राधा-कृष्ण की तरह ही मन मोह लेगी यह पौराणिक दिव्य प्रेम कहानी

आपके प्रेम संबंधों को मजबूत बना देगी यह दिव्‍य प्रेम कथा, आर्टिकल पढ़ें और जानें।

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भगवान श्री कृष्‍ण और श्री राधा रानी की प्रेम लीलाओं के बारे में हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। मगर इन दोनों की प्रेम कथा जैसी ही मनमोहक एक और प्रेम कहानी है। यह कहानी है श्रीनिवास और भार्गवी की।

शास्त्रों की मानें तो दोनों राधा-कृष्ण का ही स्वरूप हैं। श्रीनिवास जहां भगवान विष्‍णु का अवतार हैं, वहीं भार्गवी देवी लक्ष्‍मी का। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक श्राप के चलते देवी लक्ष्‍मी को पृथ्‍वी लोक में जन्‍म लेना पड़ा था और भगवान विष्‍णु अपनी श्री को वापस स्‍वर्ग लोक ले जाने के लिए पृथ्‍वी पर आए थे।

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श्रीनिवास और भार्गवी की प्रेम कहानी

भार्गवी ने महर्षि भृगु के घर में जन्‍म लिया था। दरअसल, देवी लक्ष्‍मी के श्राप के चलते पूरा ब्राह्मण समाज श्रीहीन हो गया था। ब्राह्मण समाज में दोबारा श्री यानि लक्ष्‍मी को लाने के लिए ऋषि भृगु स्‍वर्ग लोक पहुंच गए और श्री विष्‍णु को उस वरदान के बारे में याद दिलाया, जो उन्‍हीं के द्वारा ऋषि भृगु को दिया गया था।

इस वरदान के चलते ऋषि भृगु ने भगवान विष्‍णु से देवी लक्ष्‍मी को बेटी के स्‍वरूप में मांग लिया था, तब देवी लक्ष्‍मी ने भार्गवी के रूप में ऋषि भृगु के घर में जन्‍म लिया था।

भार्गवी के युवा होने पर उसके जीवन में श्रीनिवास नामक एक युवा नृतक आया। श्रीनिवास जहां भार्गवी को नृत्‍य कला सिखाता, वहीं दूसरी ओर ऋषि भृगु का सेवक बन कर रहता। दोनों को एक-दूसरे से प्रेम भी हो गया। मगर श्रीनिवास असल में भगवान विष्‍णु का स्‍वरूप ही विषय में जब ऋषि भृगु को पता चला, तब उन्‍होंने भारगवी को श्रीनिवास से विवाह नहीं करने दिया।

वही दूसरी ओर वेंकटगिरी के राजा अकाश के बेटी राजकुमारी पद्मावती भी श्रीनिवास से नृत्‍य सीखती थी और मन ही मन श्रीनिवास से प्रेम कर बैठी थीं। श्रीनिवास से विवाह करने के लिए पद्मावति ने सति होने का प्रण तक लेलिया था। इस विषय में जब श्रीनिवास को ज्ञात हुआ तो उन्‍हें पद्मावति से विवाह करना पड़ा।

यह बात जानकर भार्गवी ने वेंकटगिरी को सदा के लिए त्‍याग दिया और कोल्‍हापुर के निकट एक गांव करवीरपुर में एक विष्‍णु मंदिर में जीवन व्‍यतीत करने लगी।

श्रीनिवास और भार्गवी दोबारा इसी स्‍थान पर मिले और यहीं भारगवी को यह बात ज्ञात हुई कि असल में वो देवी लक्ष्‍मी का ही स्‍वरूप में। हालांकि, भार्गवी और श्रीनिवास का कभी विवाह नहीं हो पाया मगर पद्मावति के साथ श्रीनिवास और भारगवी वेंकटगिरी वापस गए और सदा के लिए वहां बस गए।

आज भी दक्षिण भारत में श्री वेंकेटेश्‍वर स्‍वामी यानि तिरुपति बाला जी का मंदिर है, जहां उनके साथ पद्मावति के रूप में श्रीदेवी और भार्गवी के रूप में भूदेवी विराजमान हैं।

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तिरुपति बालाजी मंदिर की विशेषता

दक्षिण भारत में स्थित भगवान तिरुपति बालाजी का मंदिर चमत्‍कारी बताया जाता है। इतना ही नहीं, यह मंदिर भारतीय वास्तु कला और शिल्प कला का उत्कृष्ट नमूना है। मगर इससे जुड़ी अनेकों धार्मिक मान्यताएं हैं। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान विष्णु में देवी लक्ष्मी भी समाहित हैं, यही वजह है कि श्री वेंकटेश्वर स्वामी को स्त्री और पुरुष दोनों के वस्त्र अर्पित किए जाते हैं।

इस मंदिर में देश के कोने-कोने से लोग भगवान के दर्शन करने आते और मन्नत पूरी होने पर वे अपने बालों का दान करते हैं। वहीं तिरुपति बालाजी जानें के बाद कोल्‍हपुर स्थित महालक्ष्मी के मंदिर जाना अनिवार्य बताया गया है, क्योंकि इस मंदिर का इतिहास भी श्रीनिवास और भार्गवी की प्रेम कहानी से जुड़ा हुआ है।

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