
बेटियां घर से बाहर निकलें या फिर घर की चार दीवारी में ही रहें, उनकी सुरक्षा और आजादी आज भी एक बड़ा सवाल है। हाल ही में महाराष्ट्र के पुणे ज़िले स्थित एक सरकारी आदिवासी हॉस्टल की छात्राओं के आरोपों ने पूरे देश को झकझोरकर रख दिया है। उस हॉस्टल की लड़कियों का दावा है कि उनके छुट्टियों से वापस लौटने पर हॉस्टल में प्रवेश से पहले प्रेग्नेंसी टेस्ट कराया गया। वास्तव में यह न सिर्फ समाज के लोगों की घिनौनी सोच का नतीजा है बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि देश की बेटियों को अपनी ही स्वतंत्रता और सुरक्षा साबित करने की न जाने कितनी परीक्षाएं देनी पड़ती हैं। आज भी जब घर की बेटी देर से घर वावास आती है तो उससे सबसे पहले यही पूछा जाता है कि वो इतनी देर तक कहां थी, वहीं लड़कों को बेझिझक और बेख़ौफ़ देर रात तक सडकों पर घूमने की स्वतंत्रता है। पुणे की ये घटना वास्तव में हमारे सामने एक बड़ा सवाल खड़ा करती है कि आखिर कब तक लड़कियों को अग्नि परीक्षा देनी पड़ेगी?
महाराष्ट्र में पुणे में एक सरकारी आदिवासी हॉस्टल की कई छात्राओं ने वॉर्डन पर यह आरोप लगाया है कि उनके छुट्टियों से लौटने के बाद हॉस्टल में प्रवेश से पहले यूरिन प्रेग्नेंसी टेस्ट कराया जाता है। हालांकि अगर हम सरकारी नियमों की बात करें तो ऐसा कोई भी नियम नहीं है जो इस तरह का टेस्ट करने के बारे में बताता हो। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र की आदिवासी विकास आयुक्त लीना बंसोड़ का कहना है कि ऐसा कोई भी टेस्ट नहीं होना चाहिए, लेकिन हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों का दावा है कि ऐसा करने पर जोर दिया जाता है और इस तरह के किसी भी टेस्ट पर तुरंत रोक लगाने की जरूरत है। वास्तव में इस तरह का कोई भी टेस्ट करवाना लड़कियों की आजादी पर एक सवाल उठाता है।

हमारे देश में लड़कियों और महिलाओं को लेकर सामाजिक मानसिकता हमेशा शक से शुरू होती है। अगर कभी कोई लड़का घर के आस-पास बार-बार नजर आता है तो पिता का शक सबसे पहले बेटी पर जाता है कि कहीं बेटी का इससे कोई संबंध तो नहीं है? पत्नी अगर रात में देर से घर पहुंचती है तो सबसे पहले उस पर इस बात का शक किया जाता है कि कहीं वो किसी और के साथ घूम तो नहीं रही थी, नाईट शिफ्ट पर काम करने वाली लड़कियों के चरित्र पर न जाने कितनी बार उंगलियां उठाई जाती हैं। यही नहीं दूसरी महिलाएं ही उन्हें शक की नजर से देखती हैं। यही नहीं अगर लड़की किसी लड़के दोस्त के साथ घूम भी यही है तब भी उस पर इस बात का शक जताया जाता है कि कहीं उसके इरादे कुछ और तो नहीं हैं? यही नहीं पुणे के हॉस्टल में लड़कियों का प्रेग्नेंसी टेस्ट करना भी शक की पराकाष्ठा ही है। आखिर कब तक देश की बेटियां शक के घेरे में रहेंगी?

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो जो लड़की हॉस्टल में प्रेग्नेंसी टेस्ट कराने से मना करती है उसे हॉस्टल में रहने से मना किया जाता है। पुणे की छात्राओं के साथ जो हो रहा है वो देश की सामजिक सोच पर सवालिया निशान खड़ा करता है। वास्तव में हॉस्टल प्रशासन का यह रवैया इस बात को साफ तौर पर दिखाता है कि हम आज भी महिलाओं को पूर्ण स्वतंत्र नागरिक नहीं, बल्कि निगरानी की वस्तु समझते हैं। यह घटना गैरकानूनी तो है ही और लड़कियों की निजता के अधिकार का भी उल्लंघन है। अगर हम संविधान और कानून की मानें तो किसी भी संस्था को यह अधिकार नहीं कि वह किसी छात्रा के शरीर या स्वास्थ्य की इस तरह से निगरानी करे या उसकी अनुमति के बिना कोई भी मेडिकल परीक्षण कराए।
अगर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर यह किया जाता है तो सुरक्षा का मतलब लड़कियों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करना नहीं होना चाहिए। अगर हॉस्टल प्रशासन लड़कियों की सुरक्षा के लिए यह कदम उठा रहा है, तो इसके बजाय बेहतर हॉस्टल वॉर्डन की नियुक्ति हो, हॉस्टल और आस-पास का वातावरण सुरक्षित हो, हॉस्टल में काउंसलिंग सुविधाएं मौजूद हों, जिससे कोई भी छात्रा गलत कदम न उठाए। वहीं लड़कियों को शक के घेरे में लेते हुए प्रेग्नेंसी टेस्ट करना सुरक्षा नहीं, बल्कि मानसिक प्रताड़ना है।
वास्तव में लड़कियों की सुरक्षा के नाम पर इस तरह का ढोंग करना समाज पर एक प्रश्न चिह्न है और ये महिलाओं की सुरक्षा पर भी एक सवालिया निशान खड़े करता है। ऐसा कोई भी सामाजिक बंधन जो महिलाओं को किसी भी स्वास्थ्य जांच के लिए बाध्य करता है वो खत्म करने की जरूरत है और महिलाओं का हर बार खुद को सही साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा देना भी गलत है।
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