लड़कियों के साथ रेप की क्या बात की जाए... अपने देश में तो बच्चे भी सेफ नहीं है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी गई है कि 2016 में पूरे देश में एक लाख से अधिक बच्चे यौन हिंसा के शिकार हुए। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि केवल 229 मामलों में ही फैसला सुनाया गया है। यह सारी जानकारी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका के तहत दी गई है।
याचिका में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के आंकड़े दर्ज किए गए हैं। इस रिपोर्ट के हवाले से बताया गया है कि 2016 में बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा के 1 लाख से ज्यादा केज दर्ज हुए हैं जबकि कोर्ट इनमें से महज 229 मामलों में ही फैसला सुना पाया है।
यह सारी जानकारी सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से देश में प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस (पोस्को) एक्ट के तहत मांगी थी। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने पोस्को के तहत जितने भी पेंडिंग केसेस बाकि थे उसकी जानकारी मांगी थी।
आपको शायद मालूम होगा कि पोस्को एक्ट के तहत दर्ज होने वाले मामलों में कोर्ट को चार्जशीट का परिज्ञान लेने के एक साल के अंदर फैसला सुनाना होता है।
ये सारा मामला आठ महीने की बच्ची के रेप के मामले में आंकड़े देकर शुरू हुआ है। दरअसल बीते दिनों वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने एक आठ महीने की बच्ची के रेप के मामले में याचिका दायर की थी। जिसमें नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2016 की रिपोर्ट का हवाला देकर पेंडिंग केसों की स्थिति के बारे में बताया गया था।
जस्टिस दीपक मिश्रा,जस्टिस एएम खानविल्कर और डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने याचिका को संज्ञान में लेकर इन केसों की जानकारी जुटाकर, समाधान निकालने की बात कही है। बेंच ने देश के हाईकोर्ट्स से 4 हफ्तों में पोस्को एक्ट के पेंडिंग केसों की रिपोर्ट तलब की है।
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दायर याचिका में 6 महीने के अंदर फैसला सुनाने की मांग की गई है। मांग है कि 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ रेप के मामलों में रिपार्ट दर्ज होने के 6 महीने के अंदर ही फैसले सुनायए जाए।
इस मामले में अलगी सुनवाई 20 अप्रैल को होगी। बता दें कि वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने जिस मामले को लेकर याचिका दायर की है, उसमें केंद्र सरकार ने बताया है कि उस बच्ची से रेप के मामले में एफआईआर दर्ज की जा चुकी है। आरोपी न्यायिक हिरासत में है।
तो यह है अपने देश का हाल... जहां आठ महीने की बच्ची से रेप के मामले की एफआईआर दर्ज कर सरकार अपने जिम्मेदारी पूरी कर लेती है। जहां एक साल में एक लाख से अधिक बच्चे यौन शोषण के शिकार हो रहे हैं। फिर तो जवां लड़कियां की क्या ही बिसात जो शहरो में अकेले रहकर पढ़ाई और जॉब कर रही है।
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