What is the festival of the moon Hindu| करवा चौथ के दिन पत्नी चांद देखकर ही अपना उपवास तोड़ती हैं। इस त्यौहार में चांद का बहुत ही खास महत्व है। कुछ मान्यताएं चांद की चांदनी को पति की लंबी उम्र से जोड़ती हैं, तो कुछ के अनुसार चांद उगते ही चांद का पूजन करने वाली महिलाओं के पति की आयु बढ़ती है। जब भी चांद से जुड़े त्यौहारों की बात होती है, तो हमेशा करवा चौथ का नाम लिया जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि करवा चौथ एकलौता ऐसा त्यौहार है जिसमें हम चांद की पूजा करते हैं।
भारत त्यौहारों का देश है और यहां हर जाति और धर्म के लोग अपने-अपने तरीके से अलग-अलग त्यौहार मनाते हैं। आज हम आपको ऐसे ही कुछ त्यौहारों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें चांद से जोड़कर मनाया जाता है।
होली
अब आपको लगेगा कि होली का त्यौहार तो दिन में मनाया जाता है, फिर भला इसे हम चांद से क्यों जोड़ रहे हैं। दरअसल, होली का त्यौहार असल में रंगों का नहीं, बल्कि होलिका दहन का त्यौहार है। होलिका तभी जलाई जाती है जब पूर्णिमा हो। पूजा-पाठ भले ही अलग-अलग तरीके से किया जाए, लेकिन होलिका की पूजा कभी भी दिन में नहीं की जाती। यही कारण है कि होली से एक रात पहले यानी पूर्णिमा के दिन चंद्रमा के पूजन से घर में धन की आवक बनी रहेगी।
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अब अगर इसे हम इसके लिए कुछ लॉजिकल तर्क भी दे सकते हैं। उदाहरण के तौर पर जब पहले के समय में इलेक्ट्रिसिटी नहीं होती थी और होलिका दहन के लिए लकड़ियों और पत्तों को इकट्ठा किया जाता था तब पूर्णिमा के चांद की रौशनी मददगार साबित होती थी। शायद इसलिए इस रिवाज को बनाया गया हो। अब यह सिर्फ एक लॉजिक ही है जिसका वास्तविकता से कोई संबंध जरूरी नहीं। पर मान्यता को देखें, तो पूर्णिमा की रात को होलिका दहन के बाद ही अगले दिन सुबह रंगोत्वस मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा
गुरु पूर्णिमा के दिन भी चांद की पूजा का प्रावधान है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने से इंसान को अपने दोषों से मुक्ति मिल जाती है। देश के कुछ हिस्सों में मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने वाले लोगों को चांद की पूजा करने के बाद ही व्रत खोलना चाहिए।
गुरु पूर्णिमा के दिन चारों वेदों का ज्ञान रखने वाले महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था और उन्हें पूरे संसार का सर्वोपरि गुरु माना गया है।
गुरु नानक जयंती
सिख धर्म के लिए गुरु नानक जयंती सबसे मुख्य त्यौहार माना जाता है। इस दिन सिखों के दसवें गुरु नानक का जन्म हुआ था। इस दिन को भी पूर्णिमा और चांद से जोड़कर देखा जाता है। सिखों का यह त्यौहार कार्तिक महीने की पूर्णिमा को पड़ता है जिसे साल का सबसे रोशन दिन या रोशनी का त्यौहार माना जाता है। इस त्यौहार पर भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में लंगर सेवा, अरदास और प्रार्थना सभा रखी जाती है। गुरुद्वारों में पाठ होते हैं और पूरा समा रोशनी से सराबोर होता है।
ईद
जब हम चांद से जुड़े त्यौहारों की बात कर ही रहे हैं, तो ईद को भला कैसे भूला जा सकता है। ईद का त्यौहार भी चांद पर निर्भर करता है। ईद उर्दू कैलेंडर के हिसाब से मनाई जाती है और इस कैलेंडर के हिसाब से 9वां रमजान का महीना खत्म होने के बाद अगले ही दिन ईद मनाई जाती है।
ईद के दिन चांद निकलता है और इसी चांद को देखकर शव्वाल का महीना शुरू होता है। इस चांद के दिखने पर ही निर्भर करता है कि ईद आखिर कब मनाई जाएगी।
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शरद पूर्णिमा
जब चांद और उससे जुड़े त्यौहारों की बात हो रही है, तो भला हम शरद पूर्णिमा को कैसे भूल सकते हैं। यह वही त्यौहार है जब खीर से भरी मटकी को चांदनी के नीचे रखा जाता है और ऐसा माना जाता है कि चांदनी जब इस खीर पर पड़ेगी, तो उसके साथ अमृत बरसेगा। इस दिन चंद्रमा के साथ-साथ मां लक्ष्मी, भगवान कृष्ण और भगवान विष्णु की पूजा भी की जाती है।
ऐसा माना जाता है इस पूर्णिमा की रात को देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और धन-समृद्धि का आशीर्वाद भी देती हैं। उन्हें भी खीर ही भोग में चढ़ाई जाती है।
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