थी। एक बार बात उठी कि संतों और देवों का प्रमुख किसे बनाया जाए, तब नारद जी ने महर्षि वेदव्यास का नाम सुझाया था। 

जानें क्या है व्यासपीठ?

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नारदजी ने कहा कि वेदव्यास जी में पराशर मुनि के गुण हैं। केवट कन्या के पुत्र हैं। इसलिए उन्हें प्रमुख बनाया जाना चाहिए। यही उचित रहेगा। इसके बाद व्यास मुनि को संतों और देवों के प्रमुख पद पर बैठाया गया। अभी वर्तमान में जितने भी साधु, संत, कथावाचक हैं, वह जिस भी पीठ पर बैठकर कथा कहते हैं, उसे व्यास पीठ कहा जाता है या व्यास गद्दी भी कहते हैं। 

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व्यास जी ने क्यों किया वेदों का विभाजन?

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युग के बदलाव और प्रभाव से पहले व्यक्ति वेद के संपूर्ण ज्ञान को पढ़ने, सुनने और याद रखने में व्यक्ति सक्षम होते थे, लेकिन कलयुग में मनुष्यों के लिए सभी वेदों के बारे में विस्तार से जानना बहुत मुश्किल है। तभी महर्षि वेद व्यास जी ने वेदों का विभाजन किया और उसे चार भाग में बांटा। साथ ही उन्हें सरल और सहज बनाया। ताकि उसे बेहद सरलता के साथ पढ़ा जा सके। 

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व्यास मुनि ने की नर्मदा की उपासना 

नर्मदा नदी के किनारे महर्षि वेदव्यास का आश्रम है। ऐसा बताया जाता है कि उन्हें यज्ञ करना था। सभी संतों को आमंत्रित भी किया गया था, लेकिन उनका आश्रम दक्षिण तट पर था और संत उत्तर (उत्तर दिशा उपाय) तट पर खड़े थे। ऐसे में दक्षिण तट पर पूजा की हो सकती थी। तब व्यास मुनि ने नर्मदा की उपासना की और इससे प्रसन्न होकर नर्मदा प्रकट हुईं और उन्होंने अपनी दिशा बदली। आश्रम उत्तर तट हो गया। अगर आप नर्मदा नदी के मानचित्र देखेंगे, तो वह घुमावदार नजर आती है। 

 

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Image Credit- Freepik

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