Gender Pay Gap: पुरुषों के मुकाबले मुट्ठीभर भी नहीं Pay...आखिर कब समान काम के लिए समान वेतन पाएंगी महिलाएं?

हम भले ही पुरुषों जितना काम करें, लेकिन आज भी जेंडर पे गैप देश की सबसे बड़ी विषमता में से एक बना हुआ है। दुनिया भर में पुरुष कर्मचारियों के मुकाबले महिला कर्मचारी की सैलरी काफी ज्यादा कम है।

tackling the issue of gender pay gap

हम जब वैश्विक आर्थिक विकास की बात करते हैं, तो भारत का जिक्र किए बिना नहीं रह सकते हैं। कारण है कि हमारा देश सबसे महत्वपूर्ण देशों में से एक है। इसके श्रम बाजार में होने वाले आनुपातिक सुधार और आर्थिक प्रगति, आगे आर्थिक विकास और इससे होने वाले अन्य लाभों को बढ़ावा देगा। हालांकि, हैरत की बात यह है कि देश के लेबर मार्केट की स्थिति सुधरती नजर नहीं आती है।

पिछले साल आईआईएम-अहमदाबाद ने जेंडर पे गैप पर एक अध्ययन किया था। इसमें पता चला था कि इंडिविजुअल कॉन्ट्रिब्यूटर लेवल पर महिलाएं समान भूमिकाओं में काम करने वाले पुरुषों की तुलना में केवल 2.2% कम कमाती हैं। वहीं, मैनेजर/सुपरवाइजर के लिए यह अंतर बढ़कर 3.1% और निदेशकों और वरिष्ठ अधिकारियों के लिए 4.9-6.1% हो जाता है।

अब बताइए हम कह तो रहे हैं कि भारत ने पिछले कुछ वर्षों में प्रगति की है। भारत की बेटियों ने तरक्की की है, लेकिन असमानता अभी भी मौजूद है। हम इस साल 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं, लेकिन आज भी नारी के साथ हो रहे भेदभाव पर आंखें मूंदें हुए हैं।

हरजिंदगी की टीम इस स्वतंत्रता दिवस पर एक नए अभियान के साथ उतरी है। हमारे अभियान "आजाद भारत, आजाद नारी" में हम महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव, अन्याय और असमानता जैसे मुद्दों पर प्रकाश डाल रहे हैं। इस अभियान के तहत आइए जेंडर पे पैरिटी जैसे मुद्दे पर विस्तार से जानें।

भारत में वेज गैप की सीमा क्या है?

wage gap

भारत में जेंडर के बीच में वेज गैप सबसे ज्यादा है। ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 के अनुसार, हम महिलाओं को पुरुषों की आय का लगभग पांचवां हिस्सा दिया जाता है। प्रतिशत की बात करें, तो महिलाओं को औसतन पुरुषों की आय का 21% भुगतान किया जाता था।

इसके अलावा, विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत में पुरुषों की लेबर इनकम 82% है, जबकि महिलाओं की कमाई मात्र 18% है।

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भारत की जेंडर पे गैप स्कोर पर रैंकिंग

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 के मुताबिक भारत का स्कौर हैरतंगेज करने वाला है। भारत का वैश्विक जेंडर गैप स्कोर जो लैंगिक समानता को मापता है, वह सिर्फ 0.629 है। इस स्कोर की बदौलत भारत पिछले 16 वर्षों में सातवें सर्वश्रेष्ठ स्कोर तक पहुंचा है। इसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि महिलाओं के लिए आर्थिक अवसरों में कुल मिलाकर सुधार हुआ है। विधायकों, वरिष्ठ अधिकारियों, तकनीकी कर्मचारियों और प्रबंधकों जैसे पदों पर महिलाओं की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है। वहीं, जेंडर पे गैप में कमी दिखी है। हालांकि, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में महिलाओं के लिए कुछ खास नहीं बदला है। राजनीति में महिलाओं की भूमिका में कमी आई है, क्योंकि पिछले 50 वर्षों में कम महिलाओं की भागीदारी इस क्षेत्र में कम रही है।

Pay Gap Between Men and Women

रोजगार के अवसरों में असमानताओं को दर्शाती OXFAM इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट

ऑक्सफैम इंडिया की हाल ही में आई'इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट 2022' में पाया गया है कि पुरुषों के समान शैक्षणिक योग्यता और कार्य अनुभव के बावजूद भारत में महिलाओं के साथ सामाजिक प्रिजुडाइस के कारण लेबर मार्केट में भेदभाव किया जाता है।

इतना ही नहीं, रिपोर्ट में बताया गया कि 2020-21 के बीच भारत में महिलाओं का लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट 25.1 प्रतिशत था। 2004-05 की तुलना में, इस संख्या में 42.7 प्रतिशत से भारी गिरावट देखी गई।

इसमें यह भी 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के उन व्यक्तियों की संख्या पर भी प्रकाश डाला गया है जो नियमित वेतनभोगी कर्मचारी या स्व-रोजगार थे। इस में भी पुरुष 60 प्रतिशत और महिलाएं केवल 19 प्रतिशत थीं। डेटा ने लिंग के बीच रोजगार के अवसरों में असमानताओं को उजागर किया।

