वृंदावन के प्रसिद्ध कथावाचक अनिरुद्धाचार्य की रील्स और उनकी बातें तो अक्सर सोशल मीडिया पर वायरल होती रहती हैं और बाबा जी का विवादों से भी पुराना नाता रहा है। एक बार फिर से अनिरुद्धाचार्य विवादों के घेरे में आ गए हैं। उनका एक वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल है, जिसमें वह महिलाओं के बारे में कुछ ऐसा कहते दिख रहे हैं जिसे लेकर उनके खिलाफ महिला अधिवक्ताओं ने शिकायत दर्ज करवाई है। उन पर महिलाओं को लेकर आपत्तिजनक और शर्मनाक टिप्पणी करने का आरोप लगा है। महिला अधिवक्ताओं ने शिकायत में इस बयान पर नाराजगी जाहिर की है और उनके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही की मांग की है।
खैर ऐसा पहली बार नहीं है कि जब किसी नेता या बाबा की जुबान महिलाओं को लेकर फिसली है। पहले भी कई बार महिलाओं के चरित्र, कपड़ों या उनसे जुड़ी और भी कई बातों पर ऐसे अजीबोगरीब बयान सामने आ चुके हैं। लेकिन, सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों इस तरह के बयान महिलाओं को लेकर ही सामने आते हैं? क्यों नेता हों या बाबा, सभी की जुबान महिलाओें को लेकर ही फिसलती है। पहले आपको बताते हैं कि आखिर अनिरुद्धाचार्य ने क्या बयान दिया है और फिर जरा यह भी समझा जाए कि क्यों हर बार महिलाओं को लेकर ही की जाती हैं इस तरह की बातें।
कथावाचक अनिरुद्धाचार्य इन दिनों विवादों में हैं। उन्होंने महिलाओं को लेकर एक बयान दिया है, जिसका वीडियो वायरल होने के बाद उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई गई है। उनका यह बयान काफी बेतुका है। बताया जा रहा है कि यह बयान पुराना है लेकिन अभी चर्चा में आया है। उन्होंने कहा था, "पहले 14 वर्ष की उम्र में शादी हो जाती थी तो लड़कियां परिवार में घुल मिल जाती थी...लेकिन, अब 25 साल की लड़कियां जब घर में आती है तो कहीं ना कहीं मुंह मार चुकी होती हैं... जवानी में फिसल चुकी होती हैं।" अपने इस स्टेटमेंट में वह एक घटना का जिक्र भी करते हैं, जिसमें लड़की हनीमून पर गई थी लेकिन वह पहले किसी और के साथ थी। बेशक यह बयान बहुत ही बेतुका और शर्मनाक है। इसे बाबा की बदजुबानी कहना गलत नहीं होगा। इस बयान के विरोध में महिला अधिवक्ताओं ने मथुरा एसएसपी के पास लिखित में शिकायत दर्ज करवाई है। बार एसोसिएशन के भी इस मामले में महिला अधिवक्ताओं का समर्थन किया है।
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वैसे ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी बाबा या नेता ने महिलाओं के लेकर अभद्र टिप्पणी की है या कोई अजीबोगरीब बयान दिया है। पहले भी कई नेता और बाबा ऐसा कर चुके हैं। एक बार बाबा रामदेव ने कहा था, "महिलाएं साड़ी में अच्छी दिखती हैं..सलवार सूट में अच्छी दिखती हैं लेकिन अगर वह मेरी तरह कुछ न पहनें तो भी अच्छी दिखेंगी।" उनके इस बयान को लेकर भी काफी विवाद हुआ था।
इससे पहले कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने एक बयान में कहा था, "जिस तरह अगर तुलसी के पौधे की जड़ दिख जाए तो वह मर जाता है, उसी तरह महिलाओं की नाभि में उनकी इज्जत होती है अगर नाभि दिखती है, तो इज्जत चली जाती है। ऐसे में उनके ढककर रखना चाहिए।" इतना ही नहीं, उन्होंने महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों का जिम्मेदार उनके पहनावे को बताया था।
इससे पहले भी न जाने कितने नेता और बाबा महिलाओं को लेकर अजीबोगरीब बयान दे चुके हैं। कभी रेप का जिम्मदेार कपड़ों को बता दिया जाता है, कभी चरित्र पर सवाल खड़े कर दिए जाते हैं, तो कभी किसी और वजह से या यूं कहे बेवजह ही उन्हें कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है।
ऐसा पहली बार नहीं है जब अनिरुद्धाचार्य ने इस तरह का बयान दिया है। इससे पहले भी वह काफी कुछ ऐसा बोल चुके हैं, जिसके चलते उनस पर सवाल उठे हैं। एक बयान में उन्होंने रामायण में सीता हरण और महाभारत में द्रौपदी के चीर हरण का जिम्मेदार उनकी सुंदरता को ठहरा दिया था। इससे पहले दिसंबर, 2022 में उन्होंने एक प्रवचन में कहा था कि लड़तियां पढ़ने के लिए घर से निकलती हैं, फिर फिल्म देखने चली जाती हैं और एक दिन बिना बताए घर से चली जाती हैं और फिर उनके 35 टुकड़े हो जाते हैं।
अब यहां सवाल यह उठता है कि आखिर नेता हो या बाबा, महिलाओं को लेकर ही क्यों इस तरह जुबान फिसलती है। पहले इस तरह की अभद्र और असंवेदनशील टिप्पणी की जाती है और फिर उसे गलती का, जुबान फिसलने या अनजाने में बोलने का नाम दे दिया जाता है या कई बार कहा जाता है कि हमारा वो मतलब नहीं था...हमारे बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है। लेकिन, असल में यह भाषा सिर्फ एक लापरवाही नहीं है, यह हमारे अंदर गहराई से जड़ें जमा चुकी पितृसत्तात्मक सोच का आईना है। क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों हमेशा महिलाओं को 'सीता' बनने की नसीहत दी जाती है। लेकिन पुरुषों से 'मर्यादा पुरुषोत्तम' बनने की उम्मीद नहीं की जाती है। क्यों महिलाओं के कपड़ों को दोष दिया जाता है लेकिन पुरुषों की नजरों का खोट नजर नहीं आता है।
कई बार ऐसे विवादित बयान जानबूझकर दिए जाते हैं ताकि ध्यान आकर्षित हो, सुर्खियां बनें और सोशल मीडिया पर ट्रेंड किया जा सके। कुछ लोग इसे "क्लिकबेट पब्लिसिटी" का हिस्सा भी मानते हैं, जहां महिलाओं को कटघरे में लाकर पब्लिकसिटी बटोरने की कोशिश की जाती है।
इस तरह के बयानों के बाद अक्सर माफी मांग ली जाती है और कुछ वक्त विरोध होने के बाद बात आई-गई हो जाती है। लेकिन, क्या माफी मांग लेना काफी है। अगर मुझसे इसका जवाब मांगा जाए, तो इसका जवाब न है। माफी मांगने से न तो सोच बदलती है और न ही उन शब्दों को उल्टा जा सकता है, जो बार-बार महिलाओं को चोट पहुंचाते हैं।
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