Real Stories Of Women: शारीरिक शोषण से जुड़ी घटनाओं की सच्‍ची कहानियां जो बताती हैं महिलाओं ने कैसे किया FightBack

शारीरिक शोषण से जुड़ी सच्ची कहानियां, जो दिखाती हैं कैसे महिलाओं ने साहस और ताकत से अपनी लड़ाई लड़ी। जानिए वास्तविक अनुभव और संघर्ष की कहानियां जो प्रेरित करती हैं और बदलाव की दिशा दिखाती हैं।

stories of women defending themselves against harassment new
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कानपुर शहर का घंटाघर इलाका सेंट्रल रेलवे स्टेशन से सटा हुआ है और इसलिए लोगों की आवा जाही से यह जगह हमेशा ही व्यस्त रहती है। यह इलाका इतना ज्यादा भीड़भाड़ वाला है कि यहां पर लोगों का बदन तक एक दूसरे से छू जाता है और कई बार तो इतना ज्यादा जाम लग जाता है कि इस इलाके में लोग घंटों के लिए फंस जाते हैं।

उस दिन भी ऐसा ही कुछ नजारा था। शाम के 6 बज रहे थे और मैं अपनी मम्मी के साथ मौसी के घर से वापिस अपने घर लौट रही थी। तीन पहिया रिक्‍शे में बैठकर मैं आगे की ओर बढ़ रही थी कि तब ही एक लड़के ने जोर से आकर मेरी छाती पर हाथ मारा। बहुत तेज लगी थी और मेरा मुंह से आवाज तक आ गई थी। मम्मी ने पूछा भी था क्‍या हुआ, मगर शर्म के मारे बस इतना ही कह पाई धक्का लग गया। मगर उस दिन मैं अपने घर लौटकर बहुत रोई। मुझे लगा कि काश मैं लड़की नहीं होती या मेरे ब्रेस्‍ट नहीं होते तो शायद मेरे साथ ऐसा नहीं होता है।

मेरी उम्र तब मात्र 12-13 वर्ष ही रही होगी और ब्रेस्‍ट भी पूरी तरह विकसित नहीं हुए थे। तब भी मेरे साथ इस तरह का हादसा हुआ। आज मेरी उम्र 34 वर्ष है और मैं अब दिल्‍ली जैसे बड़े शहर में रहती हूं। उस घटना की छाप मेरे मन में कुछ इस कदर पड़ चुकी है कि अब मैं जब पब्लिक प्‍लेस में जाती हूं तो बहुत एलर्ट रहती हूं और अगर कोई आदमी गलत इरादे से मेरे नजदीक आने या मुझे टच करने की कोशिश भी करता है, तो मैं उसके गाल लाल करने में देरी नहीं करती।

यह आप बीती है कानपुर निवासी अंजली महिंद्रा की। अंजली जैसी ही न जाने कितनी ही लड़कियां हैं, जिन्होंने बचपन या टीनेजर वाली कच्‍ची उम्र में इस तरह के हैरेसमेंट सहे होंगे। कई बार हम डर कर चुप बैठ जाते हैं तो बार हम हिम्मत करके आवाज उठाते हैं। हरजिंदगी के कैंपेन #FightBack के तहत हमने कुछ ऐसी ही लड़कियों और महिलाओं से बात की है, जिन्‍होंने किसी न किसी रूप में सेक्‍शुअल हैरेसमेंट का सामना किया है और उस घटना की छाप इतनी गहरी है कि आज भी उभर आती है और मन किलस उठता है कि उस वक्‍त कोई बड़ा कदम उठाया होता, तो शायद आज दूसरों के लिए मिसाल बन जाते। वहीं हमें कुछ ऐसी महिलाएं भी मिलीं, जिन्होंने अपने साथ हुए हैरेसमेंट पर मनचलों को मुंह तोड़ जवाब दिया और अपनी सुरक्षा खुद की।

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घर में ही नहीं सुरक्षित हैं लड़कियां

