भारत की मेल डॉमिनेटिंग सोसाइटी में महिलाओं के लिए जिंदगी हमेशा से ही चुनौतीपूर्ण रही है। महिलाओं के लिए पढ़ाई-लिखाई से लेकर जॉब और घर-परिवार सभी जगह महिलाओं को कुछ ना कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन इसके लिए कुछ हद तक महिलाएं खुद भी जिम्मेदार हैं। अगर बच्चियों को बचपन से मजबूत बनाया जाए तो बड़े होकर वे घर-परिवार से लेकर समाज में सामने आने वाली हर मुश्किल का मजबूती से सामना करने के लिए तैयार होंगी।
आप बॉलीवुड की लीडिंग लेडीज से ले सकती हैं इंस्पिरेशन, जो अपनी बेटियों की खूब पैंपर करती हैं। ऐश्वर्या राय बच्चन अपने बेटी आराध्या को खूब प्यार करती नजर आती हैं। वहीं मीरा राजपूत भी अपने बेटी मीशा को लाढ़-प्यार करती नजर आती है।
बच्चियों की परवरिश करते हुए अक्सर उनसे ऐसी बातें कही जाती हैं, जो उनके मन में डर पैदा करती हैं और सीमाओं के भीतर रहने के लिए तैयार करती हैं। अगर आप भी एक बच्ची की मां हैं और अपनी बेटी को बड़े होकर काबिल, आत्मविश्वासी और निडर बनाने की हसरत रखती हैं तो आपको ऐसी बातों से आगाह होने की जरूरत है, इन बातों को भूलकर भी नहीं कहें अपनी बेटी से-
'शादी करके ससुराल ही तो जाना है'
मम्मियां अक्सर बेटों को कई तरह की एक्टिविटी में जाने के लिए प्रेरित करती हैं, वहीं बेटियों को घर-द्वार तक सिमट कर रहने को कहती हैं। बेटी को बचपन से ही यह बात कहना कि 'शादी करके ससुराल ही तो जाना है' और उन्हें उनकी पसंद के काम करने से रोकना गलत है। बच्चियों के सपनों को परवान चढ़ने दें। अगर उनकी साइंस, मैथ्स या कॉमर्स में रुचि है तो इन विषयों में उसे आगे पढ़ाई करने और प्रोजेक्ट्स तैयार करने के लिए प्रोत्साहित करें। उसे हौसला दें कि वह जो चाहे, हासिल कर सकती है।
'पढ़-लिख कर क्या करोगी, किचन का काम सीखो '
अक्सर मां खुद को जैसी भूमिका में देखती हैं, बच्चियों को भी उसी के लिए तैयार कर रही होती हैं। अगर आपने होममेकर बनकर घर-परिवार की जिम्मेदारी संभाली तो जरूरी नहीं कि आपकी बेटी भी ऐसा ही करना चाहे। उसके मन की बात जानें और उसे पढ़ने-लिखने से कभी ना रोकें। घर-गृहस्थी के कामों में अगर बेटी की रुचि नहीं है तो उस पर ज्यादा दबाव ना डालें।
'दोस्तों के साथ घूमने की क्या जरूरत है'
अगर लड़के बेटी के दोस्त हैं तो उनके साथ घुलने-मिलने से बेटी को ना रोकें। दोस्तों के साथ बच्चियां ज्यादा अटैच फील करती हैं और भीतर से मजबूत महसूस करती हैं। दोस्तों के साथ उनकी अच्छी शेयरिंग होती है। जो बातें बेटियां अपने पेरेंट्स से नहीं कह पातीं, अक्सर वे अपने दोस्तों से बताती हैं। लड़कों के साथ बात करने के लिए बच्चियों को रोक-टोक लगाने के बजाय उन्हें सेक्स एजुकेशन दें, ताकि वे खुद को आने वाले समय के लिए तैयार कर सकें।
'तमीज से बैठो, ससुराल में ये सब नहीं चलेगा'
बेटियों पर छोटी या पारदर्शी ड्रेसेस के लिए सीधे-सीधे रोकटोक ना करें। बच्चियों के उठने-बैठने के ढंग पर टोका-टाकी करना और उनकी ड्रेसेस को लेकर सवाल खड़े करना और कहना कि ऐसी ड्रेस ससुराल में पसंद नहीं की जाएंगी, बिल्कुल गलत है। बच्चियों को अपनी तरह से रहने के लिए स्पेस दें। जब वे अपनी इच्छा से काम करेंगी तो वे अपने किए हुए कामों के लिए ज्यादा जिम्मेदार महसूस करेंगी।
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