अफ्रीका के कई देशों में महिलाओं के साथ इस तरह से रीति-रिवाज निभाए जाते हैं कि उनकी जिंदगी बहुत ही मुश्किल हो जाती है। युगांडा, इथियोपिया, सोमालिया जैसे देशों में यह बहुत कॉमन है। आपको फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन के बारे में शायद ना पता हो, लेकिन भारत सहित दुनिया के कई देशों में इससे जुड़ा दर्द लाखों महिलाएं झेलती हैं।
युगांडा में आधिकारिक तौर पर 2010 में फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन पर बैन लगा दिया गया था। पर यह अभी तक होता है। बीबीसी की एक रिपोर्ट बताती है कि वहां बचपन और टीनएज में ही नहीं, बल्कि वयस्क होने के बाद भी महिलाओं का जेनिटल म्यूटिलेशन किया जाता है।
हरजिंदगी की सीरीज Unabashed के जरिए हम आपको दुनिया के ऐसे ही रिवाजों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां महिलाओं को ना सिर्फ दबाया जाता है, बल्कि उन्हें इस तरह से ग्रूम किया जाता है कि उन्हें ये सभी रिवाज गलत ना लगें। इसी कड़ी में आज बात करते हैं युगांडा की एफजीएम प्रैक्टिस के बारे में।
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युगांडा की साबिनी ट्राइब ( Sabiny tribe/ sebei tribe) में शादी से पहले महिलाओं का खतना एक जरूरी रिवाज माना जाता है।
किस उम्र में किया जाता है खतना?
UNICEF की एक डिटेल स्टडी बताती है कि पहले युगांडा में यह छोटी लड़कियों के साथ होता था और अलग-अलग कम्युनिटीज में खतना करने की उम्र अलग है। इस स्टडी में Uganda Bureau of Statistics
(UBOS) के आधार पर इन्फॉर्मेशन बताई गई है। युगांडा कीपोकोट कम्युनिटी में 14 से 15 साल की उम्र में खतना होता है, वहीं साबिनी ट्राइब में 17-19 साल के बीच खतना होता है। कुछ मामलों में 25-26 साल की महिलाओं को भी यह झेलना पड़ता है।
साबिनी ट्राइब में बड़ी उम्र में ब्याहता महिलाओं के साथ भी ऐसा होता है। अब जब यह प्रैक्टिस आधिकारिक तौर पर इल्लीगल हो गई है तब अनसेफ कंडीशन में चोरी-छिपे यह होता है।
साबिनी कबीले की प्रथा के मुताबिक कई महिलाएं यहां सार्वजनिक तौर पर जेनिटल म्यूटिलेशन से गुजरती हैं। ऐसे समय पर उन्हें दर्द सहना होता है और अगर उन्होंने चिल्लाया, तो उसे उनकी कमजोरी समझा जाता है।
क्या किया जाता है फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन के वक्त?
महिलाओं का जेनिटल म्यूटिलेशन पुरुषों से काफी अलग होता है। WHO और UNICEF द्वारा इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के मानवाधिकारों का हनन माना गया है। महिलाओं का खतना ना ही स्वास्थ्य के हिसाब से ठीक होता है और ना ही यह सुरक्षित होता है।
युगांडा और ईस्ट अफ्रीका में जिस तरह का रिवाज फॉलो किया जाता है वहां क्लिटोरिस का एक हिस्सा या फिर पूरी की पूरी क्लिटोरिस ही ब्लेड से काट दी जाती है। एक्सटर्नल जेनिटेलिया का हिस्सा काटने के लिए तेज धार वाली ब्लेड या लोहे के चाकू का इस्तेमाल किया जाता है।
UNICEF की रिपोर्ट मानती है कि 15 से 49 साल की महिलाओं में यह प्रैक्टिस अभी भी फॉलो की जाती है। कुछ मामलों में इसके कारण महिलाओं को गंभीर गाइनेकोलॉजिकल डिसऑर्डर भी हो जाते हैं।
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क्या मुश्किलें होती हैं FGM से?
FGM अधिकतर नॉन-मेडिकल तरीके से किया जाता है जहां एक या दो कट में ही वेजाइना का हिस्सा हटाना होता है। ऐसे में जेनिटल इन्फेक्शन का खतरा होता है।
जेनिटल म्यूटिलेशन की वजह से प्रेग्नेंसी और डिलीवरी के समय भी महिलाओं को काफी दिक्कत होती है।
कुछ मामलों में ब्लड लॉस इतना होता है कि अन्य कई तरह की बीमारियां महिला को घेर सकती हैं।
इससे सेक्सुअल प्लेजर को दबाया जा सकता है, लेकिन इतना दर्द सहना किसी भी महिला के लिए बहुत ही बुरा अनुभव हो सकता है। UNICEF का मानना है कि अगर महिलाएं ठीक तरह से शिक्षित होंगी, तो इस तरह की प्रैक्टिस को रोका जा सकता है।
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Image Credit: Shutterstock/ UNICEF report
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