आंकड़ों से देश में पुरुषों और महिलाओं के औसत वेतन का भी पता चला। जहां पुरुषों की औसत कमाई 19, 779 रुपये रही, वहीं महिलाओं की औसत कमाई 15, 578 रुपये रही।

भले ही पिछले वर्षों की तुलना में अंतर कम हो गया है, फिर भी हमें देश में लैंगिक वेतन और अवसर के अंतर को पाटने के लिए अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है।

gender pay gap report by oxfam

जेंडर पे गैप एग्जिस्ट करने का कारण

इसका एक बड़ा कारण यह है कि कंपनियों में उच्च स्तर पर महिलाओं की संख्या बहुत कम है। इसका मतलब यह है कि उच्च स्तर पर पुरुष ही तय करते हैं कि महिला को क्या और कितना भुगतान जाएगा। महिलाओं को सलाहकार भी कम मिलते हैं। पिछले साल आईआईएम-ए ने जो अध्ययन किया था उससे पता चलता है कि भारत में कंपनियों के वरिष्ठ प्रबंधन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व मात्र 7 प्रतिशत है जो शीर्ष प्रबंधन स्तर पर और भी कम होकर 5 प्रतिशत हो गया है।

भारत में जेंडर पे गैप के मुद्दे को जो उलझाता है, वह इसमें योगदान देने वाले सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जैसे कई कारक हैं।

लिंग के आधार पर होता है भेदभाव

discriminatiis a factor of gender pay gap

शिक्षा, स्किल्स या अनुभव जैसी व्यक्तिगत विशेषताओं के आधार पर जो जेंडर पे गैप होता ही है, लेकिन लिंग के आधार पर भी भेदभाव किया जाता है। यह जेंडर पे गैप का एक बड़ा हिस्सा है। इसमें महिलाओं को पुरुषों जितना काम करने के बावजूद भी कम वेतन दिया जाता है। नारीवादी व्यवसायों और उद्यमों में महिलाओं के काम का कम मूल्यांकन किया जाता है। वहीं जो महिलाएं मां नहीं हैं, उनकी तुलना में मदर्स को बहुत कम वेतन दिया जाता है।

परिवार की जिम्मेदारी तले दब जाती है महिला

आज भी महिलाओं के जिम्मे बच्चे का पालन-पोषण, घर की देखभाल और परिवार वालों की हर जरूरत को पूरा करना है। इन सबके ऊपर मेटरनिटी लीव भी है। जब वह ब्रेक लेकर अपने काम पर लौटती है, तो वह पहले ही काफी कुछ खो चुकी होती है। इस दौरान उसका अनुभव और वेतन वृद्धि भी प्रभावित होती है। दो जेंडर्स के बीच वेतन में अंतर का यह भी एक प्रमुख कारण है।

इसके अलावा, महिलाओं को सिस्टमैटिक बायस का खामियाजा भी भुगतना पड़ता है। यह मान लिया जाता है कि कोई महिला शादीशुदा है, तो उसे घर जाने की जल्दी रहेगी। वह ऑफिस में काम कम करेगी और उसका सारा ध्यान घर पर होगा। उनके मेरिटल स्टेटस को देखकर भी भेदभाव किया जाता है। इसके कारण कई बड़ी जिम्मेदारियां उन्हें सौंपी नहीं जाती हैं। विकास के अवसर से वे अक्सर पीछे रह जाती हैं। जिन कार्यों में वेतन वृद्धि की संभावना होती है, उन्हें उससे दूर कर दिया जाता है।

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पुरुषों से ज्यादा काम करती हैं महिलाएं

विडंबना यह है कि माना जाता है महिलाएं पुरुषों की तुलना में कम काम करती हैं, जबकि सच्चाई इससे अलग है। हम अक्सर उस काम को गिनना भूल जाते हैं जो न सिर्फ अनपेड होता है बल्कि अनदेखा भी कर दिया जाता है।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार, महिलाएं घर पर रहकर भी प्रतिदिन 299 मिनट अधिक अनपेड सर्विस करती हैं, जबकि पुरुष केवल 97 मिनट खर्च करते हैं। लगभग 71% पुरुषों की तुलना में 15-59 वर्ष की आयु की केवल 22% महिलाएं पेड कार्य करती हैं। अब अगर आप और हम महिलाओं द्वारा किए जाने वाले अनपेड काम को गिनने लगे, तो जेंडर पे गैप और भी अधिक बढ़ जाएगा।

विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट में प्रस्तुत कम होता लिंग अंतर हमारी आशा की किरण है और आगे बढ़ते हुए हम केवल महिलाओं के लिए एक समान कामकाजी दुनिया की चाह रखते हैं।

जेंडर पे गैपर को कम करने के लिए समान मूल्य के काम के लिए समान वेतन आवश्यक है। अगर हम देश के आर्थिक विकास की चाह रखते हैं, तो इस अंतर को कम करना हमारे लिए ज्यादा जरूरी है।

अब आप बताइए जब महिलाएं अभी भी वेतन के मामले में इतना पीछे हैं, तो नारी आजाद कहां?

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