
हिन्दू धर्म में नाम जाप का बहुत महत्व माना जाता है।कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति पूजा-पाठ या हवन-अनुष्ठान आदि नहीं क्र सकता है या फिर उसने कभी कोई पुण्य कर्म नहीं किया है तो ऐसे में नाम जाप करने मात्र से सभी पूजा-पाठ और पुण्य कर्मों का फल कई अधिक गुना मिलता है। नाम जाप को भगवान की भक्ति का सबसे सरल तरीका माना जाता है और यही कारण है कि अक्सर अभिवादन करते समय लोग देवी-देवताओं का नामा लेते हैं, जैसे राधे-राधे या फिर राम-राम या जय श्री कृष्ण या फिर हर हर महादेव। अब सवाल ये उठता है कि जैसे राधे-राधे बोला जाता है या राम-राम कहा जाता है तो वैसे ही कृष्ण-कृष्ण या शिव-शिव क्यों नहीं कहते हैं? आइये जानते हैं इस बारे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से।
कृष्ण-कृष्ण कहने पर पाबंदी नहीं है, लेकिन धार्मिक मान्यता के अनुसार देख जाए तो कृष्ण-कृष्ण इसलिए नहीं कहते हैं या कहना चाहिए क्योंकि भगवान श्री कृष्ण का नाम हमेशा राधा रानी के साथ लिया जाता है।

ऐसा न सिर्फ श्री कृष्ण ने राधा रानी को वरदान दिया था बल्कि स्वयं श्री कृष्ण भी अपना नाम राधा रानी के साथ जोड़ते थे। ऐसा कहते हैं कि कृष्ण को बुलाना हो तो राधा रानी का नाम उनके नाम के साथ लेना चाहिए।
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इतना ही नहीं, शास्त्रों में यहां तक लिखा है कि श्री कृष्ण की कृपा, उनका ध्यान किसी भी व्यक्ति को तभी प्राप्त होता है जब उस पर राधा रानी की कृपा हो। इसलिए राधा रानी का नाम कृष्ण से पहले लिया जाता है।
वहीं, दूसरी ओर शिव-शिव इसलिए नहीं कहते हैं कि शिव स्वयं में पूर्ण हैं। भगवान शिव बैरागी भी हैं और गृहस्थी भी हैं। इसके अलावा, इसके पीछे अंक ज्योतिष भी मौजूद है। 'श' अक्षर का अंक 30 है और 'व' अक्षर का अंक 29 है।
30 और 29 को जोड़ा जाए तो इसका मूल अंक आएगा 59 और इस अंक को भी जोड़ा जाए तो मूल अंक आएगा 14 और इसको जोड़कर भी जो आखिरी अंक आएगा वो है 5 जो पंच तत्व और भूतों का प्रतीक है।

जब हम शिव-शिव कहते हैं तो इससे पंच तत्वों और पंच भूतों की ऊर्जा हमारी ओर आकर्षित होती है। चूंकि हम मनुष्य खुद पंच तत्व से बने हैं तो ये ऊर्जा हम सहन कर लेते हैं, लेकिन पंच भूतों की ऊर्जा हमें हानि पहुंचा सकती है।
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यही कारण है कि शिव-शिव नहीं बोला जाता है और इसके बदले या तो हर हर महादेव कहने का प्रचलन है या फिर भगवान शिव के पंचाक्षर मंत्र 'ॐ नमः शिवाय' बोला जाता है।
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