हिंदु धर्म को पवित्र नदी के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि भगवान श्री राम के पूर्वज महाराज भागीरथी के तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा पृथ्वी पर आई थीं। इसके अलावा पुराणों में यह कहा गया है कि गंगा नदी का अस्तित्व पृथ्वी पर आदिकाल तक रहेगा। जब कलयुग के प्रकोप से सभी चीजें विलुप्त हो जाएगी उसके बाद भी मां गंगा पृथ्वी पर बहेगी। धार्मिक पर्व एवं अवसरों पर मां गंगा के स्नान के लिए तीर्थ स्थलों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। आज के इस लेख में हम गंगा दशहरा के पावन कथा के बारे में जानेंगे।
अयोध्या के महाराज राजा दशरथ और श्री राम को आप सभी जानते होंगे, उनके ही पुर्वज राजा भागीरथी को अपने पूर्वजों के तर्पण के लिए गंगाजल की आवश्यकता पड़ी थी। तब उनके पास गंगाजल नहीं था क्योंकि उस समय गंगा जी केवल स्वर्ग में ही बहा करती थीं। यह जानकर राजा भागीरथी बहुत दुखी हुए और मां गंगा को पृथ्वी पर बुलाने के लिए तपस्या करने के लिए चले गए। उन्होंने सालों तक कठोर तपस्या की लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली जिसके बाद राजा भागीरथी दुखी होकर कैलाश पर्वत चले गए और वहां उन्होंने फिर से कठोर तपस्या की जिसे देखकर मां गंगा राजा से प्रसन्न हुई और उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि आपकी क्या इच्छा है जिसे मैं पूरा कर सकती हूं। मां गंगा को अपने सामने देखकर राजा बहुत खुश हुए और उन्हें धरती पर आने के लिए आग्रह किया।
भागीरथी के आग्रह सुनकर मां गंगा राजा के साथ धरती पर आने के लिए राजी हो गई। लेकिन इसमें भी राजा के सामने एक समस्या खड़ी हुई। मां गंगा (आखिर क्यों महाभारत में गंगा ने मार दिया था अपने 7 बेटों को) का प्रवाह बहुत तेज था अगर वह धरती पर बहती तो आधी पृथ्वी उनके वेग से बह जाती। राजा के इस समस्या का समाधान और कोई नहीं बल्की महादेव बस कर सकते थे, ऐसे में राजा भागीरथी भगवान शिव की तपस्या करनी प्रारंभ की। भागीरथी कभी निर्जल तपस्या करते थे, तो कभी पैर के अंगूठे पर। राजा की कठोर तपस्या से भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और राजा के सामने प्रकट हुए और राजा से आशीर्वाद मांगने के लिए कहा। तब राजा ने भगवान शिव से निवेदन किया कि आप मां गंगा के वेग को अपनी जटा में बांध लें। भगवान भोलेनाथ ने राजा की इच्छा स्वीकार की और ब्रह्मा जी अपने कमंडल से धारा प्रवाहित किए और शिव जी मां गंगा को अपनी जटा में बांध लिए।
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करीब 30-32 दिनों तक मां गंगा शिव जी के जटा में बंधी रहीं फिर ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को शिव जी ने अपनी जटा को खोली और मां गंगा को धरती में जाने को कहा। राजा ने मां गंगा के पृथ्वी पर आने के लिए हिमालय के पहाड़ियों के बीच रास्ता बनाया और मां गंगा को धरती पर आने के लिए निवेदन किया। जब मां गंगा (गंगा उत्पत्ति से जुड़े तथ्य) धरती पर आई तब राजा ने उनके जल से अपने पूर्वजों का तर्पण किया। जिस दिन मां गंगा धरती पर आई थी उस दिन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पड़ी थी जिसे बाद से इस तिथी को गंगा दशहरा के पर्व के रूप में जाना गया। गंगा दशहरा को मां गंगा के धरती पर आगमन के उत्सव मनाया जाता है।
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ये रही मां गंगा के आगमन की कथा। उनके आगमन को ही उत्सव के रूप में मनाया जाता है। हमें उम्मीद है आपको गंगा दशहरा कि ये कथा जरूर पसंद आई होगी।
Image Credit: Herzindagi
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