स्मार्टफोन हमारी जिंदगी का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है। हम लगातार कॉल पर बात करते हैं, मैसेज भेजते हैं, सोशल मीडिया स्क्रॉल करते हैं या ईमेल चेक करते हैं। यह डिजिटल जुड़ाव कई मायनों में सुविधाजनक है, लेकिन जब बात बच्चों की आती है, तो हमारी यह आदत उन्हें अनजाने में बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है। माता-पिता जब अपने बच्चों के सामने हर वक्त अपने फोन में व्यस्त रहते हैं, तो इसका असर उनके भावनात्मक, सामाजिक और विकासात्मक पहलुओं पर पड़ सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बच्चे अपने आस-पास के माहौल से सीखते हैं और जब वे देखते हैं कि उनके माता-पिता का ध्यान लगातार स्क्रीन पर है, तो यह उनके लिए कई नकारात्मक संदेश देता है। अगर आप भी उन पेरेंट्स में से हैं, जो बच्चों के सामने फोन का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं और जानना चाहते हैं कि आपकी यह आदत कैसे बच्चों को नुकसान पहुंचा रही है, तो यह लेख आपके लिए है। हम आपको यह बताएंगे कि इस आदत से आपके बच्चे किस तरह प्रभावित हो सकते हैं और इसको सुधारना क्यों जरूरी है। तो चलिए नई दिल्ली के आर्टेमिस लाइट एनएफसी के वरिष्ठ सलाहकार एवं प्रमुख मनोचिकित्सा डॉ. राहुल चंडोक से इस बारे में जानते हैं।
जब माता-पिता या देखभाल करने वाले बच्चे के सामने लगातार फोन में व्यस्त रहते हैं, तो इसे फोब्बिंग कहते हैं। यह आदत बच्चों के विकास और उनके साथ आपके रिश्ते पर कई नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, जिसके बारे में आगे बताया गया है।
स्मार्टफोन लोगों की जरूरत बन गए हैं। ऐसा लगता है कि अगर स्मार्टफोन न हो, तो पूरा जीवन ही थम जाएगा। हालत ऐसी हो गई है कि घर में भी हर वक्त कॉल, मैसेज या सोशल मीडिया के चक्कर में मोबाइल हाथ में ही रहता है। आपकी आंखों और सेहत को तो इससे नुकसान हो ही रहा है, साथ ही इससे घर में आपके बच्चे भी प्रभावित हो रहे हैं। अगर माता-पिता लगातार स्मार्टफोन में बिजी रहें, तो बच्चे के व्यवहार और विकास पर कई तरह से दुष्प्रभाव पड़ता है।
विज्ञान पत्रिका डेवलपमेंटल साइंस में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, मां अगर स्मार्टफोन पर लगी रहती है, तो बहुत कम उम्र से ही बच्चों के व्यवहार पर नकारात्मक असर पड़ने लगता है। अध्ययन के दौरान सात महीने से दो साल तक के ऐसे बच्चों में ज्यादा चिड़चिड़ापन देखा गया। ऐसे बच्चे लोगों से जल्दी घुलते-मिलते भी नहीं। जैसे-जैसे बच्चे बढ़ते हैं, उनमें नकारात्मकता बढ़ती जाती है। सामाजिक रूप से भी ऐसे बच्चे कम मिलनसार और कम संवेदनशील होते हैं।
आठ से 13 साल तक के छह हजार बच्चों पर किए गए एक अंततराष्ट्रीय अध्ययन में पाया गया कि अगर माता-पिता घर में ज्यादा समय स्मार्टफोन पर बिताएं, तो बच्चे खुद को महत्वहीन समझने लगते हैं। बच्चों को लगता है कि कोई मैसेज या नोटिफिकेशन उनसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, जो माता-पिता से मिलने वाला उनके हिस्से का समय छीन लेता है। खाने-पीने और आपसी बातचीत के दौरान माता-पिता द्वारा स्मार्टफोन देखते रहने से बच्चों को लगता है कि माता-पिता का ध्यान आकर्षित करने के लिए उन्हें स्मार्टफोन से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ेगी।
घर में अगर बच्चों की अनदेखी करके माता-पिता ज्यादा समय स्मार्टफोन पर बिताते हैं तो बच्चों में दुख, गुस्से और अकेलेपन की भावना पनपने लगती है। ध्यान आकर्षित करने के लिए बच्चे ज्यादा शरारत करते हैं। गुस्से में चीजें तोड़ना या खराब करना भी उनकी आदत में शामिल होने लगता है। ऐसे में बच्चों में अकेलेपन की भावना आने का खतरा भी रहता है। यह अकेलापन उन्हें अवसाद और एंजाइटी जैसी मानसिक समस्याओं का शिकार भी बना सकता है।
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अध्ययन बताते हैं कि बच्चों की मौजूदगी में घर में माता-पिता के स्मार्टफोन पर लगे रहने से बच्चों का विकास बाधित होता है। बच्चों को खाने-पीने से लेकर खेलने-कूदने तक की सभी सुविधाएं मिलने के बाद भी अगर माता-पिता का पूरा समय और ध्यान न मिले, तो उनके मस्तिष्क का सही तरह से विकास नहीं हो पाता है। ऐसे बच्चे सामाजिक गतिविधियों का हिस्सा बनने में कतराते हैं। अध्ययन यह भी बताते हैं कि बच्चों की तुलना में स्मार्टफोन को ज्यादा समय देने वाले माता-पिता अच्छी पैरेंटिंग नहीं कर पाते हैं। ऐसे माता-पिता बच्चों पर ज्यादा चिल्लाते हैं। कई बार स्मार्टफोन देखने की यह आदत बच्चों के खानपान को भी प्रभावित करती है, जिससे उनके शारीरिक विकास पर भी असर पड़ता है।
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