हमारे देश में नागा साधुओं का बहुत महत्व है। उनकी जिंदगी कठोर तपस्या में बीतती है। कुंभ जैसे किसी बड़े अवसर पर नागा साधुओं का स्नान सबसे बड़ा माना जाता है। पर क्या आपको पता है कि महिला नागा साधु भी होती हैं और कठोर तपस्या के बाद साध्वी बन पाती हैं। अधिकतर जगहों पर पुरुष नागा साधु दिखते हैं, लेकिन महिलाएं नहीं। यही नहीं, ऐसे कुछ ही अखाड़े हैं जहां महिलाओं को नागा साधु बनने की अनुमति दी जाती है।
हरजिंदगी की टीम ने ज्योतिष एक्सपर्ट डॉ राधाकांत वत्स से बात कर नागा साधुओं के जीवन से जुड़ी कुछ बातें जानने की कोशिश की। डॉक्टर राधाकांत वत्स कई सालों से अध्यात्म और ज्योतिष की फील्ड से जुड़े हुए हैं और उनकी इस विषय में अच्छी पकड़ है।
क्या महिला नागा साधुओं को रहना होता है नग्न?
जब नागा साधुओं को लेकर मैं अपनी रिसर्च कर रही थी तब गूगल पर सबसे पहला सवाल यही आया था। क्या महिला नागा साधु भी नग्न रहती हैं। इस सवाल का जवाब है, नहीं। उन्हें कपड़े पहनने की इजाजत होती है। हालांकि, इससे जुड़े नियम रहते हैं। वो सिर्फ एक ही वस्त्र अपने शरीर पर धारण कर सकती हैं और वह वस्त्र सिला हुआ नहीं होना चाहिए। हालांकि, कुछ नागा साधु इसका त्याग भी करती हैं, लेकिन वो सबके सामने नहीं आतीं।
कई महिला साधु सिर्फ गुफाओं में ही अपना जीवन बिताती हैं।
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कैसे बनते हैं महिला नागा साधु?
डॉक्टर वत्स का कहना है कि भारत में सिर्फ दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा ही महिला नागा साधुओं को साध्वी बनने की इजाजत देता है। अन्य अखाड़ों में पुरुषों को ही लिया जाता है।
शुरुआती दौर में महिलाओं के लिए कोई अलग से अखाड़ा नहीं था। जूना अखाड़े में ही माई बाड़ा नाम से उनके लिए अलग शिविर का आयोजन किया जाता था। कुंभ में भी जूना अखाड़ा अपने बगल में माई बाड़ा शिविर का आयोजन करता था जिसमें महिला सन्यासी आती थीं। इसके बाद महिलाओं की संख्या बढ़ने लगी और 2013 में दशनामी संन्यासिनी का अखाड़ा बना। तब से महिला नागा साधु भी इसी अखाड़े के जरिए बनती हैं।
महिला नागा साधु बनने के लिए बचपन से ही कड़ी परीक्षाएं देनी होती हैं। 6 साल की उम्र से ही उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। जब वो ऐसा कर पाने में समर्थ होती है तब उसे नागा साधु बनने की अनुमति मिलती है। इस अवधि में उसे कठोर तपस्या के साथ कई नियमों का पालन करना होता है। जैसे गुफाओं में वास, तप, नदी में स्नान, खाने-पीने से जुड़े कठोर नियम आदि।
महिला नागा साधु जो वस्त्र धारण करती हैं उसे गंती कहा जाता है। यह सिर्फ गेरुए रंग का ही होता है। महिला नागा साधुओं की अराधना और तपस्या देखने के साथ-साथ उनके गुरु उनके पूर्व जीवन के बारे में भी जानते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि महिला नागा साधु बनकर ईश्वर को अपना जीवन समर्पित कर पाएगी या नहीं। इसके साथ ही कई और नियम होते हैं। जैसे महिला नागा साधु हर वक्त सांसारिक गतिविधियों से दूर रहेंगी और केवल कुछ ही खास दिनों में वो सबके सामने आएंगी। जैसे कुंभ मेले के दौरान महिला नागा साधुओं को देखा जा सकता है।
क्या है अखाड़ा?
नागा साधुओं की बात होते ही अखाड़ा शब्द सामने आता है। अखाड़ा शब्द मुगल काल से ही शुरू हुआ है। इसके पहले साधुओं के जत्थे को बेड़ा या जत्था ही कहा जाता था। अखाड़ा साधुओं का वह दल होता है जो शास्त्र विद्या में पारंगत होता है और एक जैसे नियमों का पालन कर तप करता है।
कुंभ स्नान और अर्धकुंभ जैसे उत्सवों में 13 अखाड़ों द्वारा ही भाग लिया जाता है और स्नान पर्व मनाया जाता है।
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कौन होते हैं नागा साधु?
नागा दरअसल एक पदवी ही होती है। साधुओं में वैष्णव, शैव और उदासीन तीन सम्प्रदाय होते हैं। इन सम्प्रदायों के अंदर भी कई सारे विभाजन होते हैं। जैसे दिगंबर, निर्वाणी और निर्मोही तीनों ही वैष्णव संप्रदाय के हैं। इन तीनों सम्प्रदायों को मिलाकर कुल 13 अखाड़े हैं। इन सभी अखाड़ों से नागा साधु बनाए जा सकते हैं।
नागा साधुओं को सार्वजनिक तौर पर नग्न होने की अनुमति होती है। वो तपस्या के लिए अपने कपड़ों का त्याग कर सकते हैं। नागा में बहुत से वस्त्रधारी और बहुत से दिगंबर यानी निर्वस्त्र होते हैं।
अधिकतर निर्वस्त्र नागा साधु शैव अखाड़े से आते हैं। हर अखाड़े के साधुओं का स्वभाव अलग होता है और उनके नियम भी अलग ही होते हैं।
कई लोगों का मानना है कि नागा का अर्थ नग्न से ही लगा लेते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। वस्त्रधारी भी नागा साधु हो सकते हैं।
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Image Credit: Shutterstock/ Unsplash/ Flickr
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