इस महिला ने अपनी बेटियों को किसी बेटे की तरह नहीं बल्कि बेटियों की तरह ही बड़ा किया है, तब भी यह महिला कई महिलाओं के लिए मिसाल बन गईं।
'पढ़-लिख लो अच्छा सा पढ़ा-लिखा लड़का मिल जाएगा, किचन के थोड़े-बहुत काम सीख लो नहीं तो ससुराल में सांस की किचकिच सुननी पड़ेगी...' ये वो बातें होती हैं जो ज्यादातर मां अपनी बेटियों को बचपन से सिखाना शुरू कर देती हैं लेकिन इस महिला ने ऐसा नहीं किया और ना ही अपनी बेटियों को बेटों की तरह बड़ा किया।
बहुत कम उम्र में पति के दुनिया को अलविदा कहने के बाद अपनी दो बेटियों और एक बेटे के साथ फिर से एक नई दुनिया बसाने तक का सफर काफी मुश्किल भरा रहा होगा। यहां समस्या पैसे की नहीं थी, क्योंकि उनके पति अपने परिवार के लिए इतना करके गए थे कि उनके परिवार को कभी भी पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं थी बल्कि समस्या सोसायटी के वो लोग थे, जो हर एक बात पर रेखा को यही सलाह देते थे कि उनकी दो बेटियां है और बेटा अभी छोटे हैं, इसलिए उन्हें थोड़ा झुककर चलना चाहिए।
रेखा ने सोसायटी की यह सलाह मानने के बजाय अपने बच्चों के कद को ऊंचा बनाने की तरफ ध्यान देना ज्यादा सही समझा। यहीं से शुरू हुआ रेखा का संघर्ष। सोसायटी की सलाह के अनुसार उन्हें अपनी बेटियों को ज्यादा पढ़ाने-लिखाने की जरूरत नहीं थी और सही उम्र देखते हुए शादी कर देनी चाहिए थी, क्योंकि इनकी बेटियों के सिर पर पिता का हाथ जो नहीं था, लेकिन यहां भी रेखा ने किसी की एक नहीं मानी, बल्कि अपनी बेटियों से कहां, 'सोसायटी में चंद लोगों के आगे तो कोई भी पहचान बना लेता है, लेकिन तुम इतनी अच्छी पढ़ाई-लिखाई करना कि दुनिया तुम्हारे पूरे परिवार को सिर्फ तुम्हारे नाम से जाने।'
अपनी बेटियों को किचन का काम सिखाने के बदले बिना किसी सहारे के जिंदगी की जंग में जीतना सिखाया और उन्हें ऐसा करते देख उनके बेटे की परवरिश इसी सोच के साथ हुईं कि बेटा और बेटी में कोई अंतर नहीं है, सभी इंसान हैं और हर किसी को अपनी जिंदगी की जंग खुद लड़नी है। आज रेखा के तीनों बच्चों अपनी-अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए पूरी मेहनत और लगन के साथ संघर्ष कर रहे हैं, उनकी दोनों बेटियां देश के जाने-माने पत्रकारिता संस्थान IIMC से पासआउट होकर बतौर जर्नलिस्ट प्रतिष्ठित संस्थानों में नौकरी कर रही हैं। निजी जीवन में तमाम तकलीफों और चुनौतियों का डटकर सामना करने वाली और अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए जी-जान लगा देने वाली रेखा देश की उन करोड़ों महिलाओं के लिए मिसाल हैं, जो सिंगल वुमेन के तौर पर अपनी बेटियों की परवरिश कर रही हैं।
मुझे गर्व है कि मैं इसी मां की बेटी हूं। अपनी मां की इंस्पिरेशनल लाइफ मुझे हर मुश्किल से लड़ने का हौसला देती है और आगे भी देती रहेगी। मम्मी मैं आपसे यही कहना चाहती हूं, 'मम्मी आप हमेशा यूं ही हंसती-मुस्कुराती रहो, क्योंकि आप दुनिया की बेस्ट मम्मी हो।'
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