
मध्य प्रदेश के आईएएस अधिकारी संतोष वर्मा ने हाल ही में एक विवादित बयान दिया है। ज्यादातर विवादित बयानों की तरह यह बयान भी महिलाओं से जुड़ा है। यह पढ़ने में आपको थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन यह सच है क्योंकि गाहे-बगाहे नेता, बाबा, समाजसुधारकर या पढ़े-लिखे अधिकारी भी महिलाओं को लेकर अजीबोगरीब बयान देते रहते हैं। इन बयानों को सुनने की भी शायद अब हमें आदत हो गई है। इस तरह के बयान सामने आना तो शर्मनाक है ही, लेकिन उससे भी बड़ी विडंबना ये है कि समाज का एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी होता है, जो इन बयानों को सही ठहराने या इनकी वकालत करने में लगा होता है। बात अगर संतोष वर्मा की करें तो उन्होंने आरक्षण पर बात करते हुए महिलाओं और जातिवाद को लेकर कुछ ऐसा कह डाला, जो न ही उनकी पद की गरिमा को शोभा देता है और न ही उसे किसी भी लिहाज से सही ठहराया जा सकता है। चलिए आपको बताते हैं कि उन्होंने क्या कुछ कहा है और उनके इस बयान के बाद कौन-से वो सवाल हैं, जो एक महिला पत्रकार होने के नाते मेरे मन में उठ रहे हैं।
"Reservation should continue until Brahmin donates his daughter for my son" - IAS Santosh Verma
— Anuradha Tiwari (@talk2anuradha) November 25, 2025
Year 1970 – Give your college seats
Year 1990 – Give your jobs
Year 2025 – Give your daughters
This filthy mindset has been promoted as “social justice” for decades. pic.twitter.com/PlM5W6Zglq
मध्य प्रदेश के आईएएस अधिकारी संतोष वर्मा इन दिनों अपने बेशर्म बयान को लेकर चर्चा में बने हुए हैं। उनका पद तो बेशक ऊंचा है, लेकिन उन्होंने जो बयान दिया है, वो कहीं न कहीं उनकी छोटी सोच को दिखाता है। उन्होंने कहा "प्रत्येक परिवार में एक व्यक्ति को आरक्षण मिलना चाहिए, जब तक मेरे बेटे को कोई ब्राह्मण अपनी बेटी दान न कर दे या उससे उसका संबंध न बना दे।" यह केवल एक बयान नहीं है, बल्कि उस सोच का आईना है जिसकी गहराईयों में हमें पितृसत्तात्मक सोच, जातिवाद और महिलाओं को वस्तु समझने की मानसिकता एक साथ नजर आती है। यह पहली बार नहीं है जब किसी नेता, बाबा, किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति या अन्य किसी ने महिलाओं को लेकर इस तरह का बयान दिया है। यह पहले भी होता आया है और अफसोस है कि मैं पूरे विश्वास के साथ यह कह सकती हूं कि यह आगे भी होता रहेगा क्योंकि इस तरह के स्टेटमेंट गलती से नहीं दिए जाते हैं बल्कि इस तरह की सोच आज भी हमारे समाज के अंदर बसी हुई है।

ये बेहद दुखद है कि हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, पढ़े-लिखे समाज का हिस्सा होने का दावा करते हैं, लेकिन आज भी इस समाज का हिस्सा कई ऐसे लोग हैं, जो महिलाओं को इंसान की नहीं, बल्कि एक संपत्ति, एक वस्तु की नजर से देखते हैं। एक वस्तु जिसके बारे में फैसले लेने का अधिकार उसे नहीं, बल्कि पितृसत्तात्मक समाज को है। वह क्या पहनना चाहती है, क्या करना चाहती हैं, पढ़ना चाहती हैं या आगे बढ़ना चाहती हैं, किससे शादी करना चाहती हैं, मां बनना चाहती हैं या नहीं, अपने लिए वक्त निकालना चाहती हैं या उसकी आंखों में कुछ और सपने हैं, ये सवाल आज भी कई लोग महिलाओं से पूछना जरूरी नहीं समझते हैं। आईएएस साहब ने बेटियों को दान में देने जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया, लेकिन अफसोस की बात है कि इतने ऊंचे पद पर होने के बाद भी उनके लिए ये समझना मुश्किल है कि महिलाएं कोई संपत्ति नहीं हैं, जिन्हें दान में दिया जाए।
अगर आप खबरें पढ़ती-सुनती हैं और सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती हैं, तो आप इस बात को अच्छे से जानती होंगी कि ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी ने महिलाओं को लेकर ऐसा स्टेटमेंट दिया है, पहले भी पता नहीं कितने राजनेता, बाबा या अन्य लोग इस तरह के विवादित बयान दे चुके हैं। कभी महिलाओं के चरित्र और कपड़ों पर टिप्पणी की जाती है, तो कभी उनके साथ हुए किसी मामले में उनकी ही गलती ठहरा दी जाती है। जरा इन बयानों पर नजर डालिए।

