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श्रीमद्भागवत और महाभारत में राधा नाम का उल्लेख क्यों नहीं है? जानें रहस्य

राधा रानी का नाम हमेशा से ही कृष्ण के साथ जोड़ा जाता है और यही कहा जाता है कि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, लेकिन जब कुछ बड़े ग्रंथों की बात आती है तब श्रीमद्भागवत और महाभारत में राधा रानी का नाम कहीं भी अंकित नहीं है। आइए जानें इसके कारणों के बारे में।
Editorial
Updated:- 2025-09-16, 19:44 IST

श्रीमद्भागवत पुराण और महाभारत ये दोनों ही ग्रंथ हिंदू धर्म के मुख्य स्तंभ माने जाते हैं। इन ग्रंथों में भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है। कृष्ण जी की बाल लीलाओं से लेकर महाभारत के युद्ध तक का वर्णन इन ग्रंथों में गहराई से मिलता है। कृष्ण के चरित्र, युद्धों, धर्म, नीति, और भक्तों के संवाद इन सभी का ग्रंथों में विस्तार से वर्णन मिलता है, लेकिन इन ग्रंथों की एक अद्भुत बात यह है कि इनमें किसी भी स्थान पर राधा रानी का नाम लिखा हुआ नहीं मिलता है या फिर उनका कहीं भी जिक्र नहीं है। मन में सवाल आज आता है कि एक तरफ तो राधा रानी को हर पल कृष्ण के ही नजदीक देखा जाता है फिर इन बड़े ग्रंथों में उनका एक भी स्थान पर नाम न होने का कारण क्या हो सकता है। इसके बारे में विस्तार से जानकारी लेने के लिए हमने वृन्दावन के प्रसिद्ध कथावाचक आचार्य अनंतदास जी से बात की। आइए उनसे इसके बारे में विस्तार से जानें कि इसका कारण क्या है और किस वजह से श्रीमद्भागवत जैसे बड़े ग्रंथों में नहीं मिलता है राधा रानी का नाम।

श्रीमद्भागवत और महाभारत में क्यों नहीं है राधा रानी का नाम?

  • एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार तक्षक नाग ने राजा परीक्षित को काट लिया और उन्हें श्राप मिला कि उनकी मृत्यु 7 दिनों में ही हो जाएगी।
  • उस समय कथावाचक शुकदेव जी अगर  राधा रानी का नाम ले लेते तो उन्हें भाव समाधि लग जाती और वो परीक्षित का उद्धार सात दिनों में नहीं कर पाते।
  • शुकदेव जी अगर वो राधा जी का नाम ले लेते तो परीक्षित का उद्धार संभव नहीं था, इसी वजह से व्यास जी ने श्रीमद्भागवत और महाभारत में राधा रानी का नाम नहीं लिखा।
  • इसका दूसरा कारण यह था कि राधा रानी शुकदेव   जी की गुरु मानी जाती हैं और गुरु का नाम नहीं लेना चाहिए, इसलिए इन ग्रंथों में राधा नाम अंकित नहीं है।
  • इन्हीं मुख्य कारणों की वजह से श्रीमद्भागवत में 335 अध्याय, 18000 श्लोक और 12 स्कंद होने के बाद भी राधा जी का नाम नहीं मिलता है।

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गुरु के सम्मान में श्रीमद्भागवत में नहीं मिलता है राधा जी का नाम

पौराणिक मान्यता है कि राधा रानी शुकदेव की गुरु थीं। इसलिए, वे हमेशा से ही उन्हें आदर देते थे और राधा जी का नाम नहीं लेते थे। वैदिक संस्कृति में, जब तक आवश्यक न हो, अपने गुरु का नाम लेना वर्जित होता है। इसी वजह से अनुमान लगाया जाता है कि राधा जी का नाम इन बड़े ग्रंथों में नहीं है।

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समाधि में जाने से बचने के लिए शुकदेव जी ने नहीं लिखा राधा का नाम

यदि श्री शुकदेव राधा जी का नाम लेते तो समाधि में चले जाते। इससे निस्संदेह भागवत पुराण के पाठ में देरी होती। परीक्षित के पास जीने के लिए केवल सात दिन थे। इसे ध्यान में रखते हुए, श्री शुकदेव ने राधा का नाम न लेने का निर्णय किया। ऐसा कहा जाता है कि यदि श्री शुकदेव ने राधा का नाम लिया होता तो वे समाधि में चले जाते और परीक्षित को भी मोक्ष नहीं मिलता। हालांकि राधा के नाम के साथ अन्य गोपियों का नाम भी भागवत जैसे ग्रन्थ में नहीं मिलता।

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पुराणों में मिलता है राधा रानी का जिक्र

राधा रानी का जिक्र भले की भागवत में नहीं है लेकिन कई पुराणों में उनके चरित्र का वर्णन विस्तार से मिलता है। ब्रह्म वैवर्त पुराण के प्रति खंड के 48 वें अध्याय में राधा के बारे में विस्तृत वर्णन मिलता है। 
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