शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और स्वास्थ्य के लिए करवाचौथ का व्रत रखती हैं। इस दिन सूर्योदय से चंद्रोदय तक, सुहागिन महिलाएं पानी की बूंद भी नहीं पीती हैं। करवाचौथ पर पूरे दिन व्रत करने के बाद शाम को महिलाएं एक खुली जगह इकठ्ठी होती हैं और कथा सुनती और गीत गाती हैं।
करवाचौथ के लिए ऐसे तो कई कथाएं और गीत प्रचलित हैं। लेकिन आज हम यहां उस पंजाबी गीत के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिसे सुहागिन महिलाएं एक गोले में बैठकर थाली घुमाते समय गाती हैं।
करवाचौथ पर सुहागिन महिलाएं सज-धजकर एक जगह इकठ्ठी होती हैं और कथा सुनती हैं। कथा के बाद गोले में बैठकर अपनी पूजा थाली एक-दूसरे के साथ बांटती हैं। थाली को घड़ी की दिशा में घुमाने के समय वीरो कुड़िए करवड़ा गीत गाया जाता है। इस लोकप्रिय पंजाबी करवाचौथ गीत के बोल इस प्रकार हैं:
वीरा कुड़िए करवड़ा, सर्व सुहागन करवड़ा,
ए कट्टी न अटेरीं न, खूंब चरखड़ा फेरीं ना,
ग्वांड पैर पाईं ना, सुई च धागा फेरीं ना,
रुठड़ा मनाईं ना, सुतड़ा जगाईं ना,
बहन प्यारी वीरा, चंद चढ़े ते पानी पीना,
लै वीरा कुड़िए करवड़ा, लै सर्व सुहागिन करवड़ा।।
यह लोकप्रिय गीत उन बातों के इर्द-गिर्द घूमता है, जिन्हें करवाचौथ के दिन करने की मनाही होती है। जैसे- खूंब चरखड़ा फेरीं ना का मतलब है कि इस दिन कपड़े ना बुनें और रुठड़ा मनाईं ना का मतलब है कि किसी भी रुठे इंसान को मनाने की कोशिश ना करें। सुतड़ा जगाईं ना का मतलब है कि किसी सोते इंसान को जगाना नहीं है।
करवाचौथ पर पूजा थाली घुमाने की रस्म के बाद सुहागिन महिलाएं अपनी सास का आशीर्वाद लेती हैं और उन्हें तोहफा देती हैं।
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वीरा कुड़िए करवड़ा गीत का महत्व करवाचौथ की प्राचीन कथा से जुड़ा हुआ है। करवाचौथ की कथा एक वीरवती नाम की महिला की है, जिसने अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए कठोर व्रत किया था। वीरा कुड़िए करवड़ा गीत उसी कथा की याद दिलाता है और महिलाओं को प्रेरित करता है। इतना ही नहीं, यह गीत महिलाओं के समर्पण और त्याग को दर्शाता है।
वीरा कुड़िए करवड़ा गीत, पंजाबी समुदाय में पीढ़ियों से चला आ रहा है और सांस्कृतिक विरासत का अहम हिस्सा है। थाली घुमाने के समय यह गीत महिलाओं को धार्मिक और आध्यात्मिक भावनाओं से जोड़ने का काम भी करता है।
पंजाबी समाज में करवा चौथ के मौके पर बायना थाली बदलने की परंपरा है। थाली में सभी महिलाएं एक लोटे में जल, आटे का दीपक और सास के लिए बायना रखकर कथा सुनती हैं। कथा के बाद महिलाएं वीरा कुड़िए करवड़ा गीत गाते हुए एक-दूसरे से पांच या सात बार थाली बदलती हैं और आखिरी में अपनी थाली लेकर पंडिताइन या सास का आशीर्वाद लेती हैं।
करवा चौथ के व्रत का समापन चांद निकलने के बाद किया जाता है। पति की लंबी आयु और स्वास्थ्य के लिए चांद की छोटी-सी पूजा की जाती है और अर्घ्य दिया जाता है। यह पूजा अलग-अलग क्षेत्रों और समुदायों में अलग हो सकती है। चांद की पूजा के बाद सुहागिन महिलाएं अपने पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलती हैं। पानी का सेवन करने के बाद व्रती महिलाएं घर पर अलग-अलग व्यंजनों का लुत्फ लेती हैं।
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