यह एक बहुत ही गंभीर और चिंताजनक बात है कि हमारे देश में बच्चियां, लड़कियां और महिलाएं केवल सार्वजनिक स्थानों पर ही नहीं, बल्कि अपने खुद के घरों में भी सेफ नहीं हैं। उनके साथ घरेलू हिंसा से लेकर यौन शोषण तक उनके अपने घर में ही होते हैं और इसके खिलाफ आवाज उठाना उनके लिए बहुत मुश्किल हो जाता है। ऐसी ही मुश्किल परिस्थिती से मुंबई की पीआर प्रोफेशनल एंबी बाफना भी गुजर चुकी हैं। वह बचपन की एक घटना को याद करती हैं और कहती हैं, "पापा के एक दोस्त हमारे घर अक्सर आया करते थे। मैं तब 5-6 साल की थी। धुंधली सी यादें हैं, मगर उस अंकल की हरकतों को मैं भूल नहीं सकती। वो मुझे अपने पास बुलाते और गोदी में बैठाते और फिर मेरे शरीर के किसी भी हिस्से को अपने हाथों से दबाने लग जाते है। ऐसा वो तब करते थे, जब मम्‍मी-पापा वहां नहीं होते। मैं जब उनकी ऐसी हरकतों से चिढ़ जाती थी तब मैं उनके पास से भगाने की कोशिश करती थी। पापा तब बोलते थे कि अरे इन अंकल के साथ तो तुम बहुत खेलती हो, आज क्‍या हुआ और वो अंकल मेरी तरफ देखकर हंसता। उसकी हंसी में उसकी जीत झलकती थी, जो उस वक्त मुझे बहुत दुख पहुंचाती थी। मैंने तब अपने मम्‍मी-पापा को यह बात नहीं बताई। वक्त बीता और मैं 13-14 साल की हो गई। काफी समय बीत गया था और वो अंकल एक दिन फिर से मेरे घर आए। मुझे देख कर हंसे। उस हंसी से मुझे बचपन की सारी बातें याद आ गईं। मैं समझदार और हिम्‍मतदार भी हो गई थी। उस दिन मैंने अंकल से कहा, "अगर तुम चाहते हो कि मैं तुम्‍हें बेइज्जत करके घर से न निकालूं तो खुद ही यहां से चले जाओ" इस दिन मैंने अपनी मां और पिता को सारी बात बताई। उन्होंने ने भी मेरा साथ दिया और शायद इसलिए आज मैं बहुत बोल्‍ड सोच रखती हूं और गलत नहीं बर्दाश्त करती हूं।"

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इस तरह की घटनाएं हममे से कई महिलओं के साथ हुई होंगी। मगर नसमझ होने के कारण हम डर कर चुप बैठ जाते हैं, जिससे शोषण करने वाला खुद को और भी ज्यादा प्रभावशाली समझने लगता हैं। इसलिए बच्चों के पेरेंट्स को एलर्ट होने की आवश्यकता है। खासतौर पर मांओं को निगरानी रखनी है कि उनकी बच्‍ची के लिए कौन शख्स सही है और कौन गलत। इस विषय पर हमारी बातचीत जशोदाबेन एमएल स्कूल, मुंबई की मनोवैज्ञानिक और स्कूल काउंसलर वाहबिज केरावाला से हुई है और वह कहती हैं, "अपनी बच्‍ची का बिहेवियर सबसे ज्यादा एक मां ही पढ़ सकती है। इसलिए मां को बच्‍ची से समय-समय पर पूछताछ करते रहना चाहिए। खासतौर पर उन्‍हें कौन पसंद है और कौन नहीं उसे भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।"

ऐसी ही एक और घटना के बारे में इंदौर की नेहा जैन भी बताती हैं। पेशे से डॉक्टर नेहा के साथ भी घर पर शारीरिक शोषण हुआ और बदकिस्मती से वो इसके खिलाफ आवाज भी नहीं उठा पाई लेकिन आज वो एक बेटी की मां हैं और बेटी इस तरह के किसी हादसे की शिकार न हो, इसलिए वो पूरी सावधानी बरतती हैं। नेह हादसे के बारे में बताती हैं, "मैं 4 क्लास में पढ़ती थी तब और मुझे पढ़ाने के लिए एक ट्यूटर घर पर ही आता था। वो पढ़ाते-पढ़ाते मेरे प्राइवेट पार्ट्स पर केवल अपना हाथ रख लेता था, जो मुझे बहुत ही अटपटा लगा था। मैं उससे कुछ नहीं बोल पाती थी, मगर जब वो मुझे पढ़ाने आता था मैं डर जाती थी। उस वक्‍त के पेरेंट्स भी बहुत अंडरस्टैंडिंग नहीं होते थे इसलिए मैंने मम्मी-पापा को नहीं बताया क्योंकि वो यही बोलते कि तुम पढ़ना नहीं चाहती हो। इसलिए जब वो ट्यूटर आता था, मैं घर में ही कहीं छुप जाती थी और जब तक वो चला नहीं जाता था छुपी रहती थी। इस तरह से मेरे घरवालों ने मेरी दूसरी ट्यूशन लगा दी।"

