'बहू चांद पर जाए, लेकिन दो पराठे सेंक कर जाए...' भला ये कैसी इक्वालिटी?  

भारत में मॉर्डन वर्किंग वुमन की पहचान एक अच्छी गृहणी से भी शुरू हो सकती है। हमारे घरों में देखे जाने वाले टीवी सीरियल्स इस बात का सही उदाहरण देते हैं। 

How does indian society have equality

अजी सुनिए.... क्या आपको पता है कि Women's Equality Day आने वाला है। अब हो सकता है कि आपको इसके बारे में पता ना हो, तो मैं आपको बता दूं कि 26 अगस्त को यह दिन मनाया जाता है। हालांकि, यह अमेरिका में महिलाओं को वोटिंग राइट्स मिलने की खुशी में मनाया जाता है, लेकिन अब धीरे-धीरे वुमन्स इक्वालिटी डे पूरी दुनिया में फेमस होने लगा है। वैसे इक्वालिटी भी बहुत दिलचस्प शब्द है। जब भी इक्वालिटी की बात होती है, तो लोग महिलाओं को मिलने वाले अधिकारों को गिनवाने लगते हैं। पर क्या वाकई में हमारे समाज में इक्वालिटी है?

चलिए आपकी, मेरी और हम सबकी चहेती अनुपमा का उदाहरण ही ले लेते हैं। एक ऐसी महिला जो हर काम में दक्ष है, अपने घर की पूरी ड्यूटी निभा कर काम पर जाती है, अपने बच्चों का ख्याल रखती है, उसके ऑफिस जाते-जाते भी उससे खाने-पीने की फरमाइश की जाती है, लेकिन दिन भर थककर आने के बाद भी घर का काम अनुपमा को ही करना होता है।

टीवी सीरियल में अनुपमा के घर वाले उसे बहुत सपोर्ट करते दिखाए गए हैं, लेकिन बात तो वही है कि अनुपमा अगर चांद या मंगल पर भी जा रही हो, तो भी उसे चार पराठे, कोल्ड कॉफी और बापू जी की दवाई देकर ही जानी है।

working women in kitchen

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जेंडर इक्वालिटी को लेकर क्या वाकई समझदार है समाज?

इस सवाल का जवाब देने से पहले आपसे कुछ और सवाल कर लिए जाएं...

  • क्या आपके घर में खाना बनाना या घर को थोड़ा ऑर्गेनाइज करना महिलाओं की जिम्मेदारी माना जाता है?
  • घर में क्या चीज खत्म हो गई है, हाउस हेल्प से कैसे बात करनी है ये सारी जिम्मेदारी महिलाओं की होती है?
  • क्या घर की महिला की नौकरी को बहुत महत्व नहीं दिया जाता या उसके सामने हमेशा नौकरी छोड़ने का ऑप्शन दिया जाता है?
  • क्या बच्चों की जरूरत होने पर अभी भी महिलाओं को ही जिम्मेदार माना जाता है?
  • रात में बच्चे के रोने पर सबसे पहले उठने की जिम्मेदारी किसकी है?
  • अगर मेड ना आए, तो काम की जिम्मेदारी किसकी है?
  • किसी मेहमान के आने पर चाय, पानी, नाश्ता आदि अरेंज करने की जिम्मेदारी किसे मिली है?

अगर आपके पास इन जैसे कई सवालों के जवाब हैं, तो आप खुद ही समझदार हैं कि भारतीय समाज में अभी भी इक्वालिटी कहां है। मैं ये नहीं कह रही कि बदलाव नहीं आ रहा है, लेकिन हम सभी जेंडर रोल्स में इतने रच-बस गए हैं कि लोगों को समझ ही नहीं आता कि गलती कहां है।

मैं अपने आस-पास ही ऐसी कई महिलाओं को देखती हूं जो अपनी लाइफस्टाइल के कारण थकी हुई हैं। उन्हें घर से बाहर काम करने का सपोर्ट मिल रहा है, लेकिन घर में किए जाने वाले कामों की जिम्मेदारी अपने आप ही उन्हें दे दी जाती है।

equality issues in india

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जेंडर इक्वालिटी को लेकर क्या है भारत की स्थिति?

चलिए अब कुछ आंकड़ों की बात कर लेते हैं। 2022 में आई World Economic Forum की रिपोर्ट बताती है कि भारत जेंडर पैरिटी के मामले में 135वीं पोजीशन में आ गया है। इसका सीधा सा मतलब ये है कि तालिबान शासित राष्ट्रों से भारत सिर्फ 11 पायदान ऊपर है।

भारत की जगह नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार, भूटान, चीन, श्रीलंका जैसे देश जेंडर पैरिटी के मामले में ज्यादा बेहतर स्थिति पर हैं। यही रिपोर्ट बताती है कि जिस साउथ एशियन रीजन में भारत मौजूद है वहां इक्वालिटी का असर दिखने में 200 साल लग सकते हैं।

अब आप खुद ही सोच लीजिए कि किस तरह से हमारा देश तरक्की कर रहा है। इक्वालिटी के नाम पर यहां भले ही जो कुछ कहा जा रहा हो, लेकिन असलियत कोसों दूर है। आप महिलाओं के खिलाफ अपराधों की लिस्ट देख लीजिए जो दिन प्रतिदिन बढ़ रहे हैं। इन अपराधों के लिए भी महिलाओं की इक्वालिटी को ही जिम्मेदार मान लिया जाता है। आप अपने घर में ही देख लीजिए, महिलाओं की सक्सेस को कई बार सिर्फ लक बोलकर छोड़ दिया जाता है और उनकी उपलब्धि को उनके बनाए हुए खाने से तौला जाता है।आप खुद ही सोचिए मेरी बात सही है या गलत? अपने सुझाव और राय हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।

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