बैंक एक समझौता प्रस्ताव रखता है, जिसमें मूल राशि का एक हिस्सा माफ करने की पेशकश होती है। यह राशि अक्सर बकाया लोन राशि का 30 फीसदी से 70 फीसदी तक हो सकती है। लोन सेटलमेंट के बाद, क्रेडिट ब्यूरो जैसे CIBIL को सूचित किया जाता है। इससे ग्राहक के क्रेडिट स्कोर पर नेगेटिव इफेक्ट पड़ सकता है, क्योंकि इसे एक प्रकार का डिफॉल्ट माना जाता है।
जब कोई व्यक्ति किसी वजह से अपने लोन की सभी किस्त चुकाने में असमर्थ होता है, तो बैंक से बातचीत करके एक समझौता किया जाता है। इस समझौते में, उधार लेने वाला बैंक को एकमुश्त राशि का भुगतान करता है, जो मूल लोन राशि से कम होती है। इस प्रक्रिया को ही लोन सेटलमेंट कहते हैं।
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