कथावाचक अनिरुद्धाचार्य (जुलाई, 2025)
कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा (मई, 2025)
जितेंद्र छत्तर, खाप पंचायत नेता, हरियाणा (अक्टूबर, 2012)
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला (अक्टूबर, 2012)

ममता बनर्जी (अक्टूबर, 2025)
बाबा रामदेव (नवंबर, 2022)
मुलायम सिंह यादव (अप्रैल, 2014)
महिलाओं के साथ हो रहे क्राइम लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। NCRB की रिपोर्ट बताती है कि साल 2023 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4,48,211 केस दर्ज हुए। साल 2022 में यह संख्या 4,45,256 थी। आंकड़ों से साफ है कि महिलाओं के खिलाफ होते अपराध लगातार बढ़ते जा रहे हैं। बात चाहे रेप की हो, घरेलू हिंसा की हो या दहेज हत्या की। हर दूसरे दिन ऐसा कोई न कोई मामला जरूर सामने आता है, जो हमारे रोंगटे खड़े कर देता है। इन अपराधों के बढ़ने में कई पहलुओं का हाथ है, लेकिन उनमें जाति के आधार पर हो रहे भेदभाव को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है। ऊंची-नीची जाति वाली यह सोच आज भी कहीं न कहीं हमारे समाज का हिस्सा है और यह इन अपराधों को बढ़ाने के लिए बेशक जिम्मेदार है।
इस तरह की टिप्पणियां अक्सर सामने आती हैं, अखबारों की हेडलाइन्स बनती हैं, सोशल मीडिया पर इनसे जुड़े वीडियोज शेयर किए जाते हैं, लेकिन कुछ वक्त बात आई-गई हो जाती है। क्या कभी किसी ने सोचा है कि इन टिप्पणियों का महिलाओं पर कितना असर होता है? इस तरह के कमेंट्स उनकी सोच, उनके कॉन्फिडेंस को तोड़कर रख देते हैं। हमारे नेता, बाबा या अन्य कोई भी बड़ी आसानी से ऐसे स्टेटमेंट्स दे देते हैं और शायद भूल भी जाते हैं, लेकिन महिलाओं पर इनका गहरा असर होता है।

आखिर में एक सवाल है जो हमेशा की तरह मेरे मन में कौंध रहा है कि क्या कभी कुछ बदलेगा? क्या कभी ऐसा होगा कि महिलाओं को संपत्ति नहीं समझा जाएगा? क्या कभी ऐसी सुबह होगी, जिसमें रेप की खबरें नहीं आएंगी और अगर आएंगी भी तो उनमें महिलाओं की गलती नहीं निकाली जाएगी? क्या कभी ऐसा होगा कि महिलाओं को सलाह और बेकार की राय देने के बजाय उनका साथ दिया जाएगा? क्या कभी ऐसा होगा कि हम यह मान लेंगे कि अगर कुछ बदलने की जरूरत है, तो वो महिलाओं के कपड़े, सोच या सपने नहीं, बल्कि पुरुषों की सोच है, लेकिन अफसोस इन सवालों का जवाब मुझे नहीं मिल पाता।
हम चाहें नारी सम्मान की कितनी ही बातें कर लें, महिलाओं की सुरक्षा और बराबरी को लेकर कितने भी भाषण दे दिए जाएं, लेकिन जब तक हमारी सोच नहीं बदलेगी, तब तक कुछ नहीं बदलेगा। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
Image Credit: Shutterstock, Freepik, Her Zindagi
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