
छठ महापर्व जो मुख्य रूप से सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है, चार दिनों तक चलता है और इसकी शुरुआत नहाय-खाय के साथ होती है। 'नहाय' का अर्थ है स्नान करना और 'खाय' का अर्थ है भोजन करना। यह दिन व्रती और उनके परिवार के लिए शारीरिक और मानसिक शुद्धिकरण का पहला चरण होता है। इस पर्व में पवित्रता, सादगी और अनुशासन का विशेष महत्व होता है जिसकी नींव पहले ही दिन रखी जाती है। यह दिन व्रती को अगले 36 घंटे के निर्जला व्रत के लिए तैयार करता है जिससे मन और आत्मा में दृढ़ संकल्प आता है। इस दिन घर की अच्छी तरह साफ-सफाई की जाती है ताकि पूजा में कोई कमी न रहे और पवित्र वातावरण बना रहे। छठ पूजा के पहले दिन नहाय-खाय से जुड़े कई नियम होते हैं, सही विधि होती है और इसका बहुत महत्व भी माना जाता है। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं इस बारे में विस्तार से।
नहाय-खाय के दिन की शुरुआत घर की पूरी सफाई से होती है, ताकि पूरे घर में पवित्रता का माहौल बन जाए। इसके बाद व्रती पवित्र स्नान के लिए किसी नदी, तालाब या जलाशय पर जाते हैं। अगर बाहर जाना संभव न हो, तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करते हैं। स्नान के बाद नए या साफ-सुथरे कपड़े पहने जाते हैं और व्रत का संकल्प लिया जाता है।

इस दिन व्रती के लिए शुद्ध और सात्विक भोजन बनाया जाता है। भोजन में मुख्य रूप से कद्दू या लौकी की सब्जी (बिना लहसुन-प्याज के), चने की दाल और अरवा चावल (कच्चा चावल) का भात शामिल होता है। यह भोजन सबसे पहले सूर्य देव को भोग लगाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। व्रती के भोजन करने के बाद ही परिवार के अन्य सदस्य भोजन करते हैं।
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इस दिन से ही घर में लहसुन, प्याज और मांसाहार का सेवन पूरी तरह बंद कर दिया जाता है। पूरे घर को पूरी तरह शुद्ध रखा जाता है। भोजन बनाने में केवल सेंधा नमक का इस्तेमाल किया जाता है और सात्विक सामग्री ही उपयोग में लाई जाती है।
व्रती सबसे पहले स्नान करके साफ वस्त्र पहनते हैं और सूर्य देव को भोग लगाने के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन से ही व्रती ब्रह्मचर्य का पालन करना शुरू कर देते हैं। अगर संभव हो, तो इस दिन पवित्र नदी या घाट पर जाकर स्नान करना श्रेष्ठ माना जाता है।
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यह दिन अगले 36 घंटे के निर्जला उपवास के लिए व्रती को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करता है। सात्विक भोजन शरीर को शुद्ध और हल्का रखता है, जिससे कठिन उपवास में सहायता मिलती है। यह दिन पूरे पर्व की पवित्रता सुनिश्चित करता है। घर, भोजन, वस्त्र और मन, हर स्तर पर शुद्धि करके व्रती खुद को छठी मैया और सूर्य देव की पूजा के योग्य बनाते हैं।

इसी दिन व्रत का औपचारिक संकल्प लिया जाता है जिससे व्रती के मन में दृढ़ता और एकाग्रता आती है। कद्दू को एक सात्विक और जल से भरपूर सब्जी माना जाता है। इसका सेवन शरीर को व्रत के लिए जरूरी ऊर्जा और ठंडक देता है।
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