हिन्दू धर्म में न जाने कितने अवतार ऐसे हैं जिनका बखान आपको पौराणिक कथाओं में मिलता है। भगवान विष्णु के विभिन्न अवतार हों या शिव के अवतार। हम सभी उनकी अलग रूपों में पूजा करते हैं। ऐसे ही अवतारों में से एक है भगवान शिव का अर्धनारीश्वर अवतार।
भगवान शिव का यह अवतार शिव और उनकी पत्नी माता पार्वती का मिला-जुला स्वरूप है। भगवान शिव का यह अवतार स्त्री और पुरुष दोनों की सम्मिलित ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। शास्त्रों के अनुसार, इस ब्रह्मांड में सब कुछ अर्धनारीश्वर से ही उत्पन्न होता है और अपने जीवनकाल के पूरा होने के बाद अर्धनारीश्वर में वापस चला जाता है।
वास्तव में भगवान शिव का यह अवतार बहुत ख़ास है और इनकी पूजा से भक्तों को विशेष फलों की प्राप्ति होती है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी जी से यहां विस्तार से जानें शिव के इस स्वरुप की महिमा के बारे में।
अर्धनारीश्वर स्वरुप की पौराणिक कथा
शिव के अर्धनारीश्वर अवतार के बारे में पौराणिक कथा प्रचलित है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि उन्हें शिव में ही समाहित होना है और वो उन्हें ऐसी अनुमति दें। उस समय शिव जी ने पार्वती माता (माता पार्वती के मंत्र) की यह प्रार्थना स्वीकार की और अर्धनारीश्वर स्वरूप का अवतरण हुआ।
स्कन्द पुराण के अनुसार एक बार जब राक्षस अंधक ने माता पार्वती को पकड़ लिया उस समय विष्णु जी ने उन्हें बचाया और उन्हें अपने निवास स्थान पर ले आए। जब राक्षस ने वहां उनका पीछा किया, तब माता पार्वती ने अपना अर्धनारीश्वर रूप प्रकट किया। उनका ऐसा रूप देखकर जिसमें आधा हिस्सा पुरुष का और आधा हिस्सा महिला का था उस समय अंधक ने उनका पीछा छोड़ दिया।
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अर्धनारीश्वर अवतार किसका प्रतीक है
भगवान शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप इस बात का प्रतीक है कि पुरुष और स्त्री सिद्धांत अविभाज्य हैं। अर्धनारीश्वर स्वरूप का आधा हिस्सा पुरुष और दूसरा आधा हिस्सा स्त्री का प्रतीक है। इसमें से पुरुष सिद्धांत और ब्रह्मांड की निष्क्रिय शक्ति है, जबकि प्रकृति स्त्री सक्रिय शक्ति है दोनों एक साथ मिलकर ही सृष्टि का निर्माण करते हैं और इसी से ब्रह्माण्ड का निर्माण होता है। यह स्वरूप इस बात का संकेत देता है कि स्त्री और पुरुष एक दूसरे की शक्ति के बिना अधूरे हैं और उनकी ऊर्जा भी अर्थहीन है।
कैसा है अर्धनारीश्वर स्वरुप
शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप के पुरुष वाले हिस्से की छवि में बालों की जटाएं विराजमान हैं जो अर्धचंद्र से सुशोभित हैं। कभी-कभी यह जटा सर्पों से भी अलंकृत होती हैं और बालों के माध्यम से धारा में प्रवाहित होने वाली गंगा नदी दिखाई देती है।
दाहिने कान में एक नाक-कुंडल या सर्प-कुंडल है। त्रिनेत्र या तीसरी आंख दोनों ही रूपों में दिखती है। माथे के पुरुष पक्ष पर एक आधा तीसरा नेत्र दिखता है और पार्वती जी के माथे के हिस्से को आधी बिंदी से अलंकृत है।
वहीं इस स्वरुप के स्त्री वाले हिस्से में सांवरे हुए बाल नजर आते हैं। बायां कान एक कुण्डल से सुसज्जित है। एक तिलक उसके माथे को सुशोभित करता है। कुल मिलाकर उनका स्वरूप शिव पार्वती की मिली-जुली छवि दिखाता है।
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अर्धनारीश्वर स्वरूप का महत्व
ऐसा माना जाता है कि यदि आप भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप की पूजा करती हैं तो उससे पूजा का दोगुना फल मिलता है। इस पूजा से शिव और पार्वती दोनों की पूजा का एक साथ फल मिलता है और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
शिव का अर्धनारीश्वर रूप पुरुष और स्त्री की समानता को दिखाता है। यदि आप नियमित रूप से शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप की पूजा करती हैं तो आपकी कई समस्याओं का समाधान हो सकता है।
जैसे शादी में होने वाली देरी से लेकर संतान प्राप्ति में होने वाली देरी जैसे कई अड़चनों को दूर किया जा सकता है। शिव के इस स्वरूप का पूजन करते समय शिव मंत्रों का जाप करें इससे आपके जीवन में शिव शक्ति की कृपा बनी रह सकती है।
इस प्रकार भगवान शिव का अर्धनारीश्वर स्वरुप वास्तव में अत्यंत पूजनीय और शिव शक्ति की ऊर्जा से पूर्ण है, जिनकी पूजा के विशेष लाभ होते हैं।
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