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How supreme court published gender stereotypes advisory

प्रॉस्टिट्यूट, मिस्ट्रेस, अफेयर, हाउसवाइफ और बहुत कुछ... अब अदालतों में नहीं इस्तेमाल होंगे ऐसे अपमानजनक शब्द

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक हैंडबुक लॉन्च की है जिसमें बताया गया है कि किस तरह के शब्दों का इस्तेमाल अदालत में नहीं होना है। इस हैंडबुक में कुछ ऐसे शब्द भी हैं जिन्हें रोजमर्रा में बोला जाता है। 
Editorial
Updated:- 2023-08-17, 18:57 IST

हम किस तरह से बात करते हैं उसका बहुत फर्क पड़ता है। आप अगर किसी से सधे हुए और सम्मानजनक शब्दों में बात करें, तो आपका काम भी हो जाता है और सामने वाले को अच्छा भी लगता है, लेकिन कई बार हम अपनी मर्यादा भूलकर कुछ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर बैठते हैं जिन्हें हमें नहीं करना चाहिए। आपने टीवी, फिल्मों, ओटीटी यहां तक कि कोर्ट और संसद के गलियारों में भी कई अभद्र शब्दों के बारे में सुना होगा। 

अगर किसी को बास्टर्ड कहा जाए, तो ये सिर्फ गाली ही नहीं, बल्कि अभद्र बेइज्जती होगी। ऐसे कई शब्द हैं जिनका इस्तेमाल करने पर लोगों को परहेज करना चाहिए, लेकिन ऐसा करते नहीं हैं। जरा सोचिए किसी को बोला जाए, 'चूड़ियां पहन लो और घर बैठ जाओ', तो क्या ये महिलाओं को नीचा दिखाने वाला सेंटेंस नहीं हुआ?

सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में संज्ञान लेते हुए 16 अगस्त, 2023 को एक एडवाइजरी जारी की है जिसमें कुछ ऐसे शब्दों को लिखा गया है जिन्हें बोलना सही नहीं है। 

gender stereotypes and supreme court handbook

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हैंडबुक के एक स्टेटमेंट में लिखा था,  "भाषा कानून के लिए महत्वपूर्ण है। शब्द वह साधन हैं जिसके माध्यम से कानून के मूल्यों का संचार किया जाता है। शब्दों के जरिए ही वकील और जज के विचार समाज तक पहुंचते हैं।" 

सुप्रीम कोर्ट ने बैन किया इन शब्दों का इस्तेमाल 

महिलाओं और कम्युनिटी के कुछ लोगों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द जैसे स्लट (प्रोस्टिट्यूट या वैश्या), मिस्ट्रेस, बास्टर्ड, हाउसवाइफ, होर आदि का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद कर दिया गया है। नीचे दी गई इमेज सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी की गई हैंडबुक से ली गई है। 

supreme court handbook words

हम कई बार इस तरह के शब्दों का प्रयोग सिर्फ एक तय वर्ग के लिए करते हैं। अब आप LGBTQIA+ कम्युनिटी को ही ले लीजिए, उनके लिए जिस तरह के शब्दों का इस्तेमाल होता है, वो किसी भी व्यक्ति के लिए अपमानजनक हो सकते हैं, लेकिन हमने उन्हें इस्तेमाल करने से पहले जरा भी नहीं सोचते हैं। इस हैंडबुक में सेक्शुअल भाषा के प्रयोग पर भी आपत्ति जताई गई है। उदाहरण के तौर पर ड्यूटीफुल, ओबेडिएंट, फेथफुल वाइफ की जगह सिर्फ वाइफ कहने पर जोर दिया गया है। 

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जहां एक ओर चाइल्ड ट्रैफिकिंग के खिलाफ मुहिम चलाई जा रही है, वहीं चाइल्ड प्रोस्टिट्यूट जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी बंद करने की बात की गई है। करियर वुमन की जगह सिर्फ वुमन कहने पर जोर दिया गया है। ईव टीजिंग को बदलने का वक्त भी आ गया है जिसे सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक अब स्ट्रीट सेक्शुअल हैरेसमेंट कहा जाना चाहिए। ईव टीजिंग शब्द यह दर्शाता था कि शायद सब कुछ सिर्फ शाम में घर से बाहर निकलने पर होता है, लेकिन सेक्शुअल हैरेसमेंट किसी भी तरह का हो सकता है और कभी भी हो सकता है। 

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सुप्रीम कोर्ट ने हाउसफाइफ शब्द को भी किया खारिज 

हम हमेशा से हाउसवाइफ के नाम पर उस महिला की बात करते थे जो घर संभालती है। अगर वो घर संभालती है, तो उसे होम मेकर कहा जाना चाहिए। इससे आप यह बता सकते हैं कि महिला अपने हिस्से का पूरा काम कर रही है। अब हाउसवाइफ शब्द की जगह होम मेकर शब्द इस्तेमाल करने को कहा गया है।  

ऐसे ही LGBTQ+ कम्युनिटी के लिए ट्रांससेक्शुअल जैसे शब्द ना इस्तेमाल करके ट्रांसजेंडर का उपयोग करना ज्यादा बेहतर माना गया है।  

सुप्रीम कोर्ट एडवाइजरी के बारे में क्या है एक्सपर्ट की राय? 

हमने बॉम्बे हाई कोर्ट की क्रिमिनल लॉयर शिखानी शाह इंजीनियर से बात की। उनका कहना था, "यह बहुत ही बेहतरीन पहल है जिससे लोगों का अपमान होने से रोका जा सकता है। हम भले ही इस बारे में ना सोचें, लेकिन कुछ शब्दों के इस्तेमाल से लोगों की भावनाओं को बहुत ठेस पहुंचती है।" 

supreme court introduces handbook fight

शिखानी के मुताबिक कुछ शब्द जैसे प्रॉस्टिट्यूट, बिन ब्याही मां, बास्टर्ड आदि किसी को भी सुनने में अच्छे नहीं लगेंगे। भारतीय संविधान हर एक व्यक्ति को आजादी से और इज्जत से जीने का अधिकार देता है और ऐसे में किसी भी तरह के अपमानजनक शब्द इस्तेमाल करना गैरकानूनी भी माना जा सकता है।  

शिखानी जी का कहना है कि जिस तरह से प्रॉस्टिट्यूट की जगह आप सेक्स वर्कर का इस्तेमाल करते हैं, तो वो लोगों की आजीविका का अधिकार बताता है। मिस्ट्रेस शब्द का इस्तेमाल सिर्फ महिलाओं के लिए होता है, लेकिन शादीशुदा पुरुष भी उसमें समान अधिकार रखते हैं। किसी को कपड़ों, सेक्स, काम, जन्म या शिक्षा के आधार पर हम वैसे भी अपमानित नहीं कर सकते हैं, ऐसे में भला उन शब्दों का क्या काम जो अपमानित कर सकते हैं।  

अब वकीलों के लिए कपड़ों के आधार पर केस की पैरवी या कमेंट करना भी बंद करने की एडवाइजरी आई है।  

ये सच है कि कुछ शब्द अब हमारी कल्पना और रोजमर्रा के जीवन दोनों का हिस्सा बन चुके हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई अच्छा बदलाव आ ही नहीं सकता है।  

सुप्रीम कोर्ट की इस एडवाइजरी पर आपका क्या ख्याल है? हमें अपनी राय आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से। 

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