महाभारत के शांति पर्व के दौरान भीष्म पितामह करीब 58 दिनों तक बाणों की शय्या पर लेटे रहे थे। इसके बाद, पितामह ने माघ शुक्ल पक्ष में अपने शरीर का त्याग किया। पौराणिक कथानुसार, 58 दिनों तक संध्या के समय सभी लोग भीष्म पितामह के समक्ष एकत्रित होते थे और वहां पर वह उनसे ज्ञान की बात सुनते थे। भीष्म ने शर शय्या पर लेटे हुए राजधर्म, मोक्षधर्म, अपाद्धर्म आदि को लेकर उपदेश दिए थे।
एक बार की बात है, जब भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर लेटे थे, तब भगवान कृष्ण युद्धिष्ठिर के पास आए और उन्होंने पूछा कि तुम इतने उदास क्यों हो? तुम भीष्म पितामह के पास जाओ और अपनी परेशानी को उनके सामने रखो। धर्म का ज्ञान रखने वाले भीष्म पितामह महान हैं और उनसे तुम पूछ सकते हो। श्रीकृष्ण की बात सुनकर युद्धिष्ठिर फौरन खड़े हुए और मृत्यु शय्या पर लेटे हुए पितामह के पास पहुंचे। उन्होंने भीष्म पितामह को संबोधित करते हुए कहा,' हे पितामह! जब राजा चारों तरफ से शत्रुओं से घिरा हो और उनके बीच कोई विपत्ति आ जाए, तो उसे क्या रुख अपनाना चाहिए? शत्रुओं में से कुछ ऐसे होते हैं, जो पिछले घावों का बदलना लेने की प्रतीक्षा करते हैं। तब व्यक्ति को क्या करना चाहिए? राजा को किससे युद्ध और किससे संधि करनी चाहिए? कृपया मुझे इस बारे में बताएं।
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युद्धिष्ठिर की बात सुनकर भीष्म पितामह मुस्कुराने लगे और उन्होंने कहा,"हे युद्धिष्ठिर! मैं तुमको बताता हूं कि राजा को अपनी कल्पना के हिसाब से स्थिति का प्रबंधन कैसे करना चाहिए? समय और उद्देश्य वे कारक हैं, जो यह निर्धारित करते हैं कि कौन शत्रु है और कौन मित्र? अपने प्राणों की रक्षा करना ही सदैव हमारा उद्देश्य होना चाहिए और इसके लिए शत्रु से संधि करना हमेशा उचित है। इस संबंध में मैं तुमको एक कथा सुनाता हूं।
एक बार, एक घने जंगल में एक बड़ा बरगद का पेड़ था, जिसकी असंख्य शाखाएं थी। उस पर कई लताएं उगी हुई थीं, जिसकी वजह से वह बहुत घना हो गया था, उस पर छोटे-छोटे पशु-पक्षी आकर निवास करते थे। उस पेड़ की जड़ में एक छेद करके पलीता नाम का एक बुद्धिमान चूहा रहता था। उसी पेड़ की एक शाखा पर लोमशा नाम की बिल्ली रहा करती थी। लोमशा सदैव पक्षियों और पलीता को परेशान किया करती थी, क्योंकि वह शिकार की तलाश में रहती थी। हर रात उस जंगल में एक शिकारी आता था और वह बरगद की शाखाओं पर जाल बिछाता था। फिर, शाखाओं के बीच एक मांस का टुकड़ा रखकर घर चला जाता था। रोजाना, सुबह कोई न कोई पशु या पक्षी उस जाल में फंस जाता था, जिसे शिकारी मारकर ले जाता था।
एक रात ऐसा हुआ कि लोमशा शिकारी के जाल में फंस गई। पलीता ने अपने बिल से बाहर देखा तो वह मन ही मन हंसने लगा। उसे समझ आ गया कि लोमशा ने भूख के कारण शिकारी के मांस पर नजर डाली थी। पलीता बस यही सोच रहा था कि उसे लगा कि कोई उसे घूर रहा है। जब उसने नीचे देखा तो, लाल आंखों वाला नेवला हरिका खड़ा था, जो पलीता की तरफ लालच भरी आंखों से देख रहा था। तभी, उसे एक आवाज आई, जो चंद्रका उल्लू की थी, जिसने पलीता को देखकर हुश किया था। अब पलीता बेचारा तीन दुश्मनों उल्लू, बिल्ली और नेवले के बीच फंस गया चुका था।
डर से कांपते हुए पलीता ने सोचा,"मौत ने मुझे चारों तरफ से घेर लिया है और मेरे बचने की संभावना कम है। हालांकि, मुझे बुद्धिमानी से काम लेना होगा और भ्रमित नहीं होना होगा। तब, पलीता ने देखा कि लोमशा बिल्ली खुद को जाल से मुक्त करने के लिए परेशान हो रही है। इन 3 दुश्मनों में से, लोमशा को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। मुझे उसी के मुताबिक कोई रणनीति बनानी होगी।
फिर, पलीता चूहा ने लोमशा को आवाज लगाते हुए कहा,"हे लोमशा, तुम्हें फंसा हुआ देखकर मुझे बहुत दुख हो रहा है। मैं तुम्हें इस संकट से बचाऊंगा, क्योंकि मेरे पास हम दोनों को बचाने का एक उपाय है। ऊपर से मुझे चंद्रका उल्लू और नीचे से हरिका नेवला घूर रहा है, इसलिए मुझ पर किसी भी समय हमला हो सकता है। लेकिन, ध्यान रहे कि मैं तुम्हारा जाल काटकर तुम्हें आजाद कर सकता हूं। इसलिए, हम दोनों को आपस में दोस्ती करनी होगी। आखिरकार, हम कई सालों से एक ही पेड़ पर रह रहे हैं और निश्चित रूप से पड़ोसी हैं। अगर, हम साथ मिलकर काम करेंगे, तो हम दोनों को ही लाभ होगा।
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लोमशा ने पलीता की बात सुनकर उसके साथ दोस्ती का हाथ मिला लिया। तब, पलीता ने कहा कि मैं कसम खाता हूं कि मैं तुम्हें मुक्त करवाने में मदद करूंगा, लोमशा। इसलिए, एक अनुरोध करना चाहता हूं कि कृपया मुझे अपने शरीर के नीचे बैठने दो? मुझे मत मारना। मैं तुम्हारे जाल को काट दूंगा और तुम आजाद हो जाओगी। लोमशा ने चूहे की बात सुन ली और अपने पेट के नीचे बैठने को कह दिया। पलीता तुरंत भागकर लोमशा के पेट से चिपक गया। जब उल्लू और नेवले ने देखा, तो उन्हें समझ आ गया कि अब वे पलीता को नहीं पकड़ सकते हैं। यह सोचकर दोनों चले गए। जब पलीता ने देखा कि दोनों दुश्मन चले गए, तो उसने जाल को कुतरना शुरू कर दिया, लेकिन बहुत धीरे-धीरे। लोमशा ने देखा तो कहा कि जल्दी, जल्दी करो, पलीता! शिकारी कभी भी आ सकता है।
पलीता ने जवाब दिया,"लोमशा! अगर मैंने जल्दी से जाल काट दिया, तो तुम मुझे मारकर खा जाओगी। मैं जैसे ही शिकारी को आता देखूंगा मैं जल्दी से जाल काट दूंगा। उस समय, हम दोनों का उद्देश्य एक ही होगा और हम भागकर अपनी-अपनी जगह पहुंच जाएंगे। लोमशा पलीता की चालाकी समझ गई। उसने कहा,"इस तरह के धर्मी और अपनी बात के पक्के लोग ऐसा नहीं करते हैं। जब तुम्हारे सामने शत्रु था, तो तुमने मुझसे अनुरोध किया था और मैं तुरंत मान गई थी। क्या तुम मेरे पहले किए गए बर्ताव के बारे में सोचकर ऐसा कर रहे हों? खैर, उस समय मैं मूर्ख थी, लेकिन अब मैं एक पीड़ित हूं। कृपया, मुझे पहले किए हुए कामों की माफी दे दो और मुझे इस जाल से रिहा कर दो।
पलीता बहुत बुद्धिमान था और उसने जवाब दिया,"लोमशा, कृपया याद रखें कि आपकी मदद करते समय मुझे अपने जीवन की भी रक्षा करनी है। जब भय के कारण मित्रता बनती है, तो उससे हमेशा सावधान रहना चाहिए। यह सांप के मुंह के पास हाथ रखने जैसा है। अगर, आपका मित्र आपसे बलवान है, तो आपको अधिक खतरा हो सकता है। दुर्बल व्यक्ति को हमेशा अपनी रक्षा करनी चाहिए वरना वह मारा जा सकता है। मुझे पता है कि यह दोस्ती केवल दोनों के हितों से बंधी है और एक बार हित खत्म हो गया, तो तुम मुझे अपना शिकार बना लोगी।
इसलिए, मैं शिकारी के आने तक जाल को पूरा नहीं काटूंगा और जब शिकारी पास आएगा तो मैं जाल का किनारा काट दूंगा और तुम भाग जाना। मैं तुम्हें वचन देता हूं।
जैसे-जैसे सुबह होने लगी, लोमशा के दिल की धड़कन तेज हो गईं। शिकारी हाथ में हथियार लेकर पेड़ के पास आता हुआ उसे दिखाई दिया। उसने आवाज लगाई,"पलीता, पलीता! कृपया जल्दी से जाल काट दो और मुझे पेड़ पर चढ़ने दो। पलीता ने जल्दी से जाल की बची हुई रस्सी को काटा और लोमशा दौड़ते हुए पेड़ पर चढ़ गई। पलीता भागकर अपने बिल में जा घुसा। शिकारी को खाली हाथ जंगल से जाना पड़ा।
जब शिकारी चला गया तो लोमशा पलीता के बिल के पास आकर खड़ी हो गई। उसने पुकारा,"पलीता! तुम मेरे रक्षक हो और मैं तुम्हारी एहसान हमेशा आभारी रहूंगी। मैं तुमसे वादा करती हूं कि मैं और मेरा परिवार तुम्हें कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा। कृपया बाहर आ जाओ। पलीता ने बिल के भीतर से ही जवाब दिया कि हमेशा खतरनाक परिस्थितियों में मजबूत और कमजोर के बीच मित्रता होती है, वह परिस्थिति खत्म होने के बाद दोस्ती खत्म हो जाती है। कभी भी बलवान और दुर्बल में दोस्ती नहीं हो सकती है। तुम मेरी स्वाभाविक शत्रु हो, मुझे तुम नुकसान पहुंचा सकती हो?
साथ ही हमारे बुजुर्गों ने कहा है कि किसी पर भी किसी भी तरह से पूरा भरोसा नहीं करना चाहिए, बल्कि आपको ऐसा व्यवहार करना चाहिए कि दूसरा आप पर भरोसा कर ले। सबसे जरूरी बात यह है कि इंसान को हमेशा अपने जीवन की रक्षा करनी चाहिए, खासकर दुश्मनों से, क्योंकि जब जीवन है, तभी भविष्य की आशा है। यह सुनकर लोमशा उदास होकर वापस लौट गई।
तब भीष्म पितामह ने कहा,"हे पांडव! बिल्ली और चूहा दोनों ही दुश्मन थे लेकिन पलिता ने अपनी बुद्धि से अपने दुश्मन पर काबू पा लिया था। जब कोई साझा उद्देश्य हो ते बुद्धिमान राजा को सक्षम शत्रु से संधि कर लेनी चाहिए, लेकिन उद्देश्य पूरा हो जाने के बाद शत्रु पर भरोसा नहीं करना चाहिए। बुद्धि ही यह तय करने में मदद करती है कि कब लड़ना है, किससे लड़ना है, कब गठबंधन करना है और कब दूरी बनाकर रखना है।
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