करवा चौथ का व्रत हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए एक बहुत ही खास पर्व है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, अच्छी सेहत और सुख-समृद्धि के लिए बिना पानी पिए पूरे दिन का निर्जला व्रत रखती हैं। शाम को चांद निकलने के बाद, वे छलनी से चांद और फिर अपने पति का चेहरा देखती हैं। इसके बाद, पति अपने हाथों से पत्नी को पानी पिलाकर व्रत तोड़ते हैं। यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते में प्यार, समर्पण और विश्वास को और भी मजबूत बनाता है। हर साल करवा चौथ का व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि इस साल कब पड़ रहा है करवा चौथ, क्या है इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व।
पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का आरंभ 09 अक्टूबर, गुरुवार के दिन, रात 10 बजकर 54 मिनट पर होगा। वहीं, इसका समापन 10 अक्टूबर, शुक्रवार के दिन, शाम 07 बजकर 38 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, करवा चौथ की पूजा 10 अक्टूबर को की जाएगी।
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सरगी खाने का शुभ समय: करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से पहले सरगी खाकर शुरू किया जाता है। सरगी खाने का सबसे शुभ समय ब्रह्म मुहूर्त माना जाता है जो 10 अक्टूबर को सुबह 4:35 बजे से 5:23 बजे तक है। इस समय सरगी खाने से व्रत का संकल्प मजबूत होता है और दिन भर ऊर्जा बनी रहती है।
पूजा का शुभ समय: करवा चौथ की पूजा शाम को की जाती है। इस साल 10 अक्टूबर 2025 को पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05:57 बजे से शाम 07:11 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप सभी पूजा सामग्री तैयार करके देवी करवा माता और शिव-पार्वती की पूजा कर सकते हैं। यह समय पूजा के लिए सबसे उपयुक्त है।
चंद्र अर्घ्य का शुभ समय: चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। 10 अक्टूबर 2025 को चंद्रोदय का समय रात लगभग 07:44 बजे से शुरू है। हालांकि, यह समय आपके शहर के अनुसार थोड़ा अलग हो सकता है। व्रत खोलने के लिए चंद्रमा को अर्घ्य देने का समय चंद्रोदय के बाद शुरू होता है।
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करवा चौथ व्रत पति-पत्नी के रिश्ते को और भी मजबूत बनाता है। जब पत्नी अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती है, तो यह उनके प्यार और समर्पण को दर्शाता है। इससे दोनों के बीच विश्वास और सम्मान बढ़ता है। पति भी अपनी पत्नी के इस त्याग को देखकर उसके प्रति अपने प्रेम और जिम्मेदारी को और गहराई से महसूस करता है जिससे उनका रिश्ता पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो जाता है।
इस व्रत का एक और लाभ यह है कि यह परिवार में एकता और सद्भाव लाता है। यह एक ऐसा अवसर होता है जब महिलाएं एक साथ मिलकर पूजा करती हैं, कहानियां सुनाती हैं और एक-दूसरे के साथ समय बिताती हैं। इससे सामाजिक मेलजोल बढ़ता है और परिवार के सदस्यों के बीच संबंध मधुर होते हैं।
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