करवा चौथ का पर्व भारतीय संस्कृति में महिलाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। इस पर्व की तैयारियां कई दिनों पहले से ही शुरू हो जाती हैं और महिलाओं के बीच इसका उत्साह बहुत ज्यादा होता है। साल में एक बार मनाया जाने वाला पर्व पति-पत्नी के बीच आपसी प्रेम को बढ़ाता है। यह दिन विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के लिए मनाया जाता है। इस त्यौहार को मनाने का हर जगह एक अलग तरीका है। ऐसे ही उत्तर प्रदेश में करवा चौथ के रिवाज थोड़े अलग और अनोखे हैं, जिन्हें जानना आपके लिए भी दिलचस्प हो सकता है। इस दिन सिर्फ व्रत रखने की परंपरा ही नहीं, बल्कि पूजा विधि, पूजन सामग्री और करवा चौथ की कहानियां भी इसे खास बनाती हैं। यही नहीं उत्तर प्रदेश में करवा चौथ मनाने का एक अलग तरीका भी है जिसमें कई अलग तरह की सामग्रियां इस पर्व को औरों से अलग बनाती हैं। आइए यहां जानें कुछ अलग परंपराओं के बारे में जो उत्तर प्रदेश में करवा चौथ व्रत को खास बनाती हैं।
उत्तर प्रदेश में करवा चौथ का पर्व गौरी पूजन से शुरू होता है। इस दिन महिलाएं माता गौरी की पूजा करके पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। इस जगह करवा चौथ की पूजा में माता गौरी या पार्वती का विशेष ध्यान रखा जाता है और महिलाएं माता का पूजन विधि-विधान के साथ करती हैं। इस दिन सोलह श्रृंगार करके माता का पूजन किया जाता है। गौरी पूजन में महिलाएं पीतल का करवा या मिट्टी का करवा सजाकर उसे माता गौरी के सामने रखती हैं और जल, सिंदूर, फूल, मिष्ठान आदि चढ़ाती हैं। इसके साथ ही माता गौरी को श्रृंगार का सामान भी अर्पित किया जाता है।
उत्तर प्रदेश में करवा चौथ की पूजा करते समय थाली में सात अनाजों का इस्तेमाल करना एक प्राचीन परंपरा है। ये सात अनाज मुख्य रूप से चावल, गेहूं, जौ, बाजरा, मूंग, चना और उड़द होते हैं। ये सभी अनाज समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं। इन अनाजों को पूजा में शामिल करना परिवार की समृद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। पूजा के दौरान महिलाएं इन अनाजों को करवा चौथ की थाली में रखती हैं और करवा को इन अनाजों से भरती हैं। मुख्य रूप से इन अनाजों को भरने से घर की समृद्धि की प्रार्थना की जाती है।
उत्तर प्रदेश में करवा चौथ की पूजा के दौरान सींकों का इस्तेमाल करना विशेष माना जाता है। इसमें करवा के मुंह में 7, 11 या 21 की संख्या में सींकें लगाई जाती हैं और इनसे करवा चौथ की पूजा की जाती है। सींकों को घर की खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। सींकों के इस्तेमाल से महिलाओं को अखंड सौभाग का आशीर्वाद मिलता है।
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उत्तर प्रदेश में करवा चौथ की पूजा के दौरान मिट्टी या पीतल के करवे को आपस में बदला जाता है। यह परंपरा न केवल सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती है, बल्कि इसे प्रेम, स्नेह और बहनचारे का प्रतीक भी माना गया है। करवा बदलने की यह रस्म महिलाओं के बीच एकता और विश्वास को दर्शाती है। ऐसा माना जाता है कि जब महिलाएं एक-दूसरे से करवा बदलती हैं, तो वे एक-दूसरे के जीवन में सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं।
हर जिले में करवा चौथ मनाने के तरीके थोड़े अलग हैं। कुछ जगहों पर महिलाएं करवा में जल डालकर उसे सजाती हैं, वहीं कुछ जगहों पर करवा चौथ की रात को गीत गाकर और नृत्य करके उत्सव मनाया जाता है। ऐसे ही उत्तर प्रदेश में भी यह पर्व मनाने की परंपरा दूसरी जगहों से अलग है।
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