नेहा ने जो किया वो सही नहीं था मगर अमूमन लड़कियां आज भी ऐसा ही करती हैं, जबकि सही तरीका यही है कि सबसे पहले अपने पेरेंट्स को किसी भी घटना के बारे में बताना चाहिए, वहीं पेरेंट्स को अपने बच्चे की बात पहले सुननी और माननी चाहिए।

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बच्चियों की सुरक्षा को लेकर जरूरी बातें

  • अपनी बच्चियों को किसी भी रिश्‍तेदार या पड़ोसी के साथ अकेला न छोड़ें। फिर चाहे वो रिश्तेदार आपका कितना भी नजदीकी क्‍यों न हो।
  • बच्‍ची छोटी है, तब भी उसे नहलाने से लेकर उसके कपड़े बदलने तक का काम अकेले में करना चाहिए।
  • बच्‍चे के सामने कपड़े बदलना, नहाना, अडल्‍ट वीडियो कंटेंट देखने से बचना चाहिए।
  • बच्‍चे को बैड टच और गुड टच के बारे में भी आपको बताना चाहिए।
  • बच्‍चे की बातों को ध्‍यान से सुनें और फिर एक्‍शन जरूर लें।
  • किसी भी घटना का जिम्मेदार बच्‍चे को न ठहराएं।
  • प्राइवेट पार्ट के बारे में बच्‍चों को जरूर होनी चाहिए जरूरी जानकारी।
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जिनसे सुरक्षा की आस है, उन्‍हीं को हवस की प्यास है

कितनी शर्म की बात है, जब रक्षक ही भक्षक बन बैठता है। जिन्‍हें हमारी सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई है, उन्हीं के हाथों हम असुरक्षित हैं। सुरक्षा देने वाले देश के जवानों और पुलिस कर्मचारियों को लेकर यौन उत्पीड़न और शारीरिक शोषण के मामले आए दिन अखबारों की सुर्खियों पर होते हैं। हमें कुछ महिलाओं ने ऐसी ही घटनाओं के बारे में बताया, जिससे साबित हो जाता है कि महिलाएं किसी पर भरोसा नहीं कर सकती हैं।

लंदन में रहने वाली भारतीय निवासी दिव्यांशी टंडन पेशे से आईटी प्रोफेशनल हैं। वह कहती हैं, "मैं 12वीं क्‍लास में थी और लखनऊ में अपनी फैमिली के साथ रहती थी। मेरे एक फ्रेंड का बर्थडे था। उसने अपनी बर्थ डे पार्टी कैंट एरिया में मौजूद एक छोटे रेस्त्रां में रखी थी। बहुत सारे दोस्त आए थे। मगर कैंट थोड़ा सुनसान एरिया था इसलिए लौटते वक्त मैं अपने एक दोस्त के साथ बाइक से घर जा रही थीं। बीच रास्‍ते में दो सिपाहियों ने हमें रोका और मेरे दोस्त की बाइक की चाभी निकालकर उसे घर से किसी को बुलाने को बोला और मेरे को एक सिपाही ने घर छोड़ने की बात कहीं। मैंने सोचा सिपाही अपनी बाइक से मेरे को घर छोड़ रहा है, तो डरने की क्‍या बात है। मगर बीच रास्ते में सिपाही ने मेरे से कहा कि वो मेरे को घर छोड़ने से पहले मेरे साथ शारीरिक संबंध बनाना चाहते हैं। यह सुनकर मैं डर गई और चली बाइक से कूद गई। मुझे चोट आई मगर मैं उल्टी दिशा में तेज भागी और एक जगह छुप गई। किसी तरह घर पहुंची। यह बात मैंने तब किसी को नहीं बताई क्योंकि मुझे लगा वो सिपाही है मेरी बात पर कौन यकीन करेगा। मगर आज मेरे को लगता है कि मैंने गलत किया था। अब मैं किसी पर भरोसा नहीं करती हूं। अपनी सुरक्षा अपने हाथों में होती है।"

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इस शर्मनाक घटना जैसी ही एक और घटना का जिक्र करते हुए मीडिया प्रोफेशनल ज्योति द्विवेदी कहती हैं, "मैं स्कूटी से जा रही थी तब ही 2 लड़कों ने सुनसान सड़क पर मेरा रास्‍ता रोक लिया। तब मैंने पुलिस को 100 नंबर पर कॉल किया। फोन उठा ही नहीं। मैं किसी तरह से उनसे बचती-बचाती आगे पहुंची तो एक पुलिस वाला दिखा। उसे जब मैंने उन लड़कों के बारे में बताया, तो उसने बिना कार्यवाही किए मेरे से कहा आप जाओ अब कोई परेशान नहीं करेगा। यहां तक कि वो पुलिस वाला इतना अजीब था कि जब मैंने उससे कहा 100 नंबर नहीं लग रहा है, तो उसने मेरे से कहा कि नंबर बदल गया होगा। "

