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जानें कौन थीं भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाली अरुणा आसफ अली

आज हम इस लेख के माध्यम से जानेंगे की कौन थी भारत की आजादी की लड़ाई में अपना योगदान देने वाली निर्डर महिला अरुणा आसफ़ अली।
Editorial
Updated:- 2022-09-09, 09:30 IST

महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवाया है और इसमें कोई शक भी नहीं है। भारत में महिलाओं की भागीदारी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। कहा जाता है कि यदि घर में एक औरत शिक्षा प्राप्त कर ले तो वह आने वाली कई पीढ़ी तक उसका प्रसार करती है। आज ऐसी ही एक महिला के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी और देश के लिए लड़ती रहीं-

कौन थीं अरुणा आसफ़ अली?

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देश की आजादी में अपना योगदान देने वाली कई बहादुर महिलाओं में से एक हैं अरुणा आसफ़ अली। अरुणा जी का जन्म 16 जुलाई 1909 में कालका नामक स्थान में हुआ था, जो पहले पंजाब का और अब हरियाणा का हिस्सा है। अरुणा जी ने देश की आजादी में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कई आंदोलनों में भाग भी लिया था।

अरुणा जी का असली नाम अरुणा गांगुली था और वह ब्राह्मण बंगाली परिवार से थीं। आगे चलकर साल 1928 में उन्होंने अपनी उम्र से 21 साल बड़े इलाहाबाद कांग्रेस पार्टी के नेता आसफ़ अली से प्रेम विवाह कर लिया।

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हमेशा रहीं शिक्षा में अव्वल

  • ब्राह्मण बंगाली परिवार से आने वाली अरुणा जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल से पूरी की थी।
  • शिक्षा पूरी करने के बाद वह शिक्षिका के रूप में कोलकाता के गोखले मेमोरियल कॉलेज में पढ़ाने लगीं।
  • वह बचपन से ही तेज़ बुद्धि, पढ़ाई लिखाई में चतुर और कक्षा में अव्वल आने वाली छात्रा थीं।
  • अरुणा जी शिक्षक, राजनीतिक कार्यकर्ता और प्रकाशक के साथ संपादक भी रह चुकिं हैं।

इस तरह दिया भारत की आजादी में योगदान

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8 अगस्त 1942, यह वह समय था जब भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित होने के बाद अंग्रेजों द्वारा कई नेताओं को गिरफ्तार किया जा रहा था। उस वक्त अरुणा आसफ़ अली बंबई के ग्वालिया टैंक में कांग्रेस का ध्वज फहराती हुई सबके बीच आ गई और भारत छोड़ो आंदोलन का बिगुल फूंक दिया।(साबरमती आश्रम से जुड़े इंटरस्टिंग फैक्ट्स जाने)

अरुणा जी भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजों के विरुद्ध सभा आयोजित कर, उन्हें खुली चुनौती देने वाली पहली महिला बनी। यही वजह है कि उन्हें ग्रैंड ओल्ड लेडी के नाम भी जाना जाता है। अरुणा जी ने नमक सत्याग्रह में अहम योगदान दिया और सन 1930, 1932 और 1941 में जेल भी गई। जब 1932 में अरुणा जी को तिहाड़ जेल भेजा गया था, तब उन्होंने जेल में बंद राजनैतिक कैदियों के साथ होने वाले बुरे बर्ताव के विरोध में भूख हड़ताल भी की थी।

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इन पुरस्कारों से किया गया सम्मानित

  • 1965 में अरुणा जी को शांति और सौहार्द के लिए अंतरराष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार और 'ऑर्डर ऑफ़ लेनिन' दिया गया।
  • उन्हें 1991 में अंतरराष्ट्रीय ज्ञान के लिए जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • 1992 में अरुणा जी को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
  • 1997 में अरुणा जी को मृत्यु के बाद उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

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Image credit- truecaller, wikipedia, twitter

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