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कुष्मांडा देवी की वो कहानी जिसने किया ब्रह्मांड का निर्माण, शास्त्रों के अनुसार ऐसे हुई थी सृष्टि की रचना

कुष्मांडा देवी का दिन नवरात्रि का चौथा दिन होता है। आठ भुजाओं वाली इस देवी के लिए मान्यता है कि इनकी हंसी मात्र से सृष्टि की रचना की थी। अगर आपको अब तक कुष्मांडा देवी की कहानी नहीं पता है, तो आज जान लीजिए। 
Editorial
Updated:- 2025-09-18, 16:49 IST

नवरात्रि में हम मां के नौ रूपों की पूजा करते हैं। इन सभी नौ रूपों की अलग-अलग व्याख्या है और इनकी अलग कहानी है। इसमें से नवरात्रि के चौथे दिन पूजी जाने वाली मां कुष्मांडा का स्थान सृष्टि की रचना करने वाली देवी के रूप में माना जाता है। मां दुर्गा के नौ रूपों में से एक कुष्मांडा देवी का नाम दो संस्कृत शब्द 'कू' यानी छोटा, 'उष्मा' यानी गर्मी और 'अंडा' यानी दैवीय बीज से जुड़कर बना है। ऐसा इसलिए क्योंकि इन्हें ही सृष्टि की रचयिता माना जाता है।

मां कुष्मांडा भी मां दुर्गा की तरह शेर की सवारी करती हैं और सूर्य का तेज अपने साथ लिए चलती हैं। आठ भुजाओं वाली माता शक्ति का प्रतीक मानी जाती हैं। मां कुष्मांडा की कहानी बहुत ही अनोखी है। उनकी कहानी भी शक्ति और समृद्धि की ताकत देती हैं।

क्या है मां कुष्मांडा की कहानी?

मां कुष्मांडा का जिक्र कई शास्त्रों में है, लेकिन इनकी कहानी देवी पुराण में लिखी हुई है। कथा के अनुसार, जब ब्रह्मांड (ब्रह्मा जी का अंड या अंश) की रचना हुई, तब वह अंधकार से भरा हुआ था और पूरी तरह से खाली था। इसके बाद मां कुष्मांडा ने इसे देखा और बस मुस्कुरा दीं। माता की मुस्कुराहट से उस रिक्त स्थान पर रौशनी का जन्म हुआ।

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इसलिए ही इन्हें शक्ति और रौशनी का प्रतीक माना जाता है। जब माता मुस्कुराईं, तब उनकी छवि से ही रौशनी बनी और ये धीरे-धीरे करके पूरे ब्रह्मांड में फैल गई। इसके बाद ही सूर्य और अन्य सभी ग्रहों का जन्म हुआ।

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सूर्य के आने के बाद ही पृथ्वी पर जीवन का विकास हुआ। पहले जल आया, फिर पौधे, फिर जानवर, फिर इंसान और इसलिए ही मां कुष्मांडा को बहुत जरूरी माना जाता है। कई बार इनका वर्णन अष्ट भुजाओं को लिए होता है और कई बार दस भुजाओं के साथ। मां कुष्मांडा सृष्टि को संभालती भी हैं और माना जाता है कि उनकी ऊर्जा से ही सृष्टि चलती है।

कैसे होती है मां कुष्मांडा की पूजा?

नवरात्रि के नौ दिनों में से मां कुष्मांडा की पूजा में मालपुए का भोग लगाने का प्रावधान हैं। इसके साथ ही, सफेद कद्दू से बनी चीजें भोज में अर्पित की जाती है।

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नवरात्रि के दिन सुबह उठकर स्नान करके पीले वस्त्र धारण करने चाहिए। मां कुष्मांडा को लाल फूल और पीले चंदन भी अर्पण किए जाते हैं। भोग में मालपुआ देने के बाद उनकी आरती की जाती है। मालपुए के साथ आप अतिरिक्त फल और मिठाइयों का भी चढ़ा सकती हैं।

कुष्मांडा मां को पीला और हरा रंग बहुत प्रीय होता है।

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कहां मौजूद है कुष्मांडा माता का मंदिर?

वाराणसी में मां कुष्मांडा का एक प्रसिद्ध मंदिर भी है। इसके अलावा, कानपुर के घाटमपुर इलाके में भी उनका मंदिर है। कुष्मांडा मंदिर नेपाल में भी स्थित है। नवरात्रि के दौरान इन मंदिरों में खासतौर पर भीड़ होती है।

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क्या है मां कुष्मांडा के लिए मंत्र?

मां कुष्मांडा के लिए "या देवी सर्वभूतेषु कुष्मांडा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः॥" मंत्र दिया गया है। कुष्मांडा मां की आरती के साथ आप इस मंत्र का जाप कर सकते हैं।

कुष्मांडा मां की पूजा की संपूर्ण जानकारी आप किसी पंडित से भी ले सकते हैं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।

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