इन घटनाओं के बारे में जानकर शायद अब आप भी किसी पर भरोसा करने से पहले 10 बार सोचें। मगर इसका मतलब यह नहीं कि एक पुलिस कर्मचारी या सिपाही ऐसा है तो सब ऐसे होंगे। किसी मुसीबत में अगर आप फंस जाएं तो अब केवल 100 नंबर ही नहीं बल्कि बहुत सारे महिला सुरक्षा हेल्पलाइन नंबर (महिला हेल्पलाइन नंबर्स-181,1091,1291,1093,112 ) हैं, जहां फोन करके आप अपनी शिकायत दर्ज करा सकती हैं।

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शारीरिक शोषण अपराध भी है और मानसिक रोग भी

हम हमेशा देश में सेक्‍स एजुकेशन की जागरूकता में कमी होने की दुहाई देते रहते हैं। मगर अब तो हर स्‍कूल और कॉलेज में विशेष रूप से इस विषय पर खुल कर चर्चा हो रही है। हालांकि, अभी भी इस विषय पर करने में लोग हिचकते हैं, मगर जानकारी सभी को है। ऐसे में जिन लोगों का कभी पढ़ाई लिखाई से वास्‍ता नहीं रहा और जो हाइली एजुकेटेड हैं, दोनों ही यौन उत्पीड़न जैसे अपराध को करने से नहीं डरते हैं। इससे जुड़ा एक केस हमें लखनुऊ की रशिम शर्मा बताती हैं। वह कहती हैं, "बचपन में हम जिस मोहल्ले में रहते थे, वहां मेरा एक पड़ोसी जब भी मेरे को देखता अपनी पैंट खोलकर अपना प्राइवेट पार्ट दिखने लगता। मैं तब नहीं समझती थी कि वो क्‍या इशारे कर रहा है। 10 साल की बच्ची थी और मम्मी को भी यह सब बताने में शर्माती थी। एक दिन मैंने अपनी दोस्‍त को इस बारे में बताया। उसने मेरे को इस गंदे इशारे का अर्थ बताया। तब मल्टीमीडिया मोबाइल फोन का जमाना था। मैं एक दिन जानकर उस पड़ोसी के सामने गई और उसने वही किया जो वो हमेशा करता था। मगर इस बार मैंने अपनी दोस्‍त को उसका छुपकर वीडियो बनाने के लिए बोल दिया था। यह बात उसे नहीं पता थी। अगली बार मेरा उसका जब सामना हुआ तो उसने फिर से वही हरकत की और इस बार मैंने उसका वीडियो उसे दूर से दिखाया। वो हैरान था और उससे भी ज्यादा हैरान थे मेरे और उसके घरवाले, जब यह बात मैंने उन्हें सबूत के साथ दिखाई। "

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इतनी कम उम्र में भी लड़की में अपनी सुरक्षा और परिस्थिति का सामना करने और मुसीबत से खुद को बाहर निकालने की समझ होना, किसी मिसाल से कम नहीं। रश्मि जैसा केस हममें से कई महिलाओं के साथ हुआ होगा। ऐसी परिस्थितियों में डरने की जगह खुद को सुरक्षित रखते हुए समझदारी से काम लेना जरूरी है।

खैर जरूरी तो यह भी है महिलाओं के साथ हो रही शारीरिक शोषण की घटनाओं से एक जुट होकर निपटा जाए। इसके लिए हर किसी को और हर स्तर पर जिम्मेदारी लेनी होगी। शिक्षा, जागरूकता, और सख्त कानूनी उपाय इसके समाधान में मददगार हो सकते हैं। इसके साथ ही, परिवारों और समाज को भी इस दिशा में अपनी सोच बदलनी होगी और अपनी बच्चियों का साथ देना होगा, ताकि वे शरीर और दिमाग दोनों से खुद को मजबूत समझें।

उम्‍मीद है कि हमारे इस लेख में बताई गई कहानियां आपके मन को भी झंझोर रही होंगी और इनमें बताए गए सुझाव आपको पसंद आए होंगी। अगर आप भी यौन उत्पीड़न या शारीरिक शोषण से जुड़ी किसी घटना के बारे में बताना चाहती हैं या फिर अपने विचार या सुझाव हमसे साझा करना चाहती हैं, तो anuradha.gupta@jagrannewmedia.com ईमेल आईडी पर मेरे से संपर्क कर सकती हैं।

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