हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर कार्तिक पूर्णिमा व्रत रखा जाता है, जिसमें भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन दीपदान, स्नान और दान का बड़ा महत्व होता है। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप मिट जाते हैं और उसे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
इसके अलावा, कार्तिक पूर्णिमा का व्रत रखने से जीवन के हर क्षेत्र में सिद्धि प्राप्त होती है और सभी कार्य सफल होते हैं। जो भी व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है, उसके लिए व्रत कथा का पाठ करना शुभ माना गया है। आइए, इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से कार्तिक पूर्णिमा के व्रत और उसकी महत्ता के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करें। साथ ही, उस कथा के बारे में भी पढ़ें जो आपको आज के दिन पढ़नी चाहिए।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन व्रत कथा के बारे में पढ़ें (Kartik Purnima Vrat Katha or Kahani 2024)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर राक्षस का वध करके सभी देवताओं को उसके भय से मुक्ति दिलाई थी, लेकिन तारकासुर के वध से उसके तीनों पुत्र तारकक्ष, कमला और विद्युन्माली बेहद दुखी थे और देवताओं के प्रति बेहद आक्रोशित थे। तारकासुर के बेटों ने देवताओं से बदला लेने के लिए ब्रह्मा जी की उपासना करना प्रारंभ कर जिया। उन तीनों ने कठिन से कठिन तप किए और ब्रह्म देव को बेहद प्रसन्न किया और अमरता का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मदेव ने कहा कि मैं यह वरदान नहीं दे सकता है, तुम तीनों कोई और वरदान मांगो।
तब तीनोंभाइयों ने कहा कि आप हमारे लिए अलग-अलग तीन नगर बना दें। जिसमें वह रहकर पृथ्वी, आकाश सबकुछ भ्रमण कर सकें और जब एक हजार साल बाद जब तीनों भाई मिलें तो तीनों नगर मिलकर एक हो जाएं। जो देव एक ही बाण से इन तीनों नगर को नष्ट कर देगा। उसके हाथों से हमारी मृत्यु हो जाएगी। तब ब्रह्मदेव ने उसको वरदान दिया। वरदान के प्रभाव से तीनों नगरों का निर्माण हुआ। तारकक्ष के लिए सोने, कमला के लिए चांदी और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बना था. उन तीनों भाइयों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया।
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वहीं इंद्रदेव ने तीनों भाइयों से भयभीत होकर भगवान शिव के शरण में गए और उनसे मदद के लिए प्रार्थना करने लगे। तब भगवान शिव ने एक दिव्य रथ का निर्माण किया। जिसमें चंद्रमा और सूर्य उस रथ के पहिए बनें। इंद्र, यम, कुबेर और वरूण उस रथ के घोड़े बन गए। हिमालय धनुष और शेषनाग प्रत्यंचा बनें। भगवान शिव दिव्य रथ पर सवार होकर उन तीनों राक्षस भाइयों से लड़ने पहुंचें। भगवान शिव और उन तीनों राक्षसों के बीच युद्ध हुआ।
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युद्ध के दौरान तीनों भाई एक सीध में आए और फिर भगवान शिव ने उस दिव्य धनुष से बाण चलाकर एक बार में ही तीनों का संहार कर दिया। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही यह घटना हुई थी। इसलिए इस दिन को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। तीनों राक्षस भाइयों का वध होने से सभी देवी-देवता बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान शिव की पूजा-अर्चना की। जिसके कारण कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस खुशी में सभी देवी-देवता ने दीए जलाएं थे।
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Image Credit- HerZindagi
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