सावन का महीना शुरू हो चुका है और चारों तरफ बोल बम के नारे से वातावरण भक्तिमय नज़र आ रहा है। कोरोना काल में भले ही मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ न उमड़ रही हो लेकिन शिव पूजन के लिए भक्त लालायित नज़र आ रहे हैं। सावन का महीना सभी महीनों में श्रेष्ठ माना जाता है और इसमें भक्तजन पूरी श्रद्धा भाव से शिव जी को प्रसन्न रखने के लिए प्रयासरत रहते हैं। कोई बेल पत्र से शिव जी की आराधना करता है तो कोई भांग और धतूरे का भोग लगाता है। यही नहीं चारों और भक्तों की भक्ति अलग-अलग रूपों में दिखाई देती है। आपमें से ज्यादातर लोग शिव पूजन में बेल पत्र, भांग के पत्ते या फिर अन्य फूल और पाटों जैसे दूर्वा घास या मदार से शिव पूजन करते हैं, लेकिन कभी आपने सोचा है कि शिव जी को तुलसी की पत्तियां या तुलसी दल क्यों नहीं चढ़ाया जाता है?
जी हां पुराणों के अनुसार शिव जी को तुलसी दल चढाने से पुण्य की जगह पाप मिलता है और शिव जी कुपित हो जाते हैं। आखिर इसके पीछे कारण क्या है कि तुलसी जैसी पवित्र पत्तियों को शिव जी पर अर्पित करने का मतलब उन्हें नाराज़ करना है ? इस बात का पता लगाने के लिए हमने नई दिल्ली के जाने माने पंडित, एस्ट्रोलॉजी, कर्मकांड,पितृदोष और वास्तु विशेषज्ञ प्रशांत मिश्रा जी से बात की और उन्होंने हमें इसके कारणों से अवगत कराया कि क्यों शिव जी को तुलसी दल अर्पित नहीं करना चाहिए। आइए जानें इसके पीछे के कारणों के बारे में।
क्या है पौराणिक कथा
पूर्व जन्म में तुलसी का नाम वृंदा था और वह जालंधर नाम के राक्षस की पत्नी थी। जालंधर का जन्म शिव जी के अंश के रूप में ही हुआ था लेकिन अपने बुरे कृत्यों की वजह से वह राक्षस कुल में जन्मा था। जलंधर एक अत्यंत क्रूर राक्षस था और सभी उससे त्रस्त थे लेकिन वृंदा एक पति व्रत स्त्री थी और वह अपने पति जालंधर के मोह पाश में बंधी हुई थी । वृंदा की पतिव्रता प्रवृत्ति की वजह से कोई भी जालंधर की हत्या नहीं कर पा रहा था। इसलिए जान कल्याण के लिए एक दिन भगवान विष्णु ने जलंधर का रुप धारण किया और उन्होंने वृंदा की पतिव्रता धर्म को तोड़ दिया। जब वृंदा को यह पता चला कि भगवान विष्णु ने उनका पतिव्रत धर्म भंग किया है, तो उन्होंने विष्णु जी को श्राप दिया कि आप पत्थर के बन जाएंगे।
उस समय विष्णु जी ने वृंदा यानी तुलसी को बताया कि वो उसका जालंधर राक्षस से बचाव कर रहे थे और उन्होंने भी वृंदा को श्राप दिया कि वो लकड़ी की बन जाए। इसके पश्चात् शिव जी ने जालंधर राक्षस का वध कर दिया और विष्णु जी के श्राप के बाद वृंदा कालांतर में तुलसी का पौधा बन गईं। ऐसी मान्यता है कि तुलसी श्रापित हैं और शिव जी द्वारा उनके पति का वध हुआ है इसलिए शिव पूजन में तुलसी का इस्तेमाल करने से शुभ फलों की प्राप्ति नहीं होती है।
तुलसी हैं भगवान् विष्णु जी की पत्नी
एक अन्य कारण यह है कि तुलसी भगवान् विष्णु की पत्नी हैं और उनकी विष्णु जी के साथ पूजा की जाती है। यही कारण है कि प्रत्येक विष्णु पूजन में तुलसी दल रखना अनिवार्य होता है। विष्णु प्रिय तुलसी को शिव जी को अर्पित करना पाप स्वरुप माना जाता है क्योंकि शिव जी उनके ज्येष्ठ के समान हैं और तुलसी जी ने अपनी तपस्या से भगवान श्रीहरि को पतिरूप में प्राप्त किया था। शिव जी पर तुलसी अर्पित करने से भक्तों को अच्छे फलों की प्राप्ति नहीं होती है और ये पाप का कारण बनती है।
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शंख भी नहीं होता शिव पूजा में शामिल
तुलसी के अलावा शंख को भी शिव जी की पूजा में शामिल नहीं किया जाता है क्योंकि शिव जी ने शंखचूर्ण नाम के एक राक्षस का वध किया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शंखचूर्ण की पत्नी का नाम भी तुलसी था और जब उनके पति का वध शिव जी द्वारा कर दिया गया तब तुलसी दुखी होकर शिव जी के पास आईं और शंखचूर्ण की मृत्यु का कारण पुछा। शिव जी ने बताया कि वो एक राक्षस था और उसका वध करना आवश्यक था। लेकिन उसके वध करने की वजह से शिव पूजन में शंख का इस्तेमाल भी नहीं किया जाता है और तुलसी उसकी पत्नी थी इसलिए शिव पूजन में तुलसी दल रखना भी उपयुक्त नहीं बताया जाता है।
उपर्युक्त कारणों की वजह से भगवान् शिव के पूजन में तुलसी की पत्तियां नहीं चढ़ानी चाहिए। लेकिन सावन के महीने में बेल पत्र, भांग, धातूरा और जल से शिव जी का पूजन करना और शिव लिंग पर चन्दन का लेप लगाना अत्यंत फलदायी माना जाता है।
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Image Credit: pixabey and